काश मैं दूबारा मां बन पाती
सावित्री का बेटा-बहू दोनों पढ़े - लिखे ऊंचे ओहदे पर कार्यरत, शादी को पांच साल हो गए लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं, दोनों कहते हैं कि अभी उन्हें अपना करियर बनाना है, इतनी मंहगाई है पहले बच्चों के लिए खुद को तैयार कर लें, आज के समय में बच्चों को पालना और ज़माने के साथ चलना आसान नहीं।
सावित्री अब बेटे-बहू से बच्चे के लिए कहती है," आलोक, सीमा अब तो हमें पोते का मुंह दिखा ही दो, ना जाने कब जीवन की शाम हो जाए, अगर पोते का मुख नहीं देखा तो नरक मिलेगा"
" मां कैसी बातें करते हो आप, भला स्वर्ग और नरक भी कोई पोते या पोती की वजह से मिलता है? वो तो हमें हमारे कर्मों से मिलता है" इस तरह अक्सर सास - बहु में बहस सी हो जाती।
और एक दिन वो पल भी आ गया, जब सावित्री को पता चला कि सीमा के पांव भारी है, खुशी का ठिकाना नहीं, पूरा परिवार सीमा को पलकों पे बिठाए रखता, उसके हर नाज़ नखरे सहे जाते। डाक्टर पास चैकअप के लिए रूटीन से जाना, उसके खाने-पीने का बहुत अच्छे से ख़्याल रखना, और सासु मां तो दिन-रात पोते के सपने देखने लगी। तीसरा महीना और अचानक से सीमा का पांव फिसला सीढ़ियों से और बहुत बुरी तरह गिर गई, झट से डाक्टर को बुलाया गया, डाक्टर ने चैकअप करके के कुछ टेस्ट कराने को कहे, और रिपोर्ट आने पर बताया कि अभी तो मां-बच्चा ठीक हैं लेकिन सीमा दुबारा कभी मां नहीं बन सकेगी।
सीमा की सास और पति ने कहा," दुबारा की कोई बात नहीं ,इस बार इश्वर गोद भर दे और सीमा भी ठीक-ठाक रहे बस यही हमारे लिए काफी है"
अब पति और सास हर समय मन्दिरों के चक्कर काटते, हवन-यज्ञ करते, व्रत-उपवास करते, कभी किसी संत-महात्मा से टोना-टोटका कराते कि एक ही बार सीमा मां बनेंगी इसलिए बेटा ही होना चाहिए। टेस्ट कराने को कहा तो सीमा जिद पर अड़ी रही कि टेस्ट नहीं कराना।
वो पल भी आ गया आज , सीमा को डिलिवरी के लिए अस्पताल लाया गया, लेबर रूम में जाते हुए उसे सब आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं, थोड़ी देर बाद लेबर रूम से नर्स बाहर आई और बोली," बहुत बहुत बधाई हो..."
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई कि मां -बेटा दोनों खुशी से उछल पड़े, मिठाई का डिब्बा पहले से हाथ में था, सबका मुंह मीठा कराने लगे, आलोक भी जेब नोट निकाल-निकाल कर सब लेबर क्लास में बांटने लगे कि , " मेरे बेटे का सदका, मेरे बेटे को आशीर्वाद दो"
नर्स," अरे,अरे सुनिए तो बेटा नहीं चांद सी बेटी आई है, साक्षात् लक्ष्मी का स्वरूप है"
सुनते ही दोनों के चेहरों की हवाइयां उड़ने लगी, " हे ईश्वर ये क्या अनर्थ कर दिया? एक ही बच्चा वो भी लड़की दे दी। दोनों रूआंसे से हो गए। अब ना तो सीमा की अच्छे से देखभाल होती ना ही गुड़िया को कोई लाड़-प्यार करता, हर समय ताने अलग से कि एक ही बच्चा जनना था तो बेटा जनती, या कहते ," हे ईश्वर कोई चमत्कार करो कि सीमा दुबारा मां बन सके"
आखिर सीमा कब तक बर्दाश्त करती, एक दिन, " काश मैं दुबारा मां बन सकती, तो ईश्वर से दुबारा बेटी की ही फरियाद करती, नहीं चाहिए मुझे बेटा। ऐसा बेटा जो स्त्री की सन्तान होकर भी बेटी ना चाहे, वो बेटा जिसे बेटा देने के लिए भी स्त्री ही है, फिर भी वो बेटी ना चाहे, वो बेटा धरती के वजूद के बिना संसार की कल्पना करें, वो बेटा जो ये जानते हुए भी कि बेटी या बेटी पैदा करना स्त्री के हाथ में नहीं, ये जींस पुरुष में होते हैं, फिर भी स्त्री को प्रताड़ित करे, हां मैं केवल बेटी ही मांगती, काश मैं दुबारा मां बन सकती"
प्रेम बजाज