13 सितम्बर 2021
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अखिल भारतीय कवि मंचों पर आठ राज्यों के कई शहरों में काव्य पाठ किया, कविता मंचों पर निरंतर सक्रियD
<p><br></p> <p>शिक्षक दिवस के दोहा</p> <p>कूट कूट कर भर दिया,हम में कुशल विवेक।<br> <br> गुरुवर के ह
<p>दोहा</p> <p>सब कुछ हासिल कर सको, यार दोबारा आप।</p> <p>लेकिन फिर से ना मिलें, दूजे मां और बाप।।</
<p><br></p> <p>गज़ल<br> <br> सबके हक में बना , रोशनी  
<p><br></p> <p>दोहा<br> <br> मानवता संसार में, होती बहुत महान।<br> <br> मानवता से होत है, मानव की पह
<div>संतान सप्तमी व्रत</div><div>उपवास रह लूँगीं</div><div><br></div><div>सहा है कष्ट मैंने तब, अभी
<div><div><div><span style="font-size: 16px;">राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं सहित।</span></div><d
<p><br></p> <p>गीत<br> <br> रामायण ने हमें सिखाया, नारी का सम्मान करो।<br> <br> ज्ञानवान बन जाओगे यद
<p>नसीब का</p> <p>गज़ल<br> होता है खेल सिर्फ ,जहां में नसीब का।<br> चाहे अमीर का कहो, चाहे गरीब का।।
<p>शत शत नमन हमारा है।</p> <p><br></p> <p>दूसरी सर्जिकल स्टाइक पर मेरी आसू रचना।।</p> <p>आज गर्व से
<p><br></p> <p>दोहा<br> <br> वादा ऐसा कीजिए , जिसमें रहे विधान।<br> <br> कुट
<p>आदिशक्ति मां अम्बिका</p> <p><br></p> <p>दोहा<br> <br> आदिशक्ति मां अम्बिका, तेरे रूप अपार।<br> <b
<p>मर्यादा</p> <p>मर्यादा<br> <br> मर्यादा का पालन करना, सबको बहुत जरूरी है।<br> <br> संस्कार से ह
<p>कहानी</p> <p><br></p> <p>यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, समानता संयोग से हो सकती है।<br> <br> राकेश
<p>अमानत में</p> <p><br></p> <p>घायल होते देखे हमने, कुछ परबाज अमानत में।<br> <br> डाल रही हैं
<p>आईना</p> <p>मुक्तक</p> <p>गरीबी का नहीं आभास होता धन के दर्पण में।</p> <p>मगर अन्याय दिखता है, हर
<div>इक्हत्तर की भूलें।</div><div><div align="left"><p dir="ltr">घनाक्षरी छंद<br> एक लाख सैनिकों को,
<div>दोहे</div><div>मेरे भोलेनाथ।</div><div><div><br></div><div><span style="font-size: 16px;">श्रृद
<div>आपकी नजर</div><div><div align="left"><p dir="ltr">गज़ल<br> कहां तरक्की बोलो र
याद आता है।गीत तुम्हारे साथ में गुजरा, जमाना याद आता है। जो मिलकर गुनगुनाते थे, तराना याद आता है।। कभी जब बैठते तन्हाई में हम झील के तट पर। उमड़ पड़ते थे सब जज्बात तेरी चाह की रट पर।। कभी आभास मेघों
क्या भरोसाएक गजल आपकी खिदमत में क्रूरतम हाथों का संम्बल क्या भरोसा । आज सा स्नेह हो कल क्या भरोसा।। बदलते ऋतु चक्र का सँदेश है ये। पेड पर कल भी लगें फ़ल क्या भरोसा।। मेघ न
दोहेरूप चतुर्दशी के दोहारूप चतुर्दशी आज है, निर्मल कीजे देह।उवटन मल स्नान कर, खूब बढ़ाएं नेह।।नरक चतुर्दशी भी कहें,इसे बहुत से लोग।आज नहाए जो नहीं, उसको व्यापें रोग।।पावन आप बनाईए, घर आंगन को लीप
भवानी तेरे रूप की उतारते हैं आरती। हे आदिशक्ति कालिका, भवानी मातु भारती।। कुचक्र चक्र को मिटाती, तू समय की चालिका। दुरात्मा का खात्मा, तू करती न्याय पालिका।। प्रचंड रूप धर जरा तू, आज मातु कालिका। निशा