देहरादून : उत्तराखंड में लंबे समय से चल रहे खनन कारोबार पर अदालत ने सख्त रुख अपनाया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने खनन पर चार महीने के लिए रोक भी लगा दी है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि खनन के अध्ययन के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन भी किया जाये।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यह आदेश एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिया। अदालत का कहना है कि इस समिति को पर्यावरण और खनन पर अगले 50 साल का ब्लूप्रिंट भी तैयार करना होगा। इस समिति को अपनी अंतरिम रिपोर्ट चार महीने और आखिरी रिपोर्ट 9 महीने के भीतर सौंपनी होगी। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा है कि जब तक इस मामले में समिति की अंतिम रिपोर्ट न आ जाये तब तक खनन के लिए कोई भी लाइसेंस न दिया जाये।
गौरतलब है कि हरिद्वार में खनन को रोकने के लिए लंबे समय से साधु-संत भी आंदालन कर रहे हैं। इस दौरान खनन के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले स्वामी निगमानंद की खनन माफियाओं ने हत्या कर दी थी।
मातृसदन ने स्वामी शिवानन्द ने इंडिया संवाद से बातचीत में बताया था कि हरिद्वार में खनन के खिलाफ मातृसदन की लड़ाई 1998 के कुम्भ के साथ शुरू हो गई थी। उस वक़्त कई द्वीपों को खोदा गया और द्वीप के समतलीकरण के नाम पर करोड़ों का आबंटन हुआ लेकिन कुम्भ क्षेत्र को उससे कम रॉयल्टी मिली।
1998 के बाद भी कुम्भ क्षेत्र में खनन का काम चालू रखा गया और इसका काम एक शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा को दे दिया गया। इस पर संत समाज के रुख को देखते हुए तत्कालीन डीएम ने आराधना शुक्ल ने एक जांच कमेटी बिठाई। जिसमे यह बात साफ़ हो गई कि खनन के नाम पर हरिद्वार में द्वीपों को नष्ट किया जा रहा है। जिसके बाद कुम्भ क्षेत्र में खनन पर रोक लगाई गई साथ ही इस कारोबारी ग्रुप को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया। स्वामी शिवानन्द कहते हैं कि इस आदेश के बाद भी माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों ने एक और चाल चली, उन्होंने कुम्भ क्षेत्र का दायरा ही घटा दिया।