लखनऊ : यूपी के सचिवालय प्रशासन विभाग में आखिर ऐसी क्या खास बात है कि जो भी यहाँ तैनात होता है वह यहीं का होकर रह जाता है. जिसके चलते सालों पहले तैनात हुए कर्मचारी और अधिकारी यहां कुंडली मार कर जमे हुए हैं. गौरतलब है कि सचिवालय प्रशासन विभाग में तैनात अधिकारियो की मर्ज़ी से ही शासन स्तर पर खरीद,नीलामी ,नियुक्तिय,प्रोन्नतियों,ज्येष्ठता निर्धारण और सेवा विस्तार के मामले नियमो के मुताबिक ना होकर निजी स्वार्थ के चलते निपटाए जाते हैं. बड़े पैमाने पर सचिवालय में कंप्यूट्रीकारण का करोड़ो का काम भी चन्द चुनिंदा अधिकारियो द्वारा ही किया गया है.
यहां नहीं चलता कोई नियम- कानून
मालूम हो कि प्रदेश भर की स्थानांतरण नीति कार्मिक विभाग से जारी होती है और उसका अनुपालन कठोरता से कराया जाता है परन्तु सचिवालय प्रशासन विभाग स्वंम अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु अपनी इच्छानुसार स्थानांनतरण नीति का गठन करता है. इस नीति में स्वंम अपने विभाग के लिए ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि नीति उन पर प्रभावी नहीं होती है. नियमो के मुताबिक एक विभाग में अधिकतम 7 वर्ष तक रहने का प्राविधान करने वाली नीति उन अधिकारियो पर लागू नहीं है जो समीक्षा अधिकारी से लेकर सयुंक्त सचिव स्तर तक प्रोन्नति पाने के बाद आज भी वहीँ कार्यरत है और शासन की खरीद फरोख्त का काम देख रहे है. विभिन्न भवनों में तैनात सुरक्षा अधिकारी और व्यवस्थधिकारी इन्ही के अधीन है. कंप्यूटरीकरण की सारी खरीद में भी इन्ही का बोलबाला रहता था.
भवनो का सामान अफसरों के बंगले में
भवनों में जारी होने वाला सामान भवनों में न पहुँचकर सचिवालय प्रशासन के अधिकारियो के घर पहुँच जाता है. इस विभाग के अधिकारियो को नियमो के विरुद्ध यह अधिकार भी प्राप्त है कि सेवानिवृत्ति के उपरान्त सेवा विस्तार न होने पर भी वे अपने हस्ताक्षर से बिलो के भुगतान की संस्तुति करते है. इसी का नतीजा है कि सरकार बदलने के साथ मुख्यमंत्री के लिये लाया गया उच्च कोटि का सामान सचिवालय प्रशासन के अधिकारियो के घर पहुँच जाता है.
क्या सीएम कर सकेंगे कार्रवाई ?
सूत्रों के मुताबिक प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन विभाग भी इन कार्यो से अछूते नहीं रहते है. फिनायल, झाड़ू से लेकर साज - सज्जा का सारा सामान प्रमुख सचिव और अधीनस्थ अधिकारियो के घर प्रत्येक माह पहुँच जाता है. सचिवालय कर्मियों के मध्य ज्येष्ठता विवाद का मुख्य कारण यहाँ बैठे लोग ही है, जो निजी स्वार्थ वश विवाद को सुलझाना ही नहीं चाहते. पदों की स्वीकृति हो या प्रोन्नति के मामले विभाग में तैनात अधिकारियो की मर्ज़ी और स्वार्थ पर निर्भर होते है. इस विभाग के गलत मामलो में कहीं ना कहीं मुख्य सचिव का भी योगदान होता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता . प्रमुख सचिव वित्त के पद पर रहे हो या मुख्य सचिव के पद पर अपने मातहतों और चिरपरचितो को सेवाविस्तार दिलाने में इनकी बड़ी भूमिका रही है. भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का नारा देकर सत्ता पाने वाली सरकार और प्रदेश के मुखिया योगी आदित्य नाथ इन आधिकरियो के विरुद्ध कार्यवाही कर सकेेंगे या इनके चक्रव्यूह में फसे रहेंगे, फिलहाल ये तो समय ही बताएगा.