नई दिल्लीः गए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास....। यह कहावत यूपी में अखिलेश सरकार पर तब फिट बैठी जब वह सूबे में एक लाख करोड़ के माइनिंग महाघोटाले की सीबीआई जांच रोकवाने के लिए हाई कोर्ट पहुंची। हाई कोर्ट ने किसी तरह की राहत देने की कौन कहे सरकार के रवैये पर नाराज होकर सीबीआई को आठ सितंबर तक जांच रिपोर्ट पेश करने को कह दिया। यानी गए थे राहत मांगने और सीबीआई जांच और जल्दी कर रिपोर्ट मांग जाने की गले मुसीबत पड़ गई। दरअसल हाईकोर्ट के आदेश पर सूबे में सीबीआई की ओर से अवैध खनन का बहीखाता खंगाले जाने से अखिलेश सरकार बुरी तरह डरी है। कारण कि जांच होने पर माफिया तो नपेंगे ही उसी के साथ अखिलेश के छोटे भाई प्रतीक यादव और उनके कुनबे के सबसे प्रिय व मालदार मंत्री गायत्री प्रसाद के गिरेबान तक भी जांच की आंच पहुंचेगी।
आठ सितंबर तक सीबीआई पेश करे जांच रिपोर्टःहाईकोर्ट
यूपी सरकार की लीपापोती भरे रवैये से नाराज हाई कोर्ट ने सीबीआई को आठ सितंबर तक हर हाल में जांच की प्रगति रिपोर्ट पेश करने को कहा है। हाई कोर्ट ने कहा है कि अवैध खनन की बार-बार शिकायतें आने से यह जानना जरूरी हो गया है कि यूपी में क्या चल रहा है। बता दें कि बीते 28 जून को सीबीआई ने जनहित याचिकाओं पर सीबीआई जांच के निर्देश दिए थे।
यूपी सरकार के महाधिवक्ता ने कहा-हुजूर मत कराइए जांच
राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने कहा कि कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश देते समय उनका पक्ष नहीं सुना और न ही तथ्यों पर विचार किया। इससे पहले कई अन्य याचिकाएं दाखिल हुईं थीं मगर, कोर्ट अवैध खनन की जांच के आदेश देने से इन्कार कर चुकी है। क्योंकि कोर्ट के समक्ष अवैध खनन के समुचित साक्ष्य याची नहीं पेश किए। लिहाजा हाई कोर्ट ने जल्दबाजी में जांच के आदेश दिए हैं। ऐसे में सीबीआई जांच पर रोक लगाई जाए। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने कहा कि सरकार ने अवैध खनन पर रोक के पूरे प्रबंध किए हैं। प्रत्येक जिले में निगरानी टीम गठित की है।
हाई कोर्ट ने कहा-जांच पर आपको दिक्कत क्या
जब यूपी सरकार के महाधिवक्ता ने पक्ष रखा तो हाई कोर्ट ने चुटकी लेते हुए कहा कि आपको सीबीआई जांच रिपोर्ट में आने में क्या दिक्कत है। रिपोर्ट आने पर दूध का दूध पानी का पानी साफ हो जाएगा। कोर्ट तकनीकी कारणों से सीबीआई जांच नहीं रोक सकता। हाई कोर्ट ने यूपी सरकार के तर्क काटते हुए कहा कि अर्जी की सुनवाई हो रही है। दोनों पक्षों को नजीर पेश करने के लिए कहा गया है। ऐसे में जांच के आदेश देने के पर्याप्त कारण न होने का तर्क बेमानी है।