रमन और देवयानी अपने गाव नैनीताल से कुछ दिन पहले ही मुंबई रहने आए थे, रमन एक ऑफिस में बडे से औदे पड था, रमन , देवयानी, उनका प्यारा सा बच्चा कुणाल जो की 5 साल का था, और दुसरी बार वो माँ बनानेवाली थी, इसलिए वो अपने परिवार को छोड़के नहीं आना चाहती थी, उसका 8 वा महिना चल रहा था, तो ज्यादा भागदौड़ नहीं कर सकती थी, डॉक्टर ने उसे कम्पलिट बेड रेस्ट बोला था, पर बेमन से उसे नये शहर आना पडा, जहाँ की हर चीज नई थी उसके लिए । सरकार के तरफ से बडा सा मकान मिला था उन्हें,जिसमें वो तीनों रहते थे ।
उन्हीं के मकान के सामने एक छोटे से मकान में एक बुढा जोडा रहता था, आसपास के लोग उन्हें खान चाचा बोलते थे, वो और उनकी बेगम बडे अच्छे थे, हर किसीके तकलीफ में आगे बढकर मदद करते थे, उनके बेटा अस्लम विदेश में रहता था, बडी नेक लडका था वो, वहीं उसकी शादी हो गई थी, ईद मनाने वो हरसाल भारत आता, हर महीने उनके लिए पैसा भेजता, उनका हालचाल जानता रहता, पर इन दिनों ज्यादा मशरुफ होने की बजह से वो ईद में भी आ नहीं पाया, उसकी बिबी सलीमा भी पेट से थी, तो खान चाची को उसकी फिक्र होती रहती, वो फोन पर बातें समझाती अपने बहु को, पर मिलने के लिए दिल तरसता उनका भी, फिर माहौल करोना का, कोई एक देश से दूसरे देश जा नहीं सकता, इसी कारण दोनों अपने बेटे के पास जा नहीं सकते ।
देवयानी का बेटा अक्सर बिल्डीिंग के निचे खेलने आता, वो खान चाची जी भर के देखती, बहुत प्यारा था कुणाल, प्यारी सी मुस्कराहट से सबका दिल जितता, एक दिन अचानक खेलते खेलते वो गायब हो गया, तभी खान चाचा और सभी कॉलनी के लोगों ने उसे ढूँढने में मदद की, तब से उसकी माँ बहोत सावधान रहती थी, जब वो नहीं होती तो खान चाची उसका ध्यान रखती । एक अपनापन सा लगता था उसे कुणाल और उसके घरवालों से, देवयानी भी काफी घुलमिल गई थी, अब उसे ये जगह अजनबी नहीं लगती थी, देखते देखते उसकी डिलीव्हरी के डेट आ गई, तब खान चाचा और चाची उसे हॉस्पिटल ले गई, रमन जरूरी काम से बाहर था, उसकी देखभाल की, फिर कुणाल का ख्याल भी रखा, उसके घर इक प्यारी सी बेटी हुँवी, तो खान चाचा ने सारे मौहल्ले में मिठाई बाँटी, अनजान शहर में रमन और देवयानी को एक परिवार मिला था, रमन और देवरानी भी उनका ख़्याल बहू बेटे से बढ़कर रखते थे, उसकी बेटी बडी होने लगी, तो उसका हर काम चाची करती थी, कुणाल को स्कुल छोडना, ले आना, उसके कहानी सुनाना, इसी में उनका दिन कब बीत जाता पता ही नहीं चलता, कभी कभी तो कुणाल खान चाची के यहाँ सो जाता ।
उनकी बेटी के नामकरण के दिन सारी तयारी देवयानी और चाची मिलकर की, उसका नाम अन्यया रखा, बहुत प्यारी थी वो, एक दिन करोना के बजह से लगा लॉकडाऊन खुल गया, अब चाचा चाची के बेटे ने उन्हें बुलाया था, उसकी बिवी का आखरी महिना चल रहा था, पर चाचा चाची कुणाल,देवयानी को छोड नहीं जाना चाहती थे, पर देवयानी के समझाने पर चाची मान गई, कुणाल रो रो कर बेहाल हुँवा जा रहा था, किसी के मनाने से भी मान नहीं रहा था, तो चाचा चाची को रमन कुणाल के साथ छोडने गया, पर एअरपोर्ट पर कुणाल के आँखों मे आँसू देखकर उन्हें जाना मुश्किल लग रहा था, पता भी नहीं था फिर कब आना होगा ।
