*यह सृष्टि निरंतर गतिशील है , आज जो समय है कल वह भूत बन जाता है | काल गणना की सुविधा की दृष्टि से समय को तीन भागों में बांटा गया है जिसे भूतकाल वर्तमान काल एवं भविष्य काल कहा गया है | ध्यान देने वाली बात है भूत एवं भविष्य दोनों के लिए एक ही शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसे कहा जाता है "कल" | अंतर सि
*सनातन धर्म में जितना महत्व पूजा - पाठ , साधना - उपासना का है उससे कहीं अधिक महत्त्व परिक्रमा का है | परिक्रमा करने से अनेकों जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं | हमारे शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है :- "यानि कानि च पापानि , जन्मांतर कृतानि च ! तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदिक्षण पदे पदे !! अर्थात :- अनेक
*मनुष्य इस धरा धाम पर आने के बाद अपने जीवन में संतोष प्राप्त करना चाहता है पर मनुष्य को संतोष नहीं प्राप्त हो पाता | कोई ना कोई कमी जीवन भर उसे शूल की तरह चुभती रहती है | जीवन में यदि संतोष प्राप्त करना तो हमारे सनातन धर्म के रहस्य को समझना होगा | संतोष प्राप्त होता है त्याग से | हमारा देश भारत आदिक
*इस संसार में मनुष्य सुख एवं दुख के बीच जीवन यापन करता रहता है | मनुष्य को सुख एवं दुख यद्यपि उसके कर्मों के अनुसार मिलते हैं परंतु मनुष्य के दुखों के कारण पर हमारे शास्त्रों में विस्तृत चर्चा की गई है जिसके अनुसार मनुष्य के दुख के तीन मुख्य कारण बताए गए हैं :- १- अज्ञान , २- अशक्ति एवं ३- अभाव | य