अधूरी ख्वाहिश ( भाग 2)
" मानवी क्या सोच रही हो"? दिव्या ने गहरी नज़रों से मानवी को देखते हुए पूछा।
" कुछ नहीं दिव्या " मानवी ने बात टालते हुए कहा और वहां से चलीं गईं।
दिव्या के मन में भी हलचल मच गई वह सोचने लगी कहीं मानवी ने अपनी मां की बातों को गंभीरता से ले लिया तो उसके लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी । दिव्या सोचने लगी कहीं मानवी उससे यह न कह दे की तुम मेरे घर से चली जाओ तब क्या होगा।यही सोचते हुए दिव्या भी अपने कमरे में चली गई उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था वह जब नहा-धोकर नीचे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करने के लिए आई तो उसने देखा कि, वहां सुधा जी और मानवी पहले ही बैठी हुई हैं।
उसे देखकर किसी ने कुछ नहीं कहा मानवी ने दिव्या का नाश्ता निकाला और उसके सामने रख दिया। दिव्या ने देखा की वहां का माहौल तनावपूर्ण है दिव्या ने माहौल को हल्का करने के लिए हंसते हुए कहा " चाची जी आज नाश्ता तो मेरी पसंद का बना है आपने आलू के परांठे बनाए हैं आप जैसा आलू का पराठा कोई और बना ही नहीं सकता। मेरे पापा को भी आलू के परांठे और दही बहुत पसंद था" दिव्या की बात सुनकर सुधा जी ने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठकर जाने लगी।
" चाची जी रूकिए मुझे आपसे कुछ बात करनी है" दिव्या ने सुधा जी को रोकते हुए कहा।
" मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है तुम्हारे कारण मेरी सीधी-सादी लड़की मुझे जवाब देने लगी है। पता नहीं तुम्हें कैसे संस्कार तुम्हारी मां ने तुम्हें दिए हैं जो तुमने अपनी ही सहेली के मंगेतर को अपना बनाने की कोशिश की मुझे तुम जैसी लड़की से कोई बात नहीं करनी है" सुधा जी ने गम्भीर लहज़े में कहा और वहां से जाने लगी।
" नहीं चाची जी आप मुझे कुछ भी कहिए मेरी मां को कुछ न कहिए उनके संस्कार में कोई कमी नहीं है उन्होंने मुझे बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं मैं ही स्वार्थी हो गई थी।जब मां को मेरे गलत इरादों का पता चला तो उन्होंने ही मुझे रोका और समझाया कि, किसी दूसरे की खुशियां छिन कर झूंठ का सहारा लेकर हम सुखी नहीं रह सकतें हैं। मां की बात सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ तब मैंने रागिनी और आदर्श को सब बता दिया कि,उन दोनों के बीच मैंने गलतफ़हमी पैदा की थी। चाची जी अब मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी जिससे मानवी के जीवन में दुःख के बादल छा जाएं आप मेरा विश्वास कीजिए मानवी मेरी बहन से बढ़कर है" यह कहते हुए दिव्या की आंखों से आंसू बह रहे थे।
" जिस पर हम सबसे ज्यादा विश्वास करते हैं वही हमारे साथ विश्वासघात करता है यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है मुझे समझाने की जरूरत नहीं है। अपने ही तो पीठ में खंजर भोकते हैं मुझे तुम्हारी किसी भी बात पर विश्वास नहीं है तुम भरी गंगा में खड़ी होकर मुझे विश्वास दिलाओ तो भी मैं तुम पर विश्वास नहीं कर सकती।तुम मीठा ज़हर हो जो किसी के भी जीवन को ज़हरीला बना सकती है ज़हर कितना ख़तरनाक है इसका पता लगाने के लिए ज़हर को चखने की जरूरत नहीं होती वरना चखने वाला ही बर्बाद हो जाएगा" सुधा जी ने कठोर शब्दों में कहा।
तभी दरवाजे की घंटी बजी घंटी की आवाज़ सुनकर मानवी जो अपनी मां की बात सुनकर स्तब्ध थी चौंक गई उसने आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो सामने कुंवर साहब के दोस्त शेखर खड़े हुए थे।
