हमला सिर्फ उड़ी के बेस कैंप पर नहीं हुआ है बल्कि सोशल मीडिया पर बने भक्तों के कैंप पर भी हो गया है। विरोधी को भी छर्रे लग गए हैं। दोनों चीख़ रहे हैं।युद्ध की ललकार और न होने पर फटकार की भरमार हो गई है। प्रधानमंत्री क्या करें, क्या न करें की बाढ़ आई हुई है। इसी सैलाब से भयाक्रांत होकर मैंने तय कर लिया है कि प्रधानमंत्री कभी नहीं बनूँगा। सलाहों के इस सैलाब से मुझे प्रधानमंत्री से सहानुभूति हो रही है। उनसे निर्णय लेने में जो देरी हो रही है, उससे युद्धकामी अधीर हुए जा रहे हैं। मैं फ़ैसला लेने में उनकी मदद करना चाहता हूँ। चाहता हूँ कि वे स्वतंत्र भाव से निर्णय लें। आगे अपने उपायों को बताते हुए जगह की कमी के कारण प्रधानमंत्री को प्र म लिख रहा हूँ। मैंने प्रधानमंत्री को युद्ध के लिए पैंतीस कदम बतायें हैं। चूँकि उनका पता युद्ध के हंगामे के बीच ही बदल गया है, इसलिए डाक से पत्र भेजने के बजाय यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ ताकि लोक कल्याण मार्ग पर रहते हुए वे युद्ध कर जनकल्याण का कार्य कर सकें।
1) सबसे पहले प्र म किसी जनरल संग चैनल के पैनल में आएं
2) पैनल में पंद्रह साल पहले रिटायर हुए जनरल ही हों ।
3) रिटायर जनरल पैनल में युद्ध अच्छा करते हैं।
4) प्र म मौजूदा जनरलों के संग पैनल में न आएं
5) मौजूदा जनरलों को युद्ध करना नहीं आता है
6) चैनल के पैनल में आकर एंकर को भरोसा दें
7) चैनल के पैनल से पाकिस्तान को ललकारें
8) न्यूज़ रूम में घूमकर युद्ध की तैयारी का जायज़ा लें
9) राष्ट्रपति को रिपोर्ट दें कि सारे चैनल युद्ध के लिए तैयार हैं
10) चैनलों के ग्राफिक्स रूम में जाकर वॉर रूम बनाने के लिए निर्देश दें
11) प्र म अख़बारों में छपे सारे संपादकीय लेख पढ़ने चले जाएँ
12) सरकार बिल्कुल बात न करे, सरकार की बात एंकर करे
13) युद्ध के समय सरकार डिटेल न बताये बल्कि एंकर डिटेल बताये
14) एंकर ये बिल्कुल न बताये कि ये सरकार ने बताने के लिए कहा है
16) प्र म पीयूष गोयल को निर्देश दें कि प्राइम टाइम के वक्त कहीं बिजली न जाए
17) प्र म सभी चैनलों पर न जाएँ, नंबर सात के चैनल चुनें जो उस हफ्ते के उस घंटे नंबर वन हो जाए
18) प्र म मेरे शो में न आएं, ज़ीरो टीआरपी शो में जाने से कोई लाभ नहीं।
19) ज़ीरो टी आर पी एंकर के साथ प्र म को देख जनता विश्वास नहीं करेगी कि युद्ध होगा
20) प्र म पार्टी प्रवक्ता को भी ज़ीरो टी आर पी एंकर के करीब जाने से मना कर दें
21) युद्ध का मजमा नंबर वन से तीन तक के चैनल पर ही लगे
22) वैसे तीन से सात नंबर वाले चैनल भी युद्ध के लिए कम प्रयासरत नहीं हैं
23) प्र म के साथ होने वाला इस एक्सट्रा सुपर प्राइम टाइम का प्रोमो ख़ूब चलेगा।
24) चैनल के पैनल में प्र म को तीन विकल्प दिये जायेंगे
25) सर्जिकल स्ट्राइक, कोवर्ट स्ट्राइक, स्ट्राइक
26) प्र म को इन तीनों में से एक पर बटन दबाना होगा
27) उसके बाद उनसे वोट करने के लिए कहा जाएगा जिनका आधार नंबर से ट्वीटर और फेसबुक खाता खुला हो।
28) जो भी नतीजे आयेंगे, उनमें से कोई एक रिटायर्ड जनरल चुनकर बतायेंगे कि प्र म को क्या करना है
