shabd-logo

कर ली आज अल्फ़ाज़ों से बात

5 नवम्बर 2024

0 बार देखा गया 0

हिम्मत ना होती थी कि कर पाऊंगा कभी मन की बात...

इसी कशमकश में यारों सोचता रहता था दिन और रात...


जब से दुनियां रो रोकर पुछती है और हंसकर बता देती हैं...

जज्बातों ही जज्बातों में आखिर इंसान को सता देती हैं...


तब से हिम्मत ही ना होती थी कि मन की बात किसी से बताऊं...

और ना कभी फिक्र की थी कि चिंता करके दिल को सताऊं...


इक दिन सोचा कि आज अल्फ़ाज़ों संग मन मिलाकर रहूंगा...

जो कुछ भी है मेरे मन में वो सब कुछ दिल लगाकर कहूंगा...


ना की बात उस दिन रात को सोचते-सोचते नींद आ गई...

आज कर ही लूंगा बात कोसते-कोसते नींद मुझे भा गई...


फिर इसी कशमकश में सालों गुजर गए कि हो जाएगी बात...

किया कुछ साहस और यारों आज कर ली अल्फ़ाज़ों संग बात...





3
रचनाएँ
मैं और मेरे अल्फ़ाज़
0.0
यह किताब एक मन की व्यथा को अल्फ़ाज़ों के साथ पिरोती हुई हमारे जीवन की वास्तविक परिस्थिति को प्रदर्शित करती हुई एक अनमोल रचना हैं।
1

अल्फ़ाज़ों से दोस्ती

2 नवम्बर 2024
0
1
0

कभी मैं भी था अकेला, गुमसुम उदास सा... रहा था कभी आखिर मैं भी,कभी बिंदास सा... क्या पता और क्यों,लोग दूर होते जा रहें थे... रिश्तें भी अब तो दोस्तों, हाथों से खोते जा रहें थे... जज्बातों में भी मु

2

अल्फ़ाज़ संग दिल का दर्द

3 नवम्बर 2024
0
1
0

दिल-ए-दर्द किसको बताये आजकल, कोई सुनता नहीं हैं... किसी को देखकर युं नैन-ए-कारवां ख्वाब बुनता नहीं हैं... सुनाना किसी को दिल-ए-हाल अब पहले सा नहीं रहा हैं... सोचते-सोचते दिल और कहीं, और दिमाग कही

3

कर ली आज अल्फ़ाज़ों से बात

5 नवम्बर 2024
0
0
0

हिम्मत ना होती थी कि कर पाऊंगा कभी मन की बात... इसी कशमकश में यारों सोचता रहता था दिन और रात... जब से दुनियां रो रोकर पुछती है और हंसकर बता देती हैं... जज्बातों ही जज्बातों में आखिर इंसान को सता

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए