बचपन से इंन्सान की सांसे चलती है, तब तक ना जाने वह जिंदगी की हर एक मोड पर कितनी यादें संजोगता जाता है, जिसमें कुछ तकलीफें भी देती है, कुछ तकलीफों में भी दवाओं का काम करती है, चेहरे पर अनजाने में ही मुसकाहटे ले आती है, कियने अनजाने इस सफर में जाने पहचाने बन जाते है, और वक्त के हाथों से छूटकर कितने अपने पराये हो जाते है!
कभी हम जिनको जान से भी ज्यादा संभलकर रखते थे, उन्हें ही हमें ऐसा खो देना पडता है, की सिर्फ दिल के किसी कोने में बस उसकी यादें ही तो रह जाती है, जो ना जाने किसी पल में फिर से बाहर निकल आती है, हमें कभी कमजोर तो कभी हिम्मत बढाती है, पर ये यादें तो जीने के लिए बेहत जरुरी है, चाहे बूरी हो या अच्छी, वरना तो हम सिर्फ एक मशीन बनकर ही रह जायेंगे!
ये कहानी है काव्या की, जो आजकल आग्रा में प्रोफेसर है, उसे बचपन से ही पढने लिखने का शौक रहा , उसने अभी तक शादी नहीं की है, वो घर में सबसे बडी है, मां बाप के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उसीने उठाई है, पर अब वो जिम्मेदारी से रिटायर होकर रिटायरमेंट की लाईफ जी रही है, ऐसा नहीं की भाई बहन उससे प्यार नहीं करते, पर वो अब अपने लिए समय निकालकर जीना चाहती है, जो वो जवानी में ना कर पाई वो जिंदगी जीना चाहती है !
"कितनी ख्वाईशें बस आधी अधूरी रह गई,
चलते चलते राहों पर जिंदगी बस खो गई!"
उसका बचपन नैनीताल में ही गूजरा, पर अब वहां कोई नहीं रहता, पढाई पुरी होने के बाद उसे अपने ही कॉलेज में नोकरी मिल गई थी, तो वापस नैनीताल में जाने का सवाल नहीं था, सिर्फ यादों के सिवा वहा क्या ही बचा था, पर अब भी वहा पर जमीन जायदाद और इक हवेली थी, जहा वो साल में एक बार तो जाती, पुरे साल के लिए सारी देखभाल केयरटेकर करता था, पर अब काव्या को आग्रा में रुकने का कोई बहाना ना था, तो उसने अकेले ही वापस नैनीताल जाने का सोचा!
सबने समझाया पर वो नहीं मानी, तो जाने का दिन , समय तय था, उस दिन सब उसे मिलकर वापस अपने काम पर निकल गये, काव्या हमेशा से ही स्वावलंबी जिंदगी जीती थी,उसे कभी भी किसी के आगे झूकना मंजूर नहीं किया, वह कभी भी अपने सन्मान के सामने किसी के सामने भी ना झूकी ! बडी खुद्दार थी वह और आज भी है! वैसे हर एक लडकी स्वावलंबी और खुद का सन्मान करना आना चाहिये! तो हमारी नायिका काव्या खुद कार डाइव्ह कर नैनीताल पंहुची, हाय आज भी वो वादियां कितनी खुबसुरत लगती है, जिस वादियों में वह बचपन से ही जाया करते थे, आज भी उन वादियों में वह यादें हवा के झोके की तरह गूंजते थी! थोडी देर वहीं रुककर उसी यादों में गूम होकर वह वहीं बैठी रही, कुछ पिछे से आवाज आई तो उसका ध्यान हील गया, वो होश में आई, फिर अपनी गाडी में बैठकर भारी मन से वो अपने हवेली पहुंची, सफर से काफी थकी हुवी थी, तो फ्रेश होकर डिनर करके वो सोने को चली गई!
अगले सुबह जल्दी उठकर वो सैलसपाटा करने निकल गई, गलिया अब बदली बदली लग रही थी, कुछ नये जवान चेहरे सामने दिख रहे थे, वैसे तो काव्या काफी बातूनी, हसमुख थी, क्यूंकी वो प्रोफेसर रह चूकी थी तो कॉलेज के लडकों से दोस्ती होने में उसे कितना समय लगता ,तो बिना वक्त गवाये काव्या की उनसे दोस्ती हुवी! काव्या भरी पुरी नॉलेज का खजाना है, बस कौन कितना निकाल पाता है ये तो हर एक की अपनी क्षमता पर निर्भर करता है! वहां घूमनेवाले सारे दोस्त मिलकर अपना कोई रिसर्च कर रहे थे, काव्या के बारे में जानकर वो मदद के लिए उसके पास आये, वो भी जल्द राजी हो गई, उसे भी नैनीताल में कोई दिलचस्प चीज करने को मिल रही थी, लडकों को मदद करते करते उसे भी कुछ सिखने को मिलता! छोटे बच्चों को भी पढाती थी, ऐसे ही उसका दिन कटने लगे, पर ऐतवार को सबकी छुट्टी तो वो बोअर हो जाती!
एक दिन वो हवेली की सफाई करते करते स्टोअर रुम में चली गई, वहा उसे पुराने बकसे की सफाई करते वक्त एक बडा सा संदुक मिला, संदुक देखकर नाजाने वह किन खयालों में खो गई, संदुक में कितनी पुरानी यादें कैद थी, परत दर परत वह यादें संदुक से बाहर निकलती जा रही थी, उसमें काव्या किसी मासुम बच्ची सी खोती जै रही थी, तस्वीर के साफ करते करते उसकी नजर एक तस्वीर पर आकर टीक गई, उसमें उनके कॉलेज के दोस्तों की तस्वीर थी, वो पुरानी यादों में खो गई, कब अंधेरा हुवा उसे पता ही ना चला, खाना खाके वो उसदिन उसी यादों में सो गई, अगली सुबह उसकी मुलाकात अपनी सबसे पुरानी दोस्त शालिनी से हुवी , जो हर चीज में उसकी भागीदार थी, पर वो काफी बुरी हालत में भी, उसे घर से निकाल दिया था, तो भुखी प्यासी सडकों पर घुम रही थी, काव्या ने उसका काफी खयाल रखा, शालिनी के रुप में उसे नया मकसद मिल गया था, बेसहारा निरक्षर लोगों की मदद करना, और जिनका कोई ना होता था, उसे वो घर ले आती, शालिनी भी उसका साथ दे रही थी, उसके इस मोहीम को सभी का सपोर्ट था, उसके सभी स्टुडंट उसके साथ थे, उसने अपने घर को रहने के लिए हॅपी प्लेस बना दिया, जहां पर सभी को जगह थी, चाहे बच्चे, जवान या बुढे!
बडी खुश थी वो अपने काम से, एक दिन उसके पुराने दोस्त मिहील ने विडीवो देखा, उसने अपने दोस्तों को भेजा, सब मिलकर काव्या को सरप्राईज देने चले आए, अब वह यही रहकर उसका साथ देनेवाले थे, वैसे सभी अपने जिम्मेदारी से मुप्त बो गये थे,उन सब को देखकर काव्या, शालिनी के खुशी का ठिकाना ना था, इस तरह यादों के जादूई पिटारे से काव्या को बुढापे में जीने का मकसद और अपने पुराने दोस्त वापस मिल गये! इसी तरह हर किसी के जिंदगी में एक जादू का पिटारा होता है, जब भी थक हारे, या मायुस हो, तो दोस्तरुपी जादू के पिटारे से मिल लेना !