नई दिल्ली: अंजली सिंह एक ऐसी मिसाल हैं जो बताताी हैं कि इरादे फौलादी हों तो मंजिलों को सजदा करना ही पड़ता है. जी हां लखनऊ की अंजली सिंह जो कभी 1700 रुपये महीने कमाया करती थी वह आज हर महीने 8 से 10 लाख का कमाती हैं. यह एक मज़बूत इरादों वाली महिला का ऐसा सच है जो लोगों के लिए प्रेरणा का मरकज बन गया है.
दरअसल, अंजली के जज़्बे ने ज़माने की बंदिशों और समाज की रूढ़ी वादी सोच को ढेंगा दिखाते हुये अपने ख्वाब के पूरा न होने की कसक के चलते सैकड़ों लोगों के ख्वाबों को पूरा करने के हौसले को जन्म दिया और 29 अप्रैल को अंजलि सिंह को आउटस्टैंडिंग वूमेन आंत्रेप्रेन्योर के लिए फिक्की फ्लो अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. जो अंजली कभी महज़ 1700 रुपए की नौकरी करती थी वह आज हर महीने 8 से 10 लाख का बिजनेस करती हैं. अब इनकी खुद की कम्पनी का सलाना टर्न ओवर 1 करोड़ रुपए का है.
योर स्टोरी के अनुसार अंजली सिंह का कहना है कि 'मेरा ख्वाब था एयर हॉस्टेस बनना लेकिन शायद मेरे ख्वाबों को लड़की होने और मध्य वर्गीय परिवार की बंदिशों ने परवान नहीं चढने दिया. खैर खानदान में अकेली लड़की होने की वजह से परिवार ने शहर से बाहर नहीं भेजा और मैंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एमबीए किया.' 2001 में एमबीए की डिग्री लेने के बाद अंजली ने लखनऊ के शिवगढ़ रिजॉर्ट से अपना पेशेवर जीवन शुरू किया और फिर थोड़े समय बाद चेन मार्केटिंग की पोस्ट और सैलरी के तौर पर 1700 रुपए महीने की नौकरी उन्होंने छोड़ दी. उसके बाद 2001 में ही आईएसएफएआई यूनिवर्सिटी की लखनऊ शाखा में काउंसलर की पद पर ज्वाइन किया, जहां 4,000 रुपए वेतन मिलता था. अंजली कहती हैं, '2009 में पदोन्नति हुई और उसी कंपनी में मैं मार्केटिंग मैनेजर बन गई. उस वक्त मेरा वेतन 20 हजार रूपये था. 2001 में ही मैंने मार्केटिंग मैनेजर की जॉब भी छोड़ दी.'
निजी क्षेत्र के विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में सेवा करने वाली अंजली सिंह ने महिला उत्थान के अपने बचपन के सपने को साकार करने की सोची. उनके मन में बचपन से ही अप्राधिकृत व शोषित वर्ग की महिलाओं हेतु कुछ कर गुजरने की इच्छा थी. अंजलि के पिता बैंक ऑफ इंडिया में जॉब करते थे. उन्होंने वीआरएस लेकर 1995 में भारतीय सेवा संस्थान नाम से एक एनजीओ शुरू किया था. अंजली कहती हैं,
'पापा को नेशनल जूट बोर्ड मिनिस्टरी ऑफ टेक्सटाइल गवर्मेंट ऑफ इंडिया से जूट से डिफरेंट टाइप के आइटम बनाने का प्रोजेक्ट मिला था. साल 2009 में मैंने पापा के एनजीओ में काम करने वाली शबनम को अपने साथ लेकर जूट के बैग्स और दूसरे आइटम्स बनाने का काम शुरू किया. धीरे-धीरे 25 से 30 महिलाएं साथ जुड़ गईं. कंपनी शुरू करने के लिए सरकारी बैंक से 15 लाख रुपए लोन भी लिया.'
दरअसल, जो भी महिलायें अंजली के साथ जुड़ रही थीं, उनमें से अधिकांश निम्न जीवन शैली को जीने वाली दुखियारी महिलायें थीं. उनकी स्थिति को देख कर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के मन में मदद का भाव बरबस उत्पन्न हो जाये. लेकिन अंजलि ने कोरी भावुकता को व्यवहारिक जामा पहनाते हुये, चाइनीज मुहावरे 'गरीब को रोटी देने से बेहतर है उसे रोटी कमाने की कला सिखाई जाये' को चरितार्थ करने के प्रयास को अमलीजामा पहनाने की दिशा में वर्ष 2009 में वृहत-स्तर पर देश के गोल्डन फाइवर 'जूट' के उत्पादों को महिलाओं की गरीबी व बेरोजगारी दूर करने का मूल मंत्र बनाया.
जूट के उपयोगी उत्पादों के निर्माण व विपणन का कार्य 'जूट आर्टीजन्स गिल्ड एसोसियेशन' नामक स्वयं सेवी संस्था बना कर अंजली ने दलित व शोषित वर्ग की महिलाओं व सेना की वीर नारियों (वार विडोज) को प्रशिक्षण व रोजगार देकर अपने कार्यों को नया आयाम दिया.
वर्तमान समय में अंजली और उनकी कंपनी द्वारा 500 से ज्यादा गरीब महिलाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिया गया है तथा भविष्य में और अधिक संख्या में प्रशिक्षण के उपरान्त स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें राज्य व केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों की सहभागिता सराहनीय है. एफआईसीसीआई (फिक्की) की लेडीज आर्गेनाइजेशन का योगदान अंजली सिंह के प्रयासों से महिला सशक्तीकरण की मुहिम नयी ऊंचाइयां प्राप्त कर रही है. अंजली की संस्था जूट आर्टीजन्स गिल्ड एसोसियेशन से जुड़ी महिलाओं द्वारा जूट के उपयोगी उत्पाद जैसे- शॉपिंग बैग, फाइल फोल्डर तथा सेमीनार/ कॉन्फ्रेंसिज़ हेतु डेलीगेट किट/ बैग/ फोल्डर तैयार किए जा रहे हैं, जिससे प्लास्टिक व पॉलीथीन का उपयोग भी घटा है.