" शेखर भैया आप यहां आइए अंदर आइए" मानवी ने हंसते हुए कहा।
शेखर अंदर आ गए शेखर की नज़र जब दिव्या पर पड़ी तो शेखर दिव्या के सौन्दर्य को देखकर स्तब्ध हो गए वह एकटक दिव्या को देखते रहे। दिव्या भी किसी अंजान व्यक्ति को अपनी तरफ़ देखता पाकर सकपका गई।
सुधा की अनुभवी आंखों ने जान लिया कि, दिव्या के रूप का जादू चल गया अब शेखर को दिव्या के मोहपाश से आजाद करवाना बहुत मुश्किल हो जाएगा हो सकता है कि,यह सम्भव ही न हो क्योंकि लड़कियों और औरतों की सुन्दरता पुरूषों की सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है जिसका लाभ चालक औरतें उठा लेती हैं। दिव्या तो इस खेल में माहिर हैं अब मुझे ही शेखर को इस दिव्या नाम की मुसीबत से बचाना होगा सुधा जी मन ही मन विचार करने लगी।
" अरे शेखर बेटा अचानक यहां कैसे आना हुआ" सुधा जी ने शेखर को गहरी नज़रों से देखते हुए कहा सुधाजी की गहरी नज़रों को देखकर शेखर बगले झांकने लगा।
" आंटी जी रानी मां ने मानवी भाभी की सहेली को बुलवाया है भाभी ने शायद कुंवर साहब से अपनी सहेली की नौकरी की बात की थी। रानी मां ने कहा है कि, भाभी अपनी सहेली के साथ उनके पास आएं। रानी मां भाभी की सहेली से मिलने के बाद ही कोई फैसला करेगी कि कैसी नौकरी दी जाए" शेखर ने एक ही सांस में सब कुछ कह दिया शेखर के चेहरे पर घबराहट थी जैसे उनकी चोरी पकड़ ली गई हो।
" बैठिए शेखर भैया आप मां से बातें कीजिए हम दोनों अभी तैयार होकर आ रहे हैं" मानवी ने कहा और वहां से चली गई थोड़ी देर बाद दोनों हाल में आ गई।शेखर की नज़र फिर से दिव्या पर टिक गई दिव्या ने फिरोजी रंग का सलवार सूट पहना हुआ था उसने लम्बे बालों की एक ढ़ीली ढ़ीली चोटी बनाई हुई थी हल्का सा किया गया मेकअप उसके सौंदर्य में चार चांद लगा रहा था।
" चलें शेखर भैया" मानवी ने हंसते हुए पूछा
"हां चलिए मैं तो तैयार हूं" शेखर ने मुस्कुराते हुए एक गहरी नज़र दिव्या पर डाली।
दिव्या शेखर की नज़रों की गर्माहट महसूस कर रही थी पर उसने उस तरफ़ ध्यान नहीं दिया थोड़ी देर बाद शेखर की गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी।शेखर गाड़ी चलाते हुए भी गाड़ी के मिर्र से दिव्या को देख रहा था। थोड़ी देर बाद गाड़ी एक आलीशान महल नुमा हवेली के सामने आकर खड़ी हो गई महल का सौंदर्य देखकर दिव्या की आंखें फटी की फटी रह गई।
एक वर्दीधारी ड्राईवर ने आगे बढ़कर गाड़ी का दारवाजा खोला दिव्या मूर्तवत गाड़ी से उतर कर मानवी के साथ आगे बढ़ी। दिव्या के चेहरे के भावों को देखकर मानवी का दिल जोर जोर से धड़कने लगा वह मन ही मन सोचने लगी कहीं मैंने दिव्या को यहां लाकर कोई गलती तो नहीं की क्या मां का शक हकीक़त बन सकता है।यह सोचकर मानवी के शरीर में एक झुरझुरी की शरद लहर दौड़ गई।
तभी मानवी की नज़र शेखर पर पड़ी उसने देखा कि, शेखर दिव्या को बहुत प्यार से निहार रहा है तभी मानवी के मन में एक विचार बिजली की तरह कौंध गया अगर शेखर और दिव्या को एक दूसरे के निकट ला दिया जाए तो। दिव्या कुंवर साहब से दूर रहेगी तभी वह लोग उस आफिस के सामने पहुंच गए जहां रानी साहिबा बैठती थी वह हवेली का ही एक बड़ा कक्ष था।
इजाज़त लेकर तीनों कमरे में दाखिल हुए रानी साहिबा किसी फ़ाइल को देख रही थी उन्होंने फाइल देखते हुए ही कहा तुम लोग बैठ जाओ मानवी शेखर और दिव्या कुर्सियों पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद जब रानी साहिबा ने फाइल एक तरफ़ रख कर अपनी नज़र ऊपर उठाई तो अपने सामने बैठी दिव्या को देखकर चौंक गई••••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
17/5/2021