थोड़ा समय लगेगा पर पढे ज़रूर
#दोस्ती/या #सौदा
मैं समझता हूं कि किसी भी चीज से गहराई से जुड़ने की क्षमता मुझमे रही है। – चाहे वो पेड़ हो या स्थान, जमीन हो या चट्टान या फिर इंसान – जिससे भी जुड़ा गहराई से जुड़ा। मेरी ये योग्यता कई मायनों में वह कुंजी रही है जिसने जीवन और प्रकृति के नये पहलुओं को मेरे सामने खोला है। स्कूल में दाखिले के बाद, तीन या चार साल की उम्र में मैंने अपना पहला मित्र बनाया। मेरा उसके साथ इतना ज्यादा लगाव था कि वह मेरे लिए किसी भी चीज से बढ़ कर था। आज भी मुझे उसका नाम याद है, पर मुझे यकीन है उसको याद नहीं होगा।
मेरे कई तरह के मित्र थे, तमाम जगहों पर सैकड़ों मित्र, लेकिन यह अलग बात है। मैं उस जुड़ाव की बात कर रहा हूं जो मैंने अपने मित्रों के साथ बनाया – मुझे हमेशा लगता है कि वह विशुद्ध लगाव था। लेकिन समय बीतने के साथ जीवन का अनुभव होने पर मैंने महसूस किया कि बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो मित्रता को इस रूप में लेते हैं। अधिकतर लोग मित्रता को समय और स्थिति से जोड़ कर देखते हैं।
मैं इसे दिल दुखाने वाला नहीं कहूंगा, लेकिन निश्चित रूप से यह निराशाजनक है कि ज्यादातर लोग अपने जीवन में गहरे रिश्ते नहीं बना पाते। वे सिर्फ वैसे ही रिश्ते बना पाते हैं जिनकी उनको जरूरत होती है।
स्कूली जीवन में आपके पास एक अलग तरह के मित्र होते हैं। स्कूली जीवन के बाद आप उनको पीछे छोड़ कर कॉलेज में दूसरे नए मित्र बना लेते हैं। कॉलेज खत्म होने पर आपके पेशे से जुड़े और कुछ दूसरे तरह के मित्र बन जाते हैं। लोग मित्रता को बस इसी तरह से देखते हैं। मैं इस दृष्टि से नहीं देख पाया. मैं इससे नाखुश या असंतुष्ट नहीं हूं, लेकिन यह मानव स्वभाव को जानने-समझने का मेरा अनुभव रहा है।
मित्रता की मेरी जरूरत कभी भी बहुत ज्यादा नहीं रही लेकिन जब भी मैं किसी से दोस्ती करता हमेशा यही सोचता कि यह स्थायी है और जो किसी खास वक्त या हालात के लिए की गई दोस्ती नही है बल्कि विशुद्ध दोस्ती है। मुझे यहां-वहां अच्छे मित्र मिले हैं पर जैसे-जैसे उनके जीवन की परिस्थितियां बदलती हैं, मित्रता की उनकी जरूरत बदल जाती है, उनका फोकस बदल जाता है। मेरे लिए यह कभी नहीं बदलती।
मैं इसे दिल दुखाने वाला नहीं कहूंगा, लेकिन निश्चित रूप से यह निराशाजनक है कि ज्यादातर लोग अपने जीवन में गहरे रिश्ते नहीं बना पाते। वे सिर्फ वैसे ही रिश्ते बना पाते हैं जिनकी उनको जरूरत होती है। वे अपनी जरूरतों से परे जा कर मित्रता नहीं कर पाते। केवल रिश्ते की खातिर रिश्ता बना लें ऐसा बहुत लोग नहीं कर पाते। वे जरूरत पड़ने पर ही रिश्ता बनाते हैं और जरूरत खत्म होते हीं उसको तोड़ देते हैं।
ऐसे मामलों में मैं थोड़ा-सा अनाड़ी हूं। अभी भी जब मुझे अपना कोई स्कूली मित्र दिखाई पड़ता है तो मैं उससे उसी प्रकार मिलता हूं जैसे पहले मिलता था। पर वह मित्र पहले जैसा नहीं मिलता। शायद वे जीवन में आगे बढ़ चुके होते हैं और मैं वहीं का वहीं रह गया। मैं हमेशा से जिंदगी से थोड़ा बाहर ही रहा हूं। मैं इस अनमोल जीवन को इसी तरह सम्मान दे पाता था इसलिए मैंने उसको हमेशा वैसा ही रखा। मेरे विचार से आज भी ऐसा ही है।
