अनपढ़ नही हूं साहब
हिंदी में लिखना भी आता है
उर्दू मे पढ़ना भी आता है
कोरा कागज हूँ साहब
खुद को दिखाना भी आता है
खुद को छुपाना भी आता है
मुसाफिर हूं साहब
रास्ते पे चलना भी आता है
मंजिल को पना भी आता है
शायर हूं साहब
दर्द लिखना भी आता है
दर्द सहना भी आता है
Rj Ali Hashmi