*परिस्थितियों से लड़ना सीखो*
इस बात में दो राय नहीं कि विपरीत परिस्तिथियों और कठिनाईयों के दौर में भी इंसान बहुत कुछ सीखता है। यही समय संघर्ष करने,और जीवन के असली अर्थ को समझने की प्रेरणा देता है।
अगर मैं अपनी बात करूँ तो मेरे जीवन में अंधकार-भरे दिन कई सारे रहे हैं।
मैं ये कह सकता हूँ कि अन्धकार मेरा साथी रहा है। बचपन से ही कई सारे कटु अनुभव रहे हैं ।
उन दिनों तो मैं अन्धकार से घबरा जाता था। उस समय ये पता नहीं था कि आने वाले दिनों में अंधकार बहुत कुछ सिखाएगा। ऐसा सिखाएगा कि ज़िन्दगी का सच्चा अर्थ ही समझ में आ जाएगा।
अन्धकार ये भी सिखाता रहा कि की ज़िन्दगी किस तरह से जीनी है, ज़िन्दगी में क्या करना ज़रूरी है और क्या नहीं।
वैसे तो ज़िन्दगी में अब तब कई बार टूटा हूँ , मुश्किलों के कई दौर से गुज़रा हूँ , बड़ी-बड़ी परेशानियों का सामना किया है , लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल कुछ साल पहले आयी। मैंने कभी सोचा भी न था कि ज़िन्दगी में इतने खराब और बुरे दिन देखने को मिलेंगे।
मैंने अपनी माँ को मौत से लड़ते देखा था। वो लड़ाई कोई मामूली लड़ाई नहीं थी ।असहनीय पीड़ा थी। दुःख था। उम्मीदें कम थीं , लेकिन जीने से लिए संघर्ष और मौत से लड़ाई जारी थी।
मेरी बडी बहन की तबियत अचानक बिगड़ी और वह इस दुनिया और हम सबको छोड़ के चली गई। इस दर्द से मेरी माँ को तो सदमा पहुँचाया था ही , मैं भी एक मायने में टूट चुका था । मैं अपनी माँ को बचाना चाहता था, उन्हें एक बार फिर हँसते-खेलते देखना चाहता था। लेकिन , मैं बेबस था , अपनी माँ की कोई मदद नहीं कर सकता था क्योंकि मेरी उम्र बहुत छोटी थी। मेरी माँ मौत से अपनी लड़ाई खुद लड़ रही थीं।
ऐसे लगने लगा था जैसे मैं अंधकार में घिर गया हूँ। दूर-दूर तक रोशिनी की कोई गुंजाइश नहीं है।
मैं सहम गया , घबरा गया। अजीब-सा डर मन में घर कर गया था।
लेकिन, अचानक इसी बुरे दौर में एक विचार आया। विचार था - पूरी ताक़त और दृढ़ता के साथ विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का संकल्प लेने का।
मैं ये संकल्प लिया भी। और संकल्प लेने के कुछ ही दिनों बाद जो हुआ उसे मैं अलौकिक घटना ही मानता हूँ।
मैंने अपने गाँव’ में आस-पास कई ऐसे लोगों को देखा जो ऐसे गटना से गुजरे हुए थे। उन टूटे हुए लोगों के हाथ थामने वाला कोई नहीं था। इनकी मदद करने वाला कोई आसपास नज़र नहीं आ रहा था। कोई उनके प्रति सहानुभूति भी नहीं जता रहा था। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया था।
पता नहीं मुझमें अचानक क्या हुआ। मैं उन टूटे हुए लोगों के पास गया फिर और उनसे बातचीत शुरू की।
इन लोगों के साथ समय गुज़ारते हुए मैंने उन्हें हंसने , बोलने , नाचने-गाने पर मजबूर किया।
इन लोगों की ख़ुशी देखकर मेरे मन में नया उत्साह जागा। अंधकार दूर होता नज़र आया। रोशनी बढ़ने लगी।
मेरी खुशी की उस समय कोई सीमा नहीं रही जब मैंने मेरी माँ को मुस्कुराते हुए देखा था।
वो शायद मेरे जीवन का सबसे ख़ुशी-भरा पल था ।
'गाँव' में मैंने जो देखा, किया और सीखा उसने मेरी ज़िंदगी बदलकर रख दी। मौत से लड़ते और ज़िन्दगी से संघर्ष करने वाले उन लोगों के बीच मेरे अनुभव ने मुझे एक नया इंसान बनाया था।
मैं तकलीफ में था, मेरी पीड़ा दूसरों से कम नहीं थी, हर तरफ निराशा थी, नाउम्मीदी थी। फिर भी इसी अंधियारे-भरे समय में एक परिवर्तन हुआ। मैं अच्छी तरह जान गया कि और पूरी ताकत, लगन और ईमानदारी से संघर्ष किया जाय तो विपरीत परिस्थितियों और मुश्किलों में भी एक ऐसी शक्ति हासिल की जा सकती है जिससे इस अद्वितीय जीत मिलेगी।
अब जब कभी मैं पीछे मुड़कर अपने अतीत की ओर देखता हूँ तो एहसास होता है कि मेरे संघर्ष ने ही मुझे लिखना सिखया प्रेरित किया। एक ऐसा मंच और ज़रिया है जहाँ आम आदमी से लेकर बड़ी बड़ी हस्तियां अपनी कहानियाँ लोगों के बीच पेश कर सकते हैं। ऐसी कहानियाँ जो दूसरों को प्रेरित करती हों ,संघर्ष करने और कभी निराश न होने की सीख देती हों। विपरीत परिस्थितियों और मुश्किलों का पूरी ताकत के साथ मुकाबला करने में उत्साह बढ़ाती हों। ऐसी जीवन गाथाएं जो असामान्य और अनूठी हों।
Rj अली हाशमी