दोहा
मानवता संसार में, होती बहुत महान।
मानवता से होत है, मानव की पहचान।।
मानवता को चाहिए, मानव का यह फर्ज।परोपकार करता रहे, मगर न समझे कर्ज।।
भूखे को दो रोटिंयां,अरु प्यासे को नीर।
मानवता के कर्म से, चमकेगी तकदीर।।
मानव को मानव समझ, करें प्रेम व्यवहार।
जीवन में होता यही, मानवता का सार।।
जिस मानव ने पा लिया, मानवता का मर्म।
दुनिया में उसके लिए, बड़ा न कोई धर्म।।
हरि है हर इंसान में, कहते वेद पुराण।
हरि की इच्छा से रहें, मानव तन में प्राण।।
हर मानव हरि तुल्य है, यही बनाओ रीत।
भव बंधन को मेट कर, तुम जाओगे जीत।।
मानव सेवा से बड़ा, नहीं धर्म कछु आन।
मानवता करते रहो, निश्चित हो उत्थान।।
मानव मन है मोम सा, मत मन करो मलीन।
मानव सरिता तुल्य है , मानवता है मीन।।
जीव जन्तु हैं आत्मा, कीजे नहीं प्रहार।
मानवता यह मानती, कीजे शाकाहार।।
रावत मानवता मरें , मानव हो बेशर्म।
लोकलाज को छोड़ कर, करने लगे कुकर्म।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल