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अंधेरी की गुमनाम परछाई

18 अप्रैल 2022

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      ये कहानी शुरु होती है, निशा से! निशा यू तो भरा पुरा परिवार रहा है उसका, पर उसी परिवार के बीच हर किसीसे जूडे हेने के बावजूद अपना अलग वजूद की तलाश में अकेले सबसे दूर रहती, निशा! निशा एक गुमशूदा परछाई!
निशा जैसा उसका नाम वैसी ही उसकी सुरत कुछ खास तो नहीं है की लोग उसको नोटिस करे ऐसा, काली सावरी सी सुरत, छोटे से गर्दन तक पहुचते उसके बाल, आंखे काली कजराली, ओठ थोडेसे सावले, कुछ अलग ढंग के कपडे पहनी हुवी निशा, कभी ना वह खुद पर ध्यान देती ना कभी अपने पहनावे पर, वैसे ही ज्यादातर लडकिया जहां सजने सवरने में पार्लर में घंटो बरबाद करती थी, वहा निशा को कभी पार्लर का नाम भी पता ना था, कभी उसने आय ब्रो तक की अब तक नहीम किया था!
        निशा के पहले एक बहन थी, उसका नाम रुपा बिल्कुल अपने नाम के जैसे खुबसुरत, सबकी लाडली बेटी थी, शादी के बाद की पहली संतान थी, निशा से रुपा तीन साल बडी थी, बहोत नाज था उसको खुद के खुबसुरती पर!जहा समाज दिखावे के खुबसुरती को देखता है वहा  किसी के मन के  भीतर की खुबसुरती को भला यहा कौन ही देखता है, जहां लडकी की पहचान ही उसकी खुबसुरती, उसका गोला चिट्टा रंग यही हो, वहां उसके मार्कशिट और उसका हुनर कौन भला देखता है!
        निशा , बचपन से ही अनचाही लडकी थी, रुपा के बाद उसके मां पापा एक लडका चाहते थे, जो उनके वंश को आगे बढाये, जो उनके चिता को आग दे सके! निशा के जन्म के पहले डॉक्टर ने बताया था, उसके पैदा होने के समय बहुत कॉम्पिलिकेशन थे, तो बहुत मुश्किल था, दोनों में से किसी एक को बचाना! उस वक्त निशा के पापा काम से बाहर गये थे, अभी निशा के मां सुजाता के डिलीव्हरी में वक्त था, पुरा एक महीना बाकी था, उस दिन घनी अंधेरी रात थी, उसके मा के पास सुजाता की मा आकर रुकी थी, अचानक तेजी से पेट दर्र होने के कारण सुजाता को हॉस्पिटल लाना पडा, पर इसी भागदौडी में बहोत देर हो गई, अब दोनों में से डॉक्टर किसी एक को बचा सकते थे!
        सुजाता को ऑपरेशन थिएटर में लेकर गये डॉक्टर!
सुजाता की मां की जान हलक में अटकी थी, जब तक की दरवाजे पर लगी बत्ती हरी ना हो जाये, तब तक उसके मां की सांसों की गती तेज बढ रही थी! दो घंटे बाद ऑपरेशन खत्म हुवा, और डॉक्टर बाहर आये, आते ही डॉक्टर ने बेटी पैदा होने की खबर दी, क्यूकी प्रीमॅच्युअल बेबी थी तब उसे इनक्युबरेटर में ही रखा था, और किसीको मिलने की इजाजत ना थी, पर डॉक्टर के लाख कोशिशों के बाद भी सुजाता को बचाने में डॉक्टर कामयाब ना हो पाये थे!
    जहां बेटिया लक्ष्मी का रुप है, वह आदिशक्ती है, वह जगत जननी है, ऐसा कोई काम नहीं जो बेटिया ना कर सकती हो, पर फिर भी खुद के मां पापा को बेटिया नहीं चाही होती है! जहां एक ओर भारत चांद पर जाकर पहुचा है, वहीं हर एक चीज के लिए लडकिया ही जिम्मेदार है, यहां तक की बेटा ना पैदा होकर बेटी पैदा होने पर भी औरत ही जिम्मेदार है, जबकी सांयन्स ये प्रुव्ह कर चुका है, बेटा बेटी पैदा करना सिर्फ मर्द के जीन्स पर ही डिपेंड करता है, जाने दीजिये जब भी मैं समाज में ये भेदभाव देखती हू मन मेरा खिन्न सा हो जाता है, तब कलम और नोटबुक लेकर लिखने बैठती हू! मालुम नहीं मैं कैसी लिखती हू पर लिखने से खुद के अंदर छिपे गुस्से को बाहर निकालती हू!
    यहां तो हमारी कहानी के निशा के आगे एक दिक्कत हो तो ना, एक तो उसके जनम के वक्त उसकी मां मर गई, वो छोटी सी बच्ची जिसने अब तक आंखे भी ना खोली हो , वो भला अपने मां के मौत की कैसी जिम्मेदार हो सकती है, ऊपर से उसके पढे लिखे पिताजी भी उसकी ओर कभी देखते नहीं थे!उसके नानी ने ही उसकी परवरिश की थी!
    ये कम थे की बचपन से ही रुपा और निशा में होता भेदभाव वह देख रही थी, वो उसी साये में पलकर बडी हुवी, घर में सिर्फ एक नानी थी जो उससे प्यार करती थी, वह पढाई लिखाई में होशियार थी, पर फिर भी कोई कभी उसकी तारीफ नहीं करता था, हर कोई उसका उसके कलर से जज करता था!
    खुद के घर में होते हुवे वह गुमनामी के परछाई में रहती थी, अपनों के बीच में रहते हुवे भी वह खुद के बनाये अंधेरे में कैद थी, ना बचपन से उसके कोई दोस्त है या ना कोई साथीदार, उम्र का बचपन का पडाव ऐसे ही बित गया, वह जवानी के दहलीज तक आकर पहुची थी, दादी भी बिमार रहती थी, तो निशा उसकी देखभाल करती थी, बाकी को तो ना निशा से कोई मतलब था ना उसके नानी से! नानी को हर दिन बस निशा की चिंता थी! उनके बात भोली भाली निशा का क्या होगा, बस यहीं चिंता खाई जा रही थी!
       क्या कभी निशा अपने गुमनामी की परछाई से बाहर निकल पायेगी, की यूंही सारी जिंदगी अंधेरों में खुद की तलाश करते निकल जायेगी! क्या वह अपने में छिपी हुनर को तलाश पायेगी, या फिर ख्बाबें के राजकुमार के तलाश में रहेगी, किसी राजकुमारी की कहानी की तरह उसका भी राजकुमार आयेगा, फिर उसकी जिंदगी बदल जायेगी! उसे क्या पता राजकुमार तो सिर्फ स्टोरीज में ही होते है, असल जिंदगी में नहीं!
      कुछ दिन बाद नानी की तबियत जरा संभल गई, वह पहले से बेहतर हो गई, तो निशा ने उसको कसके गले लगाया, कॉलेज का आखिरी साल था, बी.कॉम के फाईनल इयर में पढने जाती थी, उस वक्त कॉलेज का वार्षिक स्नेहसंमेलन का प्रोगाम था, निशा की दोस्त सुधा ने डांन्स कॉम्पिटेशन में पार्टिसिपेशन लिया था, एकलौती दोस्त थी सुधा जिसके लिए निशा मॅटर करती थी, बाकी की चीजे नहीं, तो वह भी उसके साथ रुकती थी, वह उसे प्रॅक्टिस करती देखती थी, वैसे निशा को भी डान्स करना बहुत अच्छा लगता था, वह बेहतरीन डान्सर थी, पर पढाई के अलावा कभी किसी चीज में दिलचस्पी नहीं लेती थी!
