कर्म फल
सागर लगभग 8-9 साल का था, छुट्टियों में नानी के घर गया, जब वापिस आने लगे सागर दो-चार दिन और रूकने की ज़िद करने लगा, मामा के बच्चों के साथ उसे खेलना अच्छा लगता, घर पर कोई खेलने वाला था नहीं, ना भाई, ना बहन।
उसकी ज़िद देखकर स्वाती (सागर की मां) उसे दो दिन के लिए वहीं छोड़ आई।
जब सागर घर वापस आया तो दादा-दादी को ना पाकर पूछा, तब मां ने बताया कि दादा-दादी ईश्वर के पास चले गए।
सागर बहुत रोया, लेकिन अब क्या हो सकता था।
धीरे-धीरे सब नार्मल होने लगा, लेकिन दादा-दादी की छवि उसके मन के किसी कोने में बनी रही।
घर में दादा-दादी की ना तो कोई बात करता, ना ही उनकी कोई तस्वीर नज़र आती।
सागर बड़ा हुआ, शादी हुई। साल बाद बेटा हुआ, सागर की पत्नी बच्चे को लेकर जब पहली बार मायके गई तो सागर मां-पापा से," मां, पापा आप अपना सामान बांध लिजिए आप को एक लम्बे ट्रिप पर जाना है"
माता-पिता ने खुशी-खुशी अपना सूटकेस पैक किया, सागर वृद्धाश्रम ले जाकर," लिजिए मां- पापा आपकी मंज़िल आ गई'
"ये क्या है बेटा? ये... ये ... वृद्धा....श्रम"
"हां मां, ये आपके कर्मों का फल है"
"लेकिन सा ग र, ये सब क्यूं... और... कैसे? हमने ऐसे कौन से कर्म किए जो ऐसा फल मिलेगा हमें, हमने तुम्हारे पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी"!
" हां मां, मैं मानता हूं आपने मेरे पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी, लेकिन क्या आपने मेरे दादा-दादी को कभी कोई तकलीफ़ नहीं दी?
क्या आपने उन्हें वृद्धाश्रम में नहीं छोड़ दिया?
क्या आप जानते हैं वो यहां लावारिस की मौत मरे?
अब भी आप कहेंगे कि आपने कभी कोई ग़लत काम नहीं किया, इससे बड़ा गुनाह कोई नहीं संसार में, जो अपने ही माता-पिता को उन्हीं के घर से बेघर करके लावारिस की तरह मरने के लिए छोड़ दें"
"हां बेटा हमने गुनाह किया है, लेकिन तुझे ये सब कैसे पता,? हमें ले चल उनके पास, हम उनसे क्षमा मांग कर उनके घर वापिस ले आएंगे"
"मां अब बहुत देर हो चुकी है, वो अब इस दुनिया में नहीं, उन दोनों का अन्तिम संस्कार मैंने अपने हाथों से किया था"
सागर के माता-पिता दोनों हैरान होते हुए, " लेकिन ये सब कब, कैसे हुआ"
जब मैं 15-16 साल का था, कुछ अध्यापकों और स्टुडेंट्स ने मिलकर प्रोग्राम बनाया कि इस साल दिवाली वृद्धाश्रम में मनाएंगे, ताकि जो बुज़ुर्ग वृद्धाश्रम में रहते हैं, उन्हें भी खुशियां मिले।
सब स्टूडेंट्स और अध्यापक वृद्धाश्रम में दिवाली पर मिठाइयां और कपड़े लेकर गए।
जब मिठाईयां और कपड़े बांटे रहे थे तो मैंने महसूस किया कि एक बुज़ुर्ग दम्पत्ति मुझे लगातार प्यार से निहारे जा रहे थे, मैं भी ना जाने क्यों उनकी तरफ एक खिंचाव महसूस कर रहा था, मुझे वो दोनों चेहरे जाने-पहचाने से लगे।
मैं जैसे ही उनके करीब गया, उनके मुंह से निकला, "सागर" तब मैंने भी उन्हें पहचान लिया और दादू-दादी कह कर उनके गले लग गया, बहुत पूछने पर उन्होंने सच्चाई बताई, कि जब मैं ननिहाल था तब आप उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ गई थी, लेकिन वो मुझे देखकर बहुत खुश हुए, अचानक दादू को हार्टअटैक आया और वो चलबसे, मैंने दादू का क्रियाकर्म किया, तब मैं रोज़ दादी से मिलने आता, मगर शायद मेरे नसीब में उनका प्यार नहीं था, कुछ ही दिनों में दादी भी मुझे छोड़कर चली गई।
लेकिन मैं आप जैसा नहीं, आपके कर्मों का फल ईश्वर देगा, मैं केवल आपको एहसास कराना चाहता था, इसलिए यहां लाया, चलिए वापिस अपने घर"
सागर के माता-पिता की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे वो सागर से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे आज।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी (यमुनानगर)