अपने दम पर
आरती के पापा की स्टील फैक्ट्री शहर की नामी फैक्ट्रियों में गिनी जाती थी, आराधना और आरती दो बहनें, आरती बड़ी है, आराधना अभी बी.ए. लास्ट सेमेस्टर चल रहा था और आरती की सागर सगाई हो गई। अभी शादी तय नहीं हुई थी कि एक दिन अचानक आरती के पापा का पांव फिसला, गिरे और रीढ़ की हड्डी पे चोट लगी, उठाना मुश्किल हो रहा था, पड़ोसियों की मदद से अस्पताल पहुंचाया, कुछ दिन इलाज चला, मगर डाक्टर ने बताया कि अब ये ज़िन्दगी भर उठ नहीं पाएंगे, क्योंकि उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह से टूट कर चकनाचूर हो गई थी, जो फिर से चलने-फिरने के काबिल नहीं थे।
सभी को ये चिंता सता रही थी,कि आरती की शादी, आराधना की पढ़ाई, फैक्ट्री का काम कैसे होगा, कौन बनेगा आरती की मां-पापा का सहारा, क्योंकि आरती का कोई भाई नहीं, आरती के पापा को भी यही चिंता खाए जा रही थी "आरती बेटा कैसे होगा ये सब, कौन करेगा?" आरती ने पापा को आश्वासन दिया कि," पापा आप फ़िक्र ना करें, मैं हूं ना, आप हमेशा से मुझे बेटा मानते हैं, आपका ये बेटा करेगा सब"!
अस्पताल से छुट्टी होने के बाद, जब आरती पापा को घर ले आई, उसने सागर को बात करने के लिए बुलाया और कहा कि वो शादी नहीं कर सकती, उसे पहले आराधना की पढ़ाई पूरी करवानी है, उसकी शादी और फैक्ट्री का काम भी देखना है, क्योंकि अब मां-पापा की जिम्मेदारी भी उस पर है तो वो मां-पापा के साथ रह कर ही उनकी देखभाल करेगी।
ये सब सुनकर सागर कहते हैं कि बेशक तुम अपना फ़र्ज़ निभाना चाहती हो,मगर तुम स्त्री हो ये सब अकेले कैसे करोगी, सागर ने आरती से कहा कि तुम्हारी सोच अच्छी है मगर तुम्हें अकेले नहीं संभल पाएगा सब, इसलिए मैं भी तुम्हारा साथ देना चाहता हूं, इसलिए शादी में कोई अड़चन नहीं शादी के बाद हम दोनों मिलकर मां-पापा की देखभाल करेंगे, लेकिन आरती इन्कार कर देती है और कहती है, #मै अपने दम पर सब कुछ कर के दिखाऊंगी"
उसकी इस हिम्मत को सलाम करते हुए सागर यह कह कर चला जाता है कि " मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा"
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)