नई दिल्लीः स्थान- यूपी के प्रतापगढ़ का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र। बेटा गोद में बाप को लिए एक डॉक्टर के चेंबर से दूसरे चेंबर में दौड़ता रहा, मगर जिम्मेदार...अगले कमरे में जाओ..अगले कमरे में जाओ...कहकर इलाज में ना-नुकुर करते रहे। लाख मिन्नत के बाद एक इंजेक्शन लगाकर पिंड छुड़ाते हुए घर जाने को कह दिया। मगर हालत गंभीर होने पर बाप ने बेटे की गोद में तड़प-तड़पकर दम तोड़ गया। यह देख लाचार बेटा बदहवास हो गया और वापस अस्पताल लौटकर परिसर में दहाड़े मारकर रोने लगा। एक बार फिर यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं का काला चेहरा सामने आया। जी हां, इश्तहारों में बेशक एंबुलेंस दौड़ती दिखे, मरीजों का मुस्कुराकर हालचाल लेने की डॉक्टरों की तस्वीरें छपें और ऊपर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की भी खिलखिलाती तस्वीर संग आंकड़ों की बाजीगरी से स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी की ढोल पीटी जाए मगर हकीकत करैली की तरह बहुत कड़वी है। प्रतापगढ़ की तरह हर रोज सूबे के किसी न किसी अस्पतालों से बीमार सिस्टम के दम तोड़ने के ऐसे किस्से निकलते रहते हैं। कोई मामला कभी हाईलाइट होता है तो कार्रवाई हो जाती है, नहीं तो तमाम मामलों में कहीं कोई सुनवाई नहीं होती।
मौत होने पर भी कर दिया जिला अस्पताल रेफर
प्रतापगढ़ के आसलपुर गांव के रहने वाले बबलू के पिता अफजल की तबीयत खराब हुई तो एंबुलेंस को फोन किया गया। मगर एंबुलेंस नहीं मिली। किसी तरह निजी साधन का इंतजाम कर बबलू पिता को लेकर स्थानीय सरकारी हॉस्पिटल पहुंचा तो चिकित्सक इलाज न कर इधर-उधर टरकाते रहे। काफी गुहार लगाने के बाद भी सिर्फ एक इंजेक्शन लगाकर घर भेज दिया। रास्ते में अचानक अफजल की हालत और नाजुक हो गई। गोद में लेकर भागते हुए बेटा फिर अस्पताल पहुंचा तो चिकित्सकों ने चेक किया तो मरीज की मौत हो चुकी थी। बावजूद इसके चिकित्सकों ने अपनी जान बचाने के लिए मरीज को गंभीर बताकर जिला अस्पताल रेफर कर दिया।
देरी से पहुंचने के कारण मरीज को बचा न सके
उधऱ मुख्य चिकित्साधिकारी यूके पांडेय ने इलाज में लापरवाही की बात से इन्कार किया। उनका कहना है कि मरीज को सांस की समस्या थी। शनिवार सुबह छुट्टी दे दी गई थी। मगर घर जाते हालत बिगडी़ तो वापस आने पर जिला अस्पताल रेफर किया गया। जिला अस्पताल पहुंचने में देरी के कारण मौत हुई।