नई दिल्ली : पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई विधानसभा सीटों पर इस बार बीजेपी का बोलबाला दिख रहा है वहीं कई अन्य सीटों पर बसपा नंबर वन पर दिख रही है तो कुछ सीटों पर सपा की साईकिल पर सवारी करने के लिए जनता बेताब है. जिसके चलते यूपी में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है. गौरतलब है कि कई विधानसभा सीटों पर बसपा का हाथी सपा की साईकिल पर भारी पड़ता दिख रहा है. जिसके चलते ग्रामीण अंचलों के कीचड़ में इस बार कमल का फूल खिलते दिखाई दे रहा है.
क्या कहता है वोटर ?
फिलहाल इन सब बातों का जायजा लेने के लिए इंडिया संवाद की टीम ने बुलंद शहर, मुजफ्फर नगर, अलीगढ़ और खुर्जा समेत अन्य जिलों की विधानसभा सीटों के ग्रामीण इलाकों की जनता से उनकी समस्याओं और उनके इलाके में कराये गए विकास कार्यों का जायजा लिया. इसके चलते यह बात सामने आयी है कि चुनाव से पहले पीएम मोदी की नोटबंदी को लेकर बड़ी- बड़ी लाइनें लगाने के बाद भी लोग उनसे खुश हैं और वे परिवर्तन चाहते हैं. जिसके चलते इस बार के विधानसभा चनाव में सबसे खास बात ये है कि जनता बीजेपी को नहीं बल्कि मोदी के नाम पर कीचड़ में कमल खिलाने की सोच रही है.
रालोद का अपने ही गढ़ से होगा सफाया
सबसे पहले बात करते हैं हम अलीगढ़ जिले की खैर सीट की. सालों से रालोद के मुखिया चौधरी अजित का इस पर कब्जा रहा. बावजूद इसके कोई विकास कार्य नहीं कराया गया. नतीजतन इस बार यहां की जनता ने बीजेपी को जिताने का मन बनाया है. जाट बाहुल्य जाति वाले इस क्षेत्र में वैसे तो जाटव, मुस्लिम और लोध वोट बैंक भी है. लेकिन मुस्लिम और जाट वोट बैंक ही इस सीट से हार जीत का फैसला करता है. इस सीट पर जाट और अन्य वोट बैंक इस बार जहां बीजेपी की झोली में जाते दिख रहा है, वहीं मुस्लिम वोट बैंक सपा और बसपा के खाते में जाते दिख रहा है. गांव के शफीक कहते हैं कि अगर सपा का गठबंधन रालोद और कांग्रेस से होता है तो भी हमलोग इस बार उम्मीदवार को देखकर ही वोट देंगे. इसी तरह अलीगढ़ की छर्रा विधानसभा सीट के अकबराबाद के टुरमई गांव में सपा और बसपा का वोट बैंक हैं. दिलचस्प है कि यह गांव सपा का गढ़ माना जाता है और इस बार फिर से यहां के लोग सपा को जिताने की बात कर रहे हैं, लेकिन गांव में मौजूद दलित वोट बैंक बसपा का है. दो हजार की मबाड़ी वाले इस गांव में 45 % वोटबैंक सपा का है. शेष अन्य जातियों का, जिनमें से 15 % मुस्लिम भी शामिल हैं.
नोटबंदी से चौपट हुआ कारोबार
खुर्जा विधानसभा सीट वैसे तो बीजेपी का गढ़ कहा जाता है, लेकिन इस बार यहां की जनता मोदी की नोटबंदी को लेकर काफी नाराज दिखाई पड़ रही है. इस सीट पर सपा की साईकिल और बीजेपी के कमल में सीधे मुकाबला होता दिख रहा है. दरअसल यहां के व्यापार ियों को नोटबंदी के बाद से काफी नुकसान हुआ है. यहां के दुकानदार जफर आलम बताते हैं कि फेब्रिक का सबसे बड़ा कारोबार यहां से होता है. लेकिन इस बार सीजन में भी लोग माल खरीदने नहीं आ रहे हैं, उन्हें डर है कि माल खरीदने गए तो कहीं पुलिस उन्हें ना पकड़ ले. जिसके चलते व्यापारियों का धंधा इस बार पूरी तरह से चौपट हो गया है. जिसके चलते इस विधानसभा सीट का मुस्लिम वोट बैंक सपा के साथ जाते हुए दिखाई दे रहा है.
सपा और बसपा में टक्कर से बीजेपी की बल्ले-बल्ले
इसी तरह खतौली विधानसभा सीट पर कई जगहों पर बसपा और सपा का कांटे का मुकाबला होता दिख रहा है. यहां के कई स्थानों पर सपा की साईकिल बड़ी स्पीड से दौड़ रही है तो बसपा का हाथी सबको रौंदते हुए आगे बढ़ते हुए दिख रहा है. हालांकि इस सीट के ग्रामीण इलाकों में मोदी की नोटबंदी ने शुरूआती दौर में बीजेपी की लहर दिखाई दे रही थी, लेकिन गांव के बैंकों में समय से पैसे ना पहुंचाए जाने के कारण लोग बीजेपी से नाराज हो गए हैं.
मोदी की नोटबंदी से जाट वोटर का झुकाव बीजेपी की ओर
और तो और बुलंद शहर और मुजफ्फरनगर के कई इलाकों में सालों से जिन सीटों पर रालोद का कब्जा रहा है. उन सीटों पर इस बार मोदी की नोटबंदी का जबरदस्त असर दिखाई दे रहा है. यही नहीं जाट वोट बैंक इस बार बीजेपी की तफर झुकता हुआ दिखाई दे रहा है. रायपुर नंगली गांव के रोहित बताते हैं की वोटर जागरूक हो चुका है और वह मोदी की तरफ है. क्योंकि गांव के विकास की और किसी नेता ने अब तक ध्यान इसलिए नहीं दिया कि वोटर पढ़ लिख जायेगा तो उन्हें वह वोट नहीं देगा, लेकिन अब लोग जागरूक हो चुके हैं. फिलहाल इस सीट पर बसपा और बीजेपी की सीधी टक्कर होती दिख रही है.