दोहा
वादा ऐसा कीजिए , जिसमें रहे विधान।
कुटिल केकई चाल में,तजें न दसरथ प्रान।।
वादा हो हरिचन्द्र सा , भले भुला कर नेह।
प्रण रखने को बिक गये, स्वयम् डोम के गेह।।
मोरद्धवज ने प्रण किया, बिना बहाए नीर।
वादा पूरा कर दिया, अपने सुत को चीर।।
अपने वादे के लिए, वन में किया मुकाम।
चौदह बर्षो के लिए, वन में भटके राम।।
वादे पर कायम रहे, भारत के रणवीर।
फांसी पर चढ़ते हुए, बने रहे मतिधीर।।
प्रण पर वो कायम रहे, करो जरा तुम याद।
अ़ग्रेजों को खल गये, जीवन भर आजाद।।
राजनीति में हो रहे, झूठे वादे रोज।
कुर्सी पाकर कर रहे, कालेधन की खोज।।
चातक वादे के लिए, सहे साल भर पीर।
सिर्फ़ स्वाति नक्षत्र का, ही पीता है नीर।।
रावत वादा कीजिए , जो पूरा हो जाय।
वादा जो नर तोड़ दे, वो नर कभी न भाय।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश