आज दिलीप सरोज है कल हम होंगे
हक़ में उठाओ उसके आवाज़ जालिमो को दे दो जबाब
मर गई फिर इंसानियत इलाहाबाद के सीने में
गुजर रही ज़िन्दगी,यूं दुनियां लगी है रोने धोने में
तू भी तो किसी का लाल होगा ,ऐसे तू नदान न बन
सिसक रही हैं माँ,बैठकर किसी अंधरे कोने में
फुर्सत हो तो पूंछना,क्या दर्द है किसी को खोने में
तू भी किसी का बेटा होगा,ऐसे न हैवान बन