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जाने क्यों बेहोशी सी छाई हैं..
ऐसा क्या जो तुममें देख पाई हैं..
यें नशा मेरी सोलहवें सावन क़ी हैं..
या..किसी ने चुपके से भंग पिलाई हैं..
जाने यें क्या हुई, जो ऐसी नशा आईं हैं..
मेरे मुक़ददर मे जाने शायद तूने हीं अपना..नाम लिखाई हैं..
वैसे हीं तो नहीं जिंदगी क़ी...यें रुसवाई हैं..
जो मुझें सोलहवें सावन सी नशा छाई हैं..
सिर्फ देखा.. तुझे मैं तेरी पिक्चर में हीं भरपूर..
उसमें हीं मेरी हालत हुई हैं चूर चूर..
और करने लगी हुँ.. ऐसे हीं झूट मुठ गुरुर..
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