लखनऊ : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यादवों का गड कहे जाने वाले चार जिलों की 13 सीटों पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। यहां तीसरे चरण में चुनाव होना है। इन सीटों पर न सिर्फ सियासी दिग्गज निगाहें लगाए हुए हैं बल्कि चुनाव आयोग का भी पहरा है। आयोग की ओर से एक दिन पहले इटावा में कई अफसरों को हटाया जाना इसका सबूत है।
यादव पट्टी के नाम से मशहूर प्रदेश के छह जिले
यादवलैंड के नाम से मशहूर प्रदेश के छह जिलों में चार जिलों में तीसरे चरण में (19 फरवरी को) चुनाव होना है। ये वे जिलें हैं, जिन पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा सीधे तौर पर दांव पर लगी है। इटावा, औरैया उनका गृह क्षेत्र हैं तो फर्रुखाबाद व कन्नौज कर्मभूमि। कन्नौज से वह खुद सांसद रहे और अब डिंपल यादव सांसद हैं। सैफई परिवार की ज्यादातर पुरानी रिश्तेदारियां फर्रुखाबाद और कन्नौज में हैं। ऐसे में इन चारों जिलों के लोग मुख्यमंत्री के हर कदम पर खासतौर पर निगाह रखते हैं। पिछले दिनों चाचा-भतीजे के बीच चली जंग में सबसे ज्यादा खेमेबंदी भी इन जिलों में खुलकर देखने को मिली। दोनों खेमे ने नारेबाजी से लेकर सड़क पर प्रदर्शन किया।
इनका कुंडली मारना भी पेशबंदी का एक हिस्सा
इटावा और फर्रुखाबाद में मुख्यमंत्री के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही जिलाध्यक्षों के परिवर्तन के साथ ही समूचे संगठन की ओवर हालिंग तक हुई। इतना ही नहीं इन चार जिलों की सभी 13 सीटों पर सपा का कब्जा है। इसके बाद भी इस चुनाव में चार सिटिंग विधायक के टिकट काट दिए गए। टिकट कटने की जद में आने वाले इटावा के निर्वतमान विधायक रघुराज सिंह शाक्य, भरथना की निवर्तमान विधायक सुखदेवी वर्मा और फर्रुखाबाद जिले के कायमगंज के निवर्तमान विधायक अजीत कठेरिया पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के खास माने जाते हैं। जबकि औरैया जिले के विधूना के निर्वमान विधायक प्रमोद गुप्ता एलएस सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के साढ़ू हैं। ये चारों फिलहाल चुनाव मैदान से बाहर हैं। न तो खुलेतौर पर विरोध कर रहे हैं और न ही पार्टी की ओर से घोषित उम्मीदवार के पक्ष में। इनका कुंडली मारना भी पेशबंदी का एक हिस्सा माना जा रहा है।
शिवपाल समर्थक मैदान में डटे, सपा को खतरा
दूसरी तरफ इन सभी सीटों पर शिवपाल सिंह यादव के समर्थक माने जाने वाले सजातीय उम्मीदवार भी लोकदल सहित अन्य दलों के जरिए मैदान में डटे हैं। चुनावी बिसात पर इनकी पहचान अखिलेश विरोधी गुट के रूप में हो रही है। इस लिहाज से भी इन चारों जिले की 13 सीटों की चुनाव परिणाम सीधे तौर पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है।