आदिशक्ति मां अम्बिका
दोहा
आदिशक्ति मां अम्बिका, तेरे रूप अपार।
जो भी दर पे आ गया, उसका बेड़ा पार।।
नौ दिन के नौ रूप हैं, नव दुर्गा है नाम।
भक्त आरती गा रहे, द्वार भोर अरु शाम।।
मधु कैटव को मार कर, किया बड़ा उपकार।
हे जग जननी आज फिर, हरो भूमि का भार।।
महिषासुर को मारने , रखा कालिका रूप।
माता तेरे द्वार पर , शीश झुकाते भूप।।
खाली झोली भर गई, जो आया है द्वार।
भक्तों पर बरसा रही, जग जननी उपहार।।
पर्वत पर मंदिर बना , द्वार खड़ा है शेर।
माता रानी भक्त हित, करे ना पल की देर।।
आदिशक्ति के द्वार पर, भक्तों की है भीर।
सच्चे मन से ध्याईए , मां हर लेगी पीर।।
दुर्गा माता आ गई , खप्पर लेकर हाथ।
अपने भक्तों पर करे, खुशियों की बरसात।।
हलुआ पूरी प्रिय लगे , माता को परसाद।
भक्त बाँटते प्रेम से , पूरी करें मुराद।।
बांझन को ललना मिलें, लंगड़े चढ़े पहार।
गूंगे गाएं आरती , मां भरती भंडार।।
रावत आया द्वार पर , विनय करे कर जोर।
आदिशक्ति माता करो, अब उन्नति की भोर।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश