दिल-ए-दर्द किसको बताये आजकल, कोई सुनता नहीं हैं...
किसी को देखकर युं नैन-ए-कारवां ख्वाब बुनता नहीं हैं...
सुनाना किसी को दिल-ए-हाल अब पहले सा नहीं रहा हैं...
सोचते-सोचते दिल और कहीं, और दिमाग कहीं रहा हैं...
इसलिए दोस्तों इंसानों से वास्ता मेरा कम ही रहा हैं...
दर्द सहते-सहते से मेरा नैन-ए-अश्रु नम ही रहा हैं...
अब अल्फ़ाज़ों से दोस्ती करके ग़मों को बांट देता हूं...
ग़म करीब है मेरे इसी खता में खुशियों को छांट लेता हूं...
दर्द सहते -सहते थककर आखिर बताना जरूरी हो गया ...
अल्फ़ाज़ और मेरा इश्क भी यारों अब तो सरूरी हो गया...
अब अल्फ़ाज़ों संग घंटों बतिया कर मन हल्का कर लेता हूं...
जिंदगी-ए-ग़म है बहुत यारों थोड़ा खुशियों का जल भर लेता हूं...
रुसना- मनाना यारों अब अल्फ़ाज़ों संग नहीं होता हैं...
किसी की याद में अब दिल बच्चा बनकर नहीं रोता हैं...
जो कुछ भी दास्तां सुनाता हूं वो ध्यान से सुन लेता हैं...
जो होता हैं जिंदगी में यारों वो ख्वाब झट से बुन देता हैं...
बयां भी दर्द अब जिंदगी में हम अल्फ़ाज़ों से करने लगे हैं...
अब किसी बेवफा पर मुंह ही देखकर नहीं मरने लगे हैं...
अब तो आखिरी दोस्त जिंदगी में हमारे अल्फ़ाज़ ही होंगे...
मन से बोलते हैं सच वो भी अब तो मेरे जज़्बात ही होंगे...