मैं समझता हूं कि जीवन मेरे साथ बड़ा ही उदार रहा है। उदार से मेरा मतलब सांसारिक चीजें उपलब्ध कराने से नहीं है। मैं जहां भी जाता हूँ, हर मोड़ पर जीवन मेरा ध्यान रखता है, बिना किसी कोशिश के वह मेरे सामने बाहें फैलाए स्वागत के लिए खड़ा मिलता है। जीवन प्रक्रिया मेरे समक्ष अपने सारे रहस्य खोलने को तैयार हो जाती है, शायद उस जुड़ाव के कारण जो मेरे संपर्क में आयी हर चीज के साथ मैं बना लेता हूं।
मित्रता की मेरी जरूरत कभी भी बहुत ज्यादा नहीं रही लेकिन जब भी मैं किसी से दोस्ती करता हमेशा यही सोचता कि यह स्थायी है और जो किसी खास वक्त या हालात के लिए की गई दोस्ती नही है बल्कि विशुद्ध दोस्ती है।
किसी अदना-सी निर्जीव वस्तु के साथ होने पर भी मैं उससे एक विशेष संबंध जोड़ लेता हूं। मसलन अगर मैं इस बात पर गौर करूं कि रामनगर मेरे लिए क्या मायने रखता है तो कहूंगा कि मेरा उस स्थान से बहुत गहरा नाता है क्योंकि मैंने अपने बचपन का एक बड़ा हिस्सा वहां बिताया था। मैं इसको भावुक हो कर नहीं देख रहा हूं, जैसा कि अन्य लोग आम तौर पर देखेंगे। यह तो बस एक खास लगाव की बात है जो मेरा वहां की मिट्टी से, पेड़ों से, पहाड़ियों से और वहां की हर चीज से रहा है। पिछले चार साल में बहुत-कुछ बदल गया है पर अब भी कई जगहें मेरी आंखों के सामने बिल्कुल साफ हैं जहां मैं घूमा करता था। ओह! कितनी गहराई से मैं वहां की चीजों को देखा करता था! फिर रामनगर के उन हजारों स्थानों में पूछे गए लाखों सवाल मेरे जहन में घूम जाते हैं। यह एक बिल्कुल खास तरह का नाता था जिसने मुझे अपने अंतरतम की खोज के एक विशेष स्तर तक पहुंचा दिया।
मेरे लिए रामनगर का अर्थ वे करोड़ों सवाल हैं और साथ ही उनके विस्मयकारी उत्तर भी| मित्रता का भी मेरे लिए यही अर्थ था| किसी के साथ बिताये वे कुछ पल – जरूरी नहीं कि भावना के स्तर पर रहे हों क्योंकि मैं उस अर्थ में किसी को भी ले कर सचमुच में कभी भावुक नहीं रहा – पर किसी-न-किसी तरह से जाने-अनजाने साझेदारी के वे पल एक तरह से मिलाप के और एकात्म के पल थे| साझा करने को मैंने कभी भी लेन-देन के रूप में नहीं देखा; मैंने साझा करने को हमेशा दो जिंदगियों के अंग-संग होने के रूप में देखा| मैंने मित्रता को कभी किसी ऐसी चीज के रूप में नहीं देखा जो फायदेमंद या उपयोगी हो या फिर जो आपकी जिंदगी को बेहतर बनाने या ऐसे ही किसी काम आ सके|
स्कूल में दाखिले के बाद, तीन या चार साल की उम्र में मैंने अपना पहला मित्र बनाया। मेरा उसके साथ इतना ज्यादा लगाव था कि वह मेरे लिए किसी भी चीज से बढ़ कर था।
अब भी जब मैं तमाम दुनिया की यात्रा करते हुए तरह-तरह के लोगों से मिलता हूं तो उनसे नेटवर्किंग नहीं करता, उनके फोन नंबर नहीं रखता, उनसे संपर्क करने की कोशिश नहीं करता,
Ali Hashmi