मैं आपको एक बात बता दूँ: जिस मनुष्य के पास प्यार है उसकी प्यार की मांग मिट जाती है। और यह भी मैं आपको कहूं: जिसकी प्यार की मांग मिट जाती है वही केवल प्यार को दे सकता है। जो खुद मांग रहा है वह दे नहीं सकता है।
इस जगत में केवल वे लोग प्यार दे सकते हैं जिन्हें आपके प्यार की कोई अपेक्षा नहीं है—केवल वे ही लोग! माँ और पिता इस जगत को प्यार देते हैं। जिनको हम समझ ही नहीं पाते। हम सोचते हैं, वे तो प्यार से मुक्त हो गए हैं। वे ही केवल प्यार दे रहे हैं। आप प्यार से बिलकुल मुक्त हैं। क्योंकि उनकी मांग बिलकुल नहीं है। आपसे कुछ भी नहीं मांग रहे हैं, सिर्फ दे रहे हैं।
प्यार का अर्थ है: जहां मांग नहीं है और केवल देना है। और जहां मांग है वहां प्रेम नहीं है, वहां सौदा है। जहां मांग है वहां प्यार बिलकुल नहीं है, वहां लेन-देन है। और अगर लेन-देन जरा ही गलत हो जाए तो जिसे हम प्यार समझते थे वह नफरत मे बदल जाएगा। लेन-देन गड़बड़ हो जाए तो मामला टूट जाएगा। ये सारी दुनिया में जो आशिक टूट जाते हैं, उसमें और क्या बात है? उसमें कुल इतनी बात है कि लेन-देन गड़बड़ हो जाता है। मतलब हमने जितना चाहा था मिले, उतना नहीं मिला; या जितना हमने सोचा था दिया, उसका ठीक प्रतिफल नहीं मिला। सब लेन-देन टूट जाते हैं।
प्यार जहां लेन-देन है, वहां बहुत जल्दी नफरत पैदा हो जाती है क्योंकि वहां प्यार है ही नहीं। लेकिन जहां प्यार केवल देना है, वहां वह शाश्वत है, वहां वह टूटता नहीं। वहां कोई टूटने का प्रश्न नहीं, क्योंकि मांग थी ही नहीं। आपसे कोई अपेक्षा न थी कि आप क्या करेंगे तब मैं प्यार करूंगा। कोई कंडीशन नहीं थी। प्यार हमेशा अनकंडीशनल है। कर्तव्य, उत्तरदायित्व, वे सब अनकंडीशनल हैं, वे सब प्यार के रूपांतरण हैं।
तो मैं आपसे नहीं कहता आप कैसे कर्तव्य निभाएं। जब आपको यह खयाल ही उठ आया है कि कैसे कर्तव्य निभाएं, तो आप पक्का समझ लें, आपके भीतर कोई प्यार नहीं है। तो मैं आपसे यह कहूंगा प्यार कैसे पैदा हो जाए।
और यह भी आपको इस सिलसिले में कह दूं कि प्यार केवल उस आदमी में होता है जिसको आनंद उपलब्ध हुआ हो। जो दुखी हो, वह प्यार देता नहीं, प्यार मांगता है, ताकि दुख उसका मिट जाए। आखिर प्यार की मांग क्या है? सारे दुखी लोग प्यार चाहते हैं। वे प्यार इसलिए चाहते हैं कि वह प्यार मिल जाएगा तो उनका दुख मिट जाएगा, दुख भूल जाएगा। प्यार की आकांक्षा भीतर दुख के होने का सबूत है। तो फिर प्यार वह दे सकेगा जिसके भीतर दुख नहीं है। जिसके भीतर कोई दुख नहीं है, जिसके भीतर केवल आनंद रह गया है, वह आपको प्यार दे सकेगा।
अब अगर मेरी बात ठीक से समझें: दुख भीतर हो तो उसका प्रकाशन प्यार की मांग में होता है और आनंद भीतर हो तो उसका प्रकाशन प्यार के वितरण में होता है। प्यार जो है आनंद का प्रकाश है। तो जो आदमी भीतर आनंद से भरेगा उसके जीवन के चारों तरफ प्यार विकीर्ण हो जाएगा। जो भी उसके निकट आएगा उसे प्यार उपलब्ध होगा। जो भी उसके करीब होगा उसका कर्तव्य पूरा हो जाएगा, उसका उत्तरदायित्व निभेगा। और उस आनंद के लिए तो मैं आपसे कहा कि अगर मैं कहूं कि प्यार आनंद का प्रकाश है, तो आनंद आत्मबोध का अनुभव है, उसके पूर्व नहीं है। दुख है कि हम अपने को नहीं जानते, अपने को नहीं जानते इसलिए प्यार मांगते हैं। अगर हम अपने को जानेंगे, आनंद होगा; आनंद होगा तो प्यार हमसे विकीर्ण होगा।
दोस्तो प्यार कोई सौदा नही है अल्लाह औऱ भगवान का दिया वह कीमती चीज है जो इंसान को इंसानियत सिखाता है इंसान को इंसान बनाता है
Rj अली हाशमी