लखनऊ ब्यूरो: इस विधान सभाई चुनाव में खुद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लोहे के चने चबाने पड रहे है। पार्टी की प्रतिष्ठा और खुद उनकी साख भी दांव पर लग गयी है। वजह, भाजपा की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी और उत्साहवर्धक न होना है। दरअसल, अपने जिन खास लोगों और नुमाइंदों पर पूरा भरोसा जताकर वह अपने संसदीय क्षेत्र की समस्याओं और उसके विकास के लिये निश्चिंत से थे, उन लोगों ने अपने दायित्व का सही ढंग से पालन नहीं किया है।
सूबे की सरकार का तो नकारात्मक सा रवैया पहले से ही रहा है। लगता है कि स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस कडुवे सच का एहसास हो गया है। रही सही कसर यहां के भाजपाई विधायक रहे श्यामदेव राय चैधरी जैसे दिग्गज और लोकप्रिय नेता को हाशिये पर डालकर उनका टिकट तक काट देना रहा है। इसीलिये इस बार पार्टी और खुद अपनी साख बचाने के लिये प्रधान मंत्री को लोहे के चने चबाना पड रहा है।
उल् लेख नीय है कि प्रधान मंत्री के संसदीय क्षेत्र में आने वाली पांच सीटों में से वाराणसी उत्तरी, दक्षिणी और कैंट की सीटों पर इस समय भाजपा का ही कब्जा है। रोहनिया सीट अपना दल और सेवापुरी सीट सपा ने जीती है। शेष तीन सीटों में से दो बसपा और एक कांग्रेस के पास है। कुछ ही समय पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वाराणसी में रोड शो किया था। उसमें उमडी जबरदस्त भीड ने उसी समय यह संकेत दे दिया था कि मोदी के संसदीय क्षेत्र में सब कुछ ठीक नहीं है। इससे हौसलाबुलंद हुए राहुल गांधी ने अपने कोटे में चार सीटें लेकर अपने चार दिग्गजों को चुनावी जंग में उतार दिया है। उनकी पार्टी ने इस बार पिंडरा से विधायक अजय राय, वाराणसी दक्षिण से पूर्व सांसद राजेश मिश्र, वाराणसी उत्तर से अब्दुल समद अंसारी और वाराणसी कैंट से अनिल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है।
इसी प्रकार सपा ने सेवापुरी से मंत्री सुरेंद्र सिंह पटेल, रोहनिया से महेंद्र सिंह पटेल, सुरक्षित सीट अजगरा से लालजी सोनकर और शिवपुर से आनंद मोहन उर्फ गुड्डू को मुकाबले में उतारा है।मुख्य मंत्री अखिलेश यादव सहित दूसरे दलों के दिग्गजों ने विकास तथा अन्य ज्वलंत मुद्दों पर मोदी को चैतरफा घेर रखा है। शहर की खस्ताहाल सडकों और बजबजाती गंदगी से बढती बदहाली, बेकाबू अपराध और भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बुनकरों की परेशानी औरआबादी के लगातार बढते बोझ जैसी समस्याओं से यहां का आम आदमी कराह रहा है। मोदी सरकार का स्वच्छता अभियान यहां पहुंच कर फुस्स सा हो गया है।
इसके लिये सूबे की सरकार को कटघरे में खडा कर दिया गया है। लेकिन, रेेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा तो पडोस के जिले के ही हैं। इसके बावजूद, बनारस के पुराने काशी रेलवे स्टेशन की हालत आज भी पहले जैसी ही है। उसमें कोई सुधार नहीं। दशाश्वमेध जैसे एक-दो घाटों को छोड दें, तो यहां के लगभग 87 घाटों की दशा कमोवेश पहले जैसी ही है। स्वयं प्रधान मंत्री के संसदीय क्षेत्र में भी उनकी ‘नमामि गंगे‘ योजना अभी तक सिर्फ ख्याली पुलाव ही साबित हुई है। इस पर बडा जोरदार तंज कसते हुए बिहार के मुख्य मंत्री ने कहा है कि गंगा अपने बेटे का तलाश रही है।
कुछ देर के लिये इसे दरकिनार भी कर दें, तो इस शहर का सारा गंदा पानी और घाटों के तटवर्ती हजारों मकानों का सारा मलमूत्र रोजाना सीधे गंगा में ही गिर रहा है। इसके लिये आठ साल पहले जे.एन.एन.यू.आर.एम. का प्रस्ताव तो बना था, लेकिन उसे सिर्फ कागजी ही कहना अधिक उचित होगा। क्या इस जिम्मेदारी को संभालने वाली केंद्रीय मंत्री उमा भारती को मोदी ने कटघरे में खडा करने की कोशिश की है?
इसलिये सिर्फ यह कहने से काम चलने वाला नहीं है कि अखिलेश सरकार ‘कृपा‘ प्रधान मंत्री मोदी का स्वच्छता अभियान उनके संसदीय क्षेत्र में ही आकर फुस्स हो गया है। यहां के वासिंदे तो हर तरफ फैली गंदगी, ऊबडखाबड सडकों और उन पर काफी देर तक लगने वाले जाम के तो आदी हो चुके हैं। लेकिन, रोजाना हजारों की तादाद में आने वाले पर्यटकों के साथ ही इस संसदीय क्षेत्र के आम आदमी का भी मन बहुत खट्टा हो गया है। इन्हीं बातों के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार यहां की राह भाजपा के लिये आसान नहीं है।