      पर अचानक प्रोगाम की प्रॅक्टिस चल रही थी, पर आखिरी दिन सुधा का पैर को डान्स करते करते चोट लगी , तो बडी मुश्किल से सुधा के जगह निशा मान गई डान्स करे के लिए, ये थी उसकी अंधेरे से बाहर निकलने की शुरुवात! उस प्रोगाम में मशहूर टीव्ही सिरीयल के जज भी आये थे, उन्हें निशा का फरफॉरमन्स अच्छा लगा, उन्होने उसे प्रोगाम में पार्ट लेने का निओता दिया था!
      बडी सबने समझाने के बाद वह तैयार हो गई ना की वह  भाग लिया बल्कि वह जीत भी गई थी, वह पहली बार खुद को पहचानने लगी थी, कॉलेज में पढाई में तो बहुत सारी मेडल जीत चुकी थी, पर ये उसका पहला मेडल था, सच कहू पर जीतना वह उस मेडल पर खुश थी, उससे ज्यादा वह एक दोस्त बना था स्पर्धा के दरम्यान जो उसका पार्टनर था डान्स में, उसने भी सुधा की तरह ही उसका हुनर देखा ता, ना रंग रुप! इतना ही क्यू वह प्रेक्षक जिन्होने वोट देकर उसे जिताया था, उन्होनें भी वहीं देखा था, थोडा थोडा उसे दुनिया में अच्छाई होती है ,उसपर ऐतबार हो गया था!
      कुछ दिन बाद उसके पापा को भी अपने गलती का एहसास हुवा, उनकी लाडली बेटी रुपा खुद का फायदा देखते हुवे एक लडके के साथ भाग गई थी, वो भी क्या करती कभी जिंदगी में किसी चीज के लिए उसने ना सुनी ही नहीं थी, पापा के उसके बॉयफ्रेंड को ना करने पर उसीकी साथ भाग गई थी, सब परवरिश का नतीजा था, नानी की परवरिश में निशा को जिम्मेदार और रुपा को मतलबी बनाया था!
       निशा ने पापा को माफ किया था, वो लडका जो डान्स पार्टनर था, अब लाईफ पार्टनर बन चुका था, नानी अब नहीं रही थी, और पापा निशा के साथ रहते थे, साहिल निशा का पती अपने पापा और निशा के पापा दोनों को संभालता था, निशा और साहिल बच्चों को डान्स करना सिखाते थे, दोनों मिलकर अच्छी खासी आमदनी कर रहे थे, उनकी दो साल की बिटीया को दोनों पापा बडे प्यार से संभालते थे, सबकी प्यारी थी वह परी कहते थे प्यार से!
       कभी किसीको रंग रुप से ना जज करते हुवे उसे एक इंन्सान की तरह समझना, बचपन से ही उसे खुद को तलाशने देना, उसे एक बेहतर इन्सान बनाना, ना की बेटा हो या बेटी उसे अंधेरों की गुमनाम परछाई बनने देना! निशा अंधेरो से निकलकर सूरज की नई पहचान बन चुकी थी! उसकी रोशनी से देश दुनिया जगमगा रही थी, उसे एक जुगनु साहिल क्या मिला, सारा अंधेरा छट गया, पर बनकर फिर उसे पापा का साथ, फिर अच्छा ससुराल, सुधा और वह जज जिसने उसे प्रोगाम में आने के लिए मनाया , जो आज भी उनके साथ है!
         दुंवा करती हू की कोई भी हमेशा के लिए अंधेरी की गुमनाम परछाई बनकर ना रहे, देर सवेर उसके हिस्से का सूरज उसे मिल जाये, ये कहानी यहां खत्म, मिलते है अगली कहानी में! पढने के लिए शुक्रिया दोस्तों!
       
      
      
    
    
    
     
           
        
        
        

        

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