गीत
रामायण ने हमें सिखाया, नारी का सम्मान करो।
ज्ञानवान बन जाओगे यदि, संस्कार का ध्यान करो।।
नारी कुल उत्थान करें,मत समझो कभी विचारी है।
यदि अपनी पर आ जाए तो, नारी नर पर भारी है।।
नारी यदि मर्यादा भूले, कुल की बने शिकारी है।
रावण जैसे दानव की ,संहारक बनती नारी है।।
सत्य सनातन धर्म सिखाता, सब नारी का मान करो।
ज्ञानवान बन जाओगे यदि, संस्कार का ध्यान करो।।
सीता हरण किया रावण ने, जिस कारण कुल नाश हुआ।
काल विजेता सीता के, कारण ही काल का ग्रास हुआ।।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु का, सफल तभी वनवास हुआ।
सति सुलोचना की पति भक्ति, का भी देखो हृास हुआ।।
रावण बन कर कभी भूल से, मत मन में अभिमान करो।
ज्ञानवान बन जाओगे यदि, संस्कार का ध्यान करो।।
रामचन्द्र ने सिला बनी वह, नार अहिल्या तारी थी।
जो पति के भ्रम के कारण ही,अपनी अस्मत हारी थी।।
गौतम ऋषि ने श्राप दिया, पर बात न तनिक विचारी थी।
छलिया इंद्र बना जिस कारण, हुई भूल इक भारी थी।।
बात कोई हो गुस्से से पहले , कुछ अनुसंधान करो।
ज्ञानवान बन जाओगे यदि, संस्कार का ध्यान करो।।
मात पिता के बचनों में ही, इस जीवन का सार छुपा।
वन में भी खुशहाली मिलती, यही नेह आधार छुपा।।
कष्ट झेलकर सुख मिलता है, इसमें सुख का द्वार छुपा।
निर्वल सबल बना करता, और सबल बने लाचार छुपा।।
क्या अच्छा क्या बुरा यहाँ है, तुम इसका अनुमान करो।
ज्ञानवान बन जाओगे यदि, संस्कार का ध्यान करो।।
सत्य सनातन से टकरा कर, हर दम मुहकी खाओगे।
जो दानवता अपनाओगे, कुल समेत मिट जाओगे।।
बन कर यदि सुग्रीव मित्रता, सच्ची कभी निभाओगे।।
रावत रामलला की भांती, मीत हमें तुम पाओगे।।
भूले से बंधुत्व भाव का, अब मत तुम अवसान करो।
ज्ञानवान बन जाओगे यदि, संस्कार का ध्यान करो।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश