लखनऊ : यूपी में हुई बसपा की करारी हार के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती को अब सूबे में अपनी पहचान बनाने के लिए इस ऐतिहासिक हार की बड़ी बारीकी से समीक्षा करनी पड़ेगी. इसके साथ ही पार्टी को फिर से राज्य में खड़ा करने के लिए अपनी सियासी लड़ाई फिर से लड़नी होगी. दरअसल सूबे के विधान सभा चुनाव में जनता का जो फैसला आया है उसे देख कर एक बात तो साफ है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है. चुनाव में जिस तरह बसपा की माया 19 सीटों के आंकड़े पर सिमटी है. उनके लिए यह बड़ा झटका है. जिसके चलते यह बात साफ है कि बसपा सुप्रीमो को अब नए सिरे से अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश में खड़ा करना होगा.
माया पर क्यों लगे आरोप ?
बीते दिनों में उन पर जो सबसे बड़ा आरोप लगा कि बसपा सु्प्रीमो मायावती पैसे लेकर टिकट देती हैं. उन पर ये आरोप यो ही नहीं लगे इसके पीछे वाजिव तथ्य और तर्क भी हैं. देश में जब नोटबंदी का फैसला हुआ तो आनन-फानन में बसपा सुप्रीमो ने पैसे पहुंचा चुके सभी प्रत्याशियों को पुराने नोट वापस कर नए करेंसी के नोट लाने का हुकुम सुनाया था. इसी के चलते बसपा में मायावती दलित की बेटी से दौलत की बेटी बन गई थी. और सत्ता का चार बार स्वाद चख चुकी मायावती शायद इस आवाज को समय रहते नहीं सुन पाई. मायावती की हार के बड़े कारणों में ये एक अहम कारण है. मायावती की हार के दूसरे बड़े कारण में उनकी रणनीति का फेल होना रहा.
जाटव वोट बैंक भी माया से रूठा
दलित-मुसि्लम फैक्टर पर चुनाव लड़ रही मायावती ने दलित वोट बैंक को अपना बधुआ मजदूर मान लिया था. लेकिन इस वोट बैंक के लिए सिर्फ पत्थरों के बुत लगाने के सिवा किया कुछ नहीं. यहीं नहीं उनका परंपरागत जाटव वोट बैंक भी उनसे रूठा दिखा. कुल मिला कर 2007 में अपने बूते सरकार बनाने वाली मायावती के हाथ से सत्ता का ख्वाब ऐसे फिसला कि वह मात्र 19 सीटों पर सिमट गईं. कुनबे की लड़ाई झेल रही सपा का भी बुरा हाल रहा. इन सबके बीच भाजपा ने जीत की इबारत लिख दी.
माया मिली न राजतिलक
इस हार से बौखलाई मायावती ने यहां तक मांग कर डाली कि भाजपा को मुसि्लम वोट कैसे मिल गए. उन्होंने मशीनों में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को इसकी जांच की नसीहत दे डाली. मायावती के लिए यह चुनाव कुल मिलाकर ऐसा रहा कि बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले कि माया मिली न राजतिलक.