शिक्षक दिवस के दोहा
कूट कूट कर भर दिया,हम में कुशल विवेक।
गुरुवर के हम विश्व में,कोई आन नहिं नेक।।
अपने शिष्यों का सदा, जो करते उत्थान।
गुरु से बढ़ कर है नहीं, कोई और महान।।
हृदय बज्र के सम करें, तब गुरु मारें चोट।
शिष्य न झेले वेदना, मरते उसके खोट।।
अबगुण गुण में बदलते, ऐंसा करें निदान।
ईश्वर भी यह जानते, गुरु हैं बहुत महान।।
गुरुवर करता आपको, आज नमन धर शीश।
बस इतनी अभिलाष है, बना रहे आशीष।।
गुरुवर वह घट मानिए, मेटे सबकी प्यास।
ज्ञान पुष्प की शिष्य में, भरता रहे सुवास।।
गुरुकुल सा है कुल नही, गुरु सम नहि भगवान।
कृष्ण गये संदीपनी, आश्रम लेने ज्ञान।।
सारे कुल को तार दे, ऐंसी निधि है ज्ञान।
गुरुभक्ती में ही छुपे, रहते सकल निदान।।
गुरु रत्ना को मान कर, किया पूर्ण विश्वास।
कामी तुलसी बन गये, हरि के तुलसीदास।।
गुरु की महिमा जानिए, गुरु है गुण की खान।
गुरु चरणों में झुक गये, जग पालक भगवान।।
गुरु की बातों पर दिया,अगर अपने ध्यान।
गुरु की बातें आपको, कर देंगी गुणवान।।
दंड अगर गुरु ने दिया, समझो उसे प्रशाद।
इस जीवन में राखिए, सीख गुरू की याद।।
गुरु का जब आशीष हो , तब आता है ज्ञान।
अपने गुरु को पूंजते, हैं सारे विद्वान।।
गुरुवाणी में ही छुपा, इस जीवन का सार।
मंदिर सा प्यारा लगे, मुझको गुरु का द्वार।।
कोई नही लगता मुझे, गुरु से बढ़ कर नेक।
गुरु का जब स्नेह हो,निखरे खूब विवेक।।
दुनिया में उनसे बड़ा कोई नही महान।
शिष्यों के उत्थान हित, करते विद्या दान।।
खोल ज्ञान की पोटली,हरते हैं अज्ञान।
गुरु को देते जाईए, पिता तुल्य सम्मान।।
रावत वंदन कर रहा,गुरुवर दोऊ कर जोर।
अपने इस स्नेह की, रखें बनाए भोर।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
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