एहसास
दिल्ली का न्यू मोती नगर इलाका, वैसे तो ठीक-ठाक लिखा है, लेकिन वहां के लोग दिलदार बहुत हैं।
मोती नगर की गली नंबर 2 का तो रंग ही रंगीला है। हर घर में बाई के बिना तो काम चलता ही नहीं,और महीने में चार-पांच किट्टी तो हर लेडी ज्वाइन करती है।
उस पर कभी माॅल घूमने जाना और कभी मूवी।
पुरुष लोग काम पर सुबह जाते हैं और रात को ही वापिस आ पाते हैं।
अब रही औरतें, बच्चे स्कूल और ट्यूशनों में व्यस्त। औरतें घर का काम बाई को सौंप निकल पड़ती है मस्ती को, रोज़मर्रा का यही काम है।
अब सुनिए मिसेज राय की परेशानी, उन्हें तो एक दिन भी कहीं किसी सहेली के घर, किट्टी या घूमने ना जाएं तो ना जाने उनके पैरों में खुजली होने लगती है।
अब पतिदेव यानि राय साहब बीमार हो गए तो तिमारदारी के लिए कुछ दिन घर पर रहना पड़ा।
मिसेज राय का तो घर पर दम घुटता है और उस पर आज बाई भी नहीं आई, ना ही कोई संदेशा, एक तो पतिदेव की सेवा उस पर घर का काम।
तौबा, जैसे-तैसे निपटाया।
अगले दिन सुबह बैल बजी तो बाईं के आते ही सारा गुस्सा, सारी थकान उस पर भड़क कर निकाल दिया।
"राम-राम मालकिन"
"राम-राम, अरी ओ छमिया कल कहां मर गई थी, तुझे पता है ना जिस दिन तुम नहीं आती मुझे कितनी मुश्किल होती है, घर का सारा काम, बच्चे भी कालिज से आते ही फरमाइशें शुरू कर देते हैं कभी ये बना दो, तो कभी वो , इन बच्चों के तो नखरे ही नहीं खत्म होते और उपर से तेरे साहब जी भी बिमारी को पकड़ कर बैठ गए , 10 दिन हो बुखार को तो पकड़ के रखा लिया , परेशान हो गई मैं तो तामीरदारी से , कहीं आना जाना भी मुहाल हो गया मेरा!
ना तो मैं किट्टी पे जा सकी ना ही इतने दिनों से कोई आउटिंग हुई।
पता नहीं कब ये ठीक होंगे और कब मूझे इस तीमारदारी से छुटकारा मिलेगा""" हूंऊऊऊ।
और फिर सोचा, अब काम भी तो कराना है, ऐसा ना हो कहीं उल्टे पैर लौट गई तो भी मुश्किल।
भई आजकल की बाई रोब नहीं सहन करती, ज़रा सा कुछ कहो तो ये सुनने को मिलता है," मैडम जी मेहनत करते हैं, गुलामी नहीं, ये रहा आपका काम, हमसे प्यार से बात किया करो, रोब ना दिखाया करो!
फिर प्यार से,"अच्छा चल जल्दी से मूझे एक कप चाय बना दे, और तु भी पहले नाश्ता बना कर खा ले, फिर काम करना!
अरे, हां तुने बताया नहीं, कल क्यों नहीं आई"
"मलकिन कल मेरे मर्द को हरारत लग रही थी, उन्हीं के पास रूक गई , दवा -दारू ला के दिया, तुलसी -अदरक की चाय दो बार पिला दी , और हल्की सी खिचड़ी बना के दी!
वरना तो खाना बना के रख आती हूं फिर ठंडी रोटी खाते तो और बीमार ही होते, एक दिन घर पे रह के ख्याल रखा तो अच्छे से तबीयत संभल गई"
" उस शराबी के लिए तुने छुट्टी की!
तुझे पता है ना तेरे पैसे कटेंगे"?
" काट लेना मलकिन पैसे ही तो हैं , आदमी से पैसा है , पैसे से आदमी नहीं, दु:ख-सुख में यही काम आते हैं"
छमिया के मुंह से ये सुनकर मिसेज राय को एहसास हुआ कि जब उन्हें सरदर्द भी अगर होता है तो कैसे रात को जाग -जाग कर उनका सर दबाते हैं राय साहब।
और आज वो उनकी बिमारी पर परेशान हो गई , आज मिसेज राय अपने आप को छमिया से भी छोटा महसूस कर रही थी ।
बहुत बोनी हो गई वो आज उस के सामने। परिवार का एहसास आज हुआ।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)