गज़ल
सबके हक में बना , रोशनी मर गया।
एक मासूम सा , आदमी मर गया।।
जब दरिंदों ने लूटी थी , मासूम को।
अपनी आँखों में भर कर, नमी मर गया।।
कर्जदारी ने जब , तोड़ डाला उसे।
बेचकर वो बेचारा , जमीं मर गया।।
सह नहीं पाया जब , झूठे इल्जाम वो।
एक खुद्दार कर , खुदकसी मर गया।।
गमज़दा ने कभी , गम कहा ही नहीं।
अपने मासूक को दे , खुशी मर गया।।
इस तरहां से जगी , उसकी इँसानियत।
आदमी बन गया , मज़हबी मर गया।।
एक भवरा तो रावत , किसी बाग में।
फूल की देख कर , ताजगी मर गया।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश