नई दिल्ली : बीते कुछ समय से संसद से लेकर अदालतों तक आधार की अनिवार्यता की चर्चा जोरों पर है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में कहा है कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार अनिवार्य नही होना चाहिए। वहीं कुछ लोग आधार की अनिवार्यता को इसलिए भी सही नही मान रहे हैं क्योंकि इससे उनकी निजी जानकारी आसानी से कोई भी पता कर सकता है।
आधार की अनिवार्यता का असर मध्यप्रदेश में तमाम एचआईवी/एड्स रोगियों पर हुआ है। हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से खबर लिखी है कि शिवराज सिंह सरकार ने राज्य में मरीजों की मुफ्त दवाई और एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है।
सरकार के इस आदेश के बाद एचआईवी/एड्स के रोगियों को इस बात का डर बना हुआ है इससे उनकी पहचान जगजाहिर हो जाएगी। सूत्रों ने बताया कि नए नियम के लागू होने के बाद कई रोगियों और संदिग्ध पीड़ितों ने एटीआर केंद्रों और जिला अस्पतालों से बचना शुरू कर दिया है। यह उनके लिए सामाजिक कलंक के डर को आमंत्रित कर सकता है।
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने जानकारी दी है कि एमपी राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी ने इस साल फरवरी से आधार कार्ड को अनिवार्य बना दिया था। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) ने हाल ही एचआईवी/एड्स के साथ रहने वाले सभी लोगों पर प्रभावी निगरानी के लिए आधार से जोड़ने के लिए एआरटी केंद्रों को भी लिखा है लेकिन कई स्वास्थ्य कार्यकर्ता कहते हैं कि निर्देश जारी करते समय इस कदम के नकारात्मक नतीजे को ध्यान में नहीं रखा गया।
आधार कार्ड भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को जारी किया जाने वाला पहचान पत्र है। इसमें 12 अंकों की एक विशिष्ट संख्या छपी होती है जिसे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (भा.वि.प.प्रा.) जारी करता है। यह संख्या, भारत में कहीं भी, व्यक्ति की पहचान और पते का प्रमाण होगा। भारतीय डाक द्वारा प्राप्त और यू.आई.डी.ए.आई. की वेबसाइट से डाउनलोड किया गया ई-आधार दोनों ही समान रूप से मान्य हैं।