वो अपने बेटे के पास लंडन पहुँच गये, रमन को कॉल पर बताया उन्होंने, कुणाल के फिक्र में वो हरदिन विडीओ कॉल पर बात करते, सलीमा को बेटा हुँवा, पर उसकी बहु की तबीयत अब भी नाजुक थी, बच्चा भी काँच की पेटी में रखा हुँवा था, एक महिने बाद सब ठीक हो गया, यहाँ रमन को प्रमोशन हो गया था, उसे शहर छोड के दुसरे शहर जाना था, पर ये बात अभी वो बता नहीं सकता था, चाची चाची भी लौट के आये थे, अब देखना था, रमन क्या फैसला लेगा, प्रमोशन लेकर शहर से दूर जायेगा, या फिर यहीं रहेगा ।
उसका परिवार जो चाचा चाची के बगैर नहीं रह सकता, और चाचा चाचा तो उसे अपने बेटे से बढ़कर प्यार करते थे, कैसे उन्हें छोडके जाये, पर एक दिन चाचा चाची रमन को प्रमोशन की बात देवयानी को बताते सून लेते हैं, ये भी सुनते है की उन्हें शहर छोड़कर जाना होगा,
बडी मुश्किलों से वो अपने आप को मना लेते है, आखिर ये मुसाफिर तो है कुछ दिन रहके फिर निकल जाने है, कोई और को इसी जगह आना है ।चाचा चाची रमन को समझाते है, वो प्रमोशन स्वीकार कर जाने की डेट फिक्स करता है ।
डिसेंबर का वो आखरी सप्ताह जब दोनों को 22डिसेंबर को निकलना है, सब पैकिंग होती है, अब कुणाल को पता ही नहीं उसे तो कहाँ जाता है, की पिकनिक पर जाना है, जल्द लौटके आऐगे, तो वो चाचा चाची से मिलने जाता है, तभी वो उनकी बातें सुन लेता है, की अब वो कभी नहीं मिलेंगे, ये बातें सुनके वो भागता है, उसे भागता चाची देख लेती है, उसका नाम लेते वो भी पिछे भागती है, रमन, देवयानी समझ नहीं पाते क्या हुँवा, तभी कार से टकराकर उसका एँक्सिडेंट होता है, वैसे कुणाल को गोदी में लेकर हॉस्पिटल भागते है, वो मुझे कही नहीं जाना, यहीं आँखें बंद होने तक कहता रहता है, चाचा चाची रमन से माँफी माँगते है की उनके बजह से कुणाल की से हालत है, कुछ दिन बाद कुणाल ठीक होकर घर आता है, पर वो किसीसे बात नहीं करता, यहाँ तक की चाचा चाची से नहीं , इक दिन पापा उसे ये शहर ना छोडके जाने की खबर सुनाते है, वो सारी नाराजगी भूल पापा के गले लगता है, और दौडके चाचा चाची के पास चला जाता है, वे ये खबर सुनकर खुशी से फुले नहीं समाते है, इस तरह एक छोटे बच्चे के साथ जुड़ चाचा चाची का रिश्ता बन जाता है बुढापे की हसीन कश्ती का सहारा । अब भी चाचा चाची ईद कुणाल के परिवार के साथ मनाती, और कुणाल का परिवार दिवाली खान चाचा के साथ, मजहबों से परे होकर जुडा था ये दिल का रिश्ता जो खान चाचा के बाद उसके बेटे बहु निभाती है, अब रमन वहाँ नहीं रहता पर हर साल अस्लम ईद मनाने रमन के घर और दिवाली अस्लम के घर मनाई जाती है, अन्यया अपने दोनों भाइयों को कुणाल और सलमान को साथ राखी बाँधती है। ये डोर ऐसी ही चली जा रही हैं ।