चार दशक पहले जब सलीम जावेद ने एंग्री मैन के तौर पर अमिताभ बच्चन को परदे पर उतारा था तो देश उनकी स्क्रिप्ट का कायल हो गया था . कायल इसलिए क्यूंकि एंग्री मैन का किरदार व्यवस्था से त्रस्त हर हिंदुस्तानी के भीतर छुपा था. सलीम जावेद काफी समय से स्क्रिप्ट लिख रहे थे , अमिताभ बच्चन को भी डेब्यू किये कुछ वर्ष हो चुके थे. लेकिन दोनों हिट तभी हुए जब उनकी फिल्मो ने एंग्री मैन की थीम को पकड़ा. उस दुखती रग को पकड़ा जो व्यवस्था से हारे लोगों को सता रही थी.
चाहे फिल्म की स्क्रिप्ट हो , चाहे किसी सामाजिक आंदोलन की पृष्ठभूमि या जीत की तरफ बढ़ती किसी राजनैतिक दल की रणनीति, आप क्लिक तभी करते हैं जब आम आदमी की नब्ज़ पर आपका हाथ हो. दिल्ली के रामलीला मैदान का आंदोलन भी आम आदमी की दुखती रग को छूता हुआ ही देश पर छा गया था. वही एंग्री मैन की फील, वही भ्रष्ट और निर्लज व्यवस्था के आगे टूटा हुआ सड़क का आदमी. जैसे सत्तर के दशक में 'जंजीर' या 'मज़बूर' के अमिताभ बच्चन की एंग्री यंग मैन की इमेज ने देश को झकझोरा था वैसे ही रामलीला के आंदोलन से निकले अरविन्द केजरीवाल की इमेज, व्यवस्था से खार खाए हर दिल में जेरोक्स होती चली गई. हमे लगा केजरीवाल वो सड़क का आदमी है जिसका कुछ अंश हमारे भीतर भी है. शायद इसलिए सत्ताधारी कांग्रेस को छोड़कर समाज से जुड़ा हर घटक हर संसथान केजरीवाल और अन्ना के साथ मुठी बाँध कर खड़ा हो गया.
वामपंथी हों, संघ के समर्थक हों, श्री श्री हों या रामदेव , सब के सब प्रारम्भ में आंदोलन के साथ खड़े हुए. आंदोलन ज्यूँ ज्यूँ बृहद होता गया केजरीवाल का कद भी बढ़ता गया. ज़ंज़ीर के बच्चन की तरह केजरीवाल कुछ ही महीनो में घर घर के नायक हो गए. आंदोलन के ऐतिहासिक जन समर्थन ने उन्हें देश का सुपर व्हिस्ल ब्लोअर बना दिया. उनमे सत्ता का विकल्प बनने की संभावना दिखने लगी. और वो उस रास्ते की तरफ बढ़ भी गए.
लेकिन केजरीवाल की ये राम कहानी आज अचानक मैं क्यों लिखने बैठ गया. ऐसा क्या हुआ जो आज ये पोस्ट लिखनी पड़ रही है.
मित्रों, आज दिल्ली का निर्णायक एमसीडी का मतदान था ...लेकिन मेरी तरह लाखों दिल्ली वालों ने वोट क्या देना इस चुनाव की चर्चा भी नहीं की. जिस दिल्ली ने तीन साल पहले मोदी का विरोध कर केजरीवाल को ६७-३ की जीत दिलाकर हीरो बनाया था वो आज इस एंग्री यंग मैन को शायद भूल गई. एमसीडी के नतीजे जो कुछ भी आएं लेकिन आम आदमी पार्टी आज दिल्ली वालों के दिल से उतरती हुई दिखी. निराशा के इस भाव के पीछे ढेरों कारण है. बहुत कुछ है लिखने को और तमाम ऐसे किस्से तो पहले से ही पब्लिक डोमेन में हैं. लेकिन मैं इतना ज़रूर कहूंगा कि केजरीवाल ने हम सब के भीतर छुपे रामलीला के उस केजरीवाल को मसल दिया जिसने कुछ साल पहले हज़ारों हज़ार युवाओं के दिलों में आशा की लौ जगाई थी. जिस आवाज़ ने, जिस आंदोलन ने, भ्रष्ट राजनीती और भ्रष्ट व्यवस्था को दिल्ली की छाती पर बैठकर चुनौती दी थी उस आवाज़ से हम अब ठगा महसूस करते हैं. जैसे कोई खडग सिंह बनकर जनता के विश्वास का घोडा हर ले गया हो. हो सकता है परम दोष केजरीवाल का ना होकर उनकी इष्ट मंडली का हो ..पर परसेप्शन तो परसेप्शन है.
मित्रों, आप पर बढ़ते अविश्वास के कारण अनेक है लेकिन मुझे लगता है कि साख खो देने का मुख्य कारण शायद ये है कि एंग्री मैन ...एंग्री से एम्बिशस बन गया.....एम्बिशस यानी महत्वकांशी होना गलत नहीं है लेकिन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं जब समाज के कन्धों पर रखकर पूरी की जाती हैं तो हश्र वही होता है जो आज हम देख रहे हैं.
निसंदेह 'रियल लाइफ' में आप के एंग्री यंग मैन अरविन्द केजरीवाल...'रील लाइफ' के हीरो अमिताभ बच्चन से भी बढ़े हो सकते थे...अगर वो अपनी स्क्रिप्ट न लिख कर आम आदमी की स्क्रिप्ट लिखते.