हिम्मत ना होती थी कि कर पाऊंगा कभी मन की बात...
इसी कशमकश में यारों सोचता रहता था दिन और रात...
जब से दुनियां रो रोकर पुछती है और हंसकर बता देती हैं...
जज्बातों ही जज्बातों में आखिर इंसान को सता देती हैं...
तब से हिम्मत ही ना होती थी कि मन की बात किसी से बताऊं...
और ना कभी फिक्र की थी कि चिंता करके दिल को सताऊं...
इक दिन सोचा कि आज अल्फ़ाज़ों संग मन मिलाकर रहूंगा...
जो कुछ भी है मेरे मन में वो सब कुछ दिल लगाकर कहूंगा...
ना की बात उस दिन रात को सोचते-सोचते नींद आ गई...
आज कर ही लूंगा बात कोसते-कोसते नींद मुझे भा गई...
फिर इसी कशमकश में सालों गुजर गए कि हो जाएगी बात...
किया कुछ साहस और यारों आज कर ली अल्फ़ाज़ों संग बात...