नई दिल्ली : 3 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मिर्जापुर की रैली में कहा कि 'उन्हें सबसे ज्यादा वोट डालने का रिकॉर्ड बनाना है'। तो क्या पिछले पांच चरणों में पड़े कम वोटिंग प्रतिशत का आंकड़ा उन्हें परेशान कर रहा है, क्योंकि उत्तरप्रदेश में अब तक हुए पांच चरणों के मतदान का प्रतिशत कम रहा। पहले चरण में जहाँ 64 प्रतिशत मतदान हुआ वहीँ पांचवे चरण में मतदान का प्रतिशत 57 प्रतिशत तक गिर गया। अख़बार टाइम्स ऑफ़ में सुभाष मिश्रा ने एक महत्वपूर्ण लेख लिखा है। लेख में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं।
जिन इलाकों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 प्रतिशत से ज्यादा है वोटिंग ज्यादा हुई है।
पहले चरण में जिन जिलों में वोटिंग हुई उनमें मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ और गाजियाबाद भी शामिल थे। इन सभी जिलों में जाटों और मुसलमानों की संख्या काफी ज्यादा है। यहां मतदान का प्रतिशत 64.2% रहा, जिससे साफ हो गया कि 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के जख्म लोगों को अब भी दर्द देते हैं।
गौतमबुद्ध नगर के दादरी में कथित तौर पर घर में 'बीफ' रखने को लेकर हुई अखलाख की हत्या 2015 में देशव्यापी मुद्दा बना जिससे दो समुदायों के बीच खाई और चौड़ी हो गई। मतदान का यह आंकड़ा इसी बात की ओर इशारा कर रहा है।
दूसरे चरण में बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर, बदायूं और रामपुर जिलों में मतदान हुआ। इस चरण में वोट प्रतिशत 65.2% रहा। इन जिलों में भी मुसलमानों की संख्या अच्छी खासी है जिन्होंने बड़ी संख्या में वोटिंग की।
'इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि 80 लोकसभा सीटों वाले प्रदेश में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है। यह एक बड़ी वजह हो सकती है कि मुसलमानों ने बीजेपी को यूपी की सत्ता में आने से रोकने के लिए बड़ी संख्या में वोट डाला हो।
लोगों को लगता है कि चुनाव से कुछ नहीं बदलने वाला और वे इससे दूर ही रहना ठीक समझते हैं। यही वजह है कि लोगों को चुनाव से जोड़ने के लिए सभी पार्टियों ने जाति और धर्म की भावनाओं को उकसाने की कोशिश की, बार-बार उसका जिक्र किया गया।
पूर्वी यूपी के गोंडा में पीएम मोदी में जब कानपुर रेल हादसे के टेरर लिंक का जिक्र किया तो इसे साफ तौर पर ध्रुवीकरण की कोशिश के तौर पर देखा गया। लेकिन फिर भी लोगों पर इसका कोई असर होता नजर नहीं आया और महज 57% लोगों ने ही वोट डाले।