नई दिल्लीः जिस मथुरा के जवाहरबाग में अवैझ कब्जा हटाने की कार्रवाई में एक एसपी और दारोगा को शहीद होना पड़ा, उस पूरे मामले से जुड़े सच को शायद सरकार सामने नहीं आने देना चाहती। 280 एकड़ में फैले इस बाग से जुड़े राजस्व रिकॉर्ड रामवृक्ष यादव एंड कंपनी ने सत्ता से संबंधों के दम पर मथुरा तहसील से लेकर लखनऊ तक गायब करा दिए थे, मगर अब तक इसे ढूंढने की कोशिश नहीं की जा रही है। सवाल उठता है कि आखिर सपा सरकार किसे बचाने के लिए इन कागजातों को ढूंढने से पीछा छुड़ा रही है।
मथुरा से लखनऊ तक रिकॉर्ड गायब
दरअसल जब 280 एकड़ में फैले उद्यान विभाग के बाग को अखिलेश सरकार ने रामवृक्ष को 99 साल के पट्टे पर देने की तैयारी की तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। जिस पर रामवृक्ष ने जवाहरबाग के सभी दस्तावेज मथुरा से लेकर लखनऊ तक गायब करा दिए। ताकि जिला प्रशासन यह साबित ही न कर सके कि जमीन उद्यान विभाग की संपत्ति है।
कहीं भी कोई कागज मौजूद नहीं, केस से जुड़े अधिवक्ता का कहना
मथुरा के जवाहरबाग पर अवैध कब्जा खाली कराने की लंबी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता विजय पाल तोमर कहते हैं कि मौजूदा समय मथुरा की सदर तहसील से लेकर मथुरा कलेक्ट्रेट के रिकॉर्ड रूम और आगरा कमिश्नरी से लखनऊ राजस्व परिषद तक कोई अहम दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। सभी दस्तावेज रामवृक्ष यादव एंड कंपनी ने गायब करा दिए हैं। जिला प्रशासन भी इन दस्तावेजों को जुटाने में हाथ खड़े कर बैठा है।
मथुरा हिंसा में हुई थी 29 लोगों की मौत
एसपी सिटी मुकुल दि्वेदी के नेतृत्व में बीते दो जून को पहुंची पुलिस फोर्स ने जवाहरबाग को जयगुरुदेव के कथित समर्थकों से खाली कराने की कोशिश की थी। इस दौरान रामवृक्ष यादव समर्थक हिंसा पर उतर आए। उन्होंने हमला कर एसपी मुकुल और दारोगा संतोष यादव को पीट-पीटकर मार डाला था। इस दौरान हिंसा में दोनों तरफ से कुल 29 लोगों की मौत हुई।