लखनऊ : एक ओर चाय बेचने वाला देश का प्रधानमंत्री है तो वही दूसरी ओर स्टेशनों पर चाय बेचने वाले चाय के नाम पर लोगो को ज़हर पिला रहे है। कुछ समय पूर्व जो नज़ारा अपनी आँखों से कानपुर स्टेशन पर स्वयं देखा था उसी का दूसरा और विकृत रूप उत्तर प्रदेश के इलाहबाद स्टेशन पर देखा गया। इलाहबाद स्टेशन पर चाय के रूप में यात्रियो को जो पिलाया जा रहा है।
स्टेशन पर चाय बेचने वाले वेन्डर एक गुप्त स्थान पर बच्चों की ड्राइंग में प्रयोग होने वाले पोस्टर कलर को एक बाल्टी पानी में अच्छी तरह मिलाते है। इस घोल में शक्कर की जगह सेक्रीन का प्रयोग किया जाता है ताकि चाय का स्वाद मीठा हो सके। सेक्रीन और पोस्टर कलर युक्त सफ़ेद पानी को उबाल जाता है और उसमें चाय की पत्ती के स्थान पर केसरिया रंग का प्रयोग किया जाता है। पोस्टर कलर, सेक्रीन और कलर युक्त पानी तब तक उबाल जाता है जबतक वह चाय की भांति नहीं दिखने लगता।
चाय के समान दिखने पर इसे एल्मुनियम की केतली में भर कर वेंडरों को उपलब्ध करा दिया जाता है जो चाय चाय, चाय चाय की चिर परिचित आवाज़ के साथ 6 रूपए प्रति कप के हिसाब से यात्रियो को बेच देते है। जाड़ों के मौसम में यह कार्य अधिक सफल रहता है जबकि अन्य मौसम में सुबह आने वाली ट्रेन के यात्रियों को चाय की तलब इसी जहरीले तरल पदार्थ से बुझानी पड़ती है।
रेलवे प्रशासन, जीआरपी और स्थानीय पुलिस भी इस खेल में शामिल रहती है क्योंकि शिकायत मिलने पर इनके द्वारा किसी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाती। देश के अधिकांश स्टेशनों पर मिलने वाली चाय में कोई स्वाद नहीं होता है क्योंकि अधिक लाभ और जगह जगह दिए जाने वाले नामो की वजह से गुणवत्ता का समाप्त होना स्वाभाविक है। चाय हो नहीं अनेको स्टेशनों पर खाने का स्तर भी इतना घटिया हो गया है कि यात्री या तो खाना खा नहीं पता और यदि खा लेता है तो उसे उलटी दस्त ऐसी बीमारियों से ग्रसित होना पड़ता है।