29) इसके बाद प्र म को दूसरे विकल्पों में से एक पर बटन दबाना होगा।
30) युद्ध, कूटनीतिक विच्छेद, आर्थिक संबंध विच्छेद,
31) यह बात एंकर कहेगा कि प्रधानमंत्री ने जो भी बटन दबाया है, दबा है वही जिससे न्यूक्लियर स्ट्राइक होता है क्योंकि हमने हर बटन का तार न्यूक्लियर बटन से जोड़ दिया था।
32) इसके बाद एक एक्सपर्ट राष्ट्र को बतायेगा कि न्यूक्लियर स्ट्राइक में पचास करोड़ लोग मर जायेंगे। पचास करोड़ बच जायेंगे।
33) इस बात पर एंकर झूम उठेगा। ब्रेकिंग न्यूज हो जाएगा।
34) पचास करोड़ मरने वालों में एंकर, कैमरामैन और उनके परिवार का कोई नहीं होगा।
35) जिनके परिवार से कोई एंकर है वो किसी युद्ध से न घबरायें। उन्हें कुछ नहीं होगा ।
सोशल मीडिया और मीडिया में प्रधानमंत्री को सलाह देने वालों की भीड़ देखकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने भी इन सलाहों के हिसाब से सलाह देने का अपना सपना पूरा कर लिया है। मुझसे देखा नहीं जा रहा है कि सबने इस वक्त प्रधानमंत्री को अकेला छोड़ दिया है। युद्ध का फ़ैसला उन पर थोपना सही नहीं है। मीडिया के ज़रिये जो हवाबाज़ी हो रही है,वही काफी है यह बताने के लिए कि युद्ध हो चुका है और हम जीत चुके हैं। न्यूक्लियर स्ट्राइक में पचास करोड़ भारतीय के मर मिट जाने की कामना करने वाले एक्सपर्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार न बनाने पर मैं पहली बार प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा माँगता हूँ। वे चाहें तो पहली बार मेरी मांग को रिजेक्ट कर सकते हैं।
मैं बस इतना चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री मेरा यह लेख पढ़ें। हँसें। थोड़े उदास भी हों। सरकार कितनी भी अच्छी हो अगर उसके दौर में मीडिया बंदर हो जाए तो उस सरकार का कोई भी श्रृंगार फीका पड़ जाता है। मीडिया को प्रोपैगैंडा मुक्त रखने की ज़िम्मेदारी भी सरकार की है। दुख की बात है कि यह बात सरकार में रहते हुए कभी किसी सरकार को समझ नहीं आती। प्रोपेगैंडा करने वाला मीडिया उस सरकार के सभी प्रयासों पर पानी फेर देता है।
जनता को सरकार का काम भले न समझ आए मगर यह जल्दी समझ आ जाता है कि मीडिया चाटुकार है। मैंने यह लेख इसीलिए लिखा है कि ताकि सरकार चाटुकार मीडिया से दूर रहे। लोग अपने नेता को बहुत प्यार करते हैं लेकिन लोग उस नेता के चमचों को कभी प्यार नहीं करते हैं। भारतीय मीडिया एक दिन अपनी चाटुकारिता से सरकारों और राजनीति के प्रति जनता को ख़्वामख़ाह बाग़ी बना देगा।
मेरी इस ऐतिहासिक और कालजयी उद्घोषणा को चार बार पढ़ें और मीडिया सत्यानाश बोलकर तीन बार किसी भी नदी का जल छिड़कें। इसलिए कि लोकतंत्र में सरकार और राजनीति की विश्वसनीयता बहुत जरूरी है।यह भी तभी संभव है जब मीडिया की थोड़ी बहुत विश्वसनीयता बची रहे। बाकी आप पाठक खुद समझदार हैं। चैनलों के ये पैनल एकदिन आपको मूर्ख बना देंगे। जल्दी ही इसकी पुष्टि कोई डाक्टर करने वाला है। मूर्खता एक बीमारी है। यह भारतीय चैनलों की देन होगी। उस डाक्टर को नोबल पुरस्कार मिलेगा।