नंदनी अग्रवाल ( लेख क : माही )
मुंबई : मुम्बई के विले पार्ले में 33 साल के संतोष पांडे सेकंड हैण्ड किताबों की एक दुकान चलाते हैं। संतोष की दुंकान में तकरीबन 35000 सेकंड हैंड किताबें है लेकिन इस दुकान में एक किताब ऐसी है जो 'फस्ट हैंड' है। यह किताब संतोष के लिए बेहद बेशकीमती है क्योंकि यह खुद उसने लिखी है। इस किताब का नाम है 'कर्मायण'-अनटोल्ड सीक्रेट ऑफ़ रावण'। संतोष उत्तरप्रदेश के अमानी पांडेपुर गांव से आज से कई साल पहले महज 13 साल की उम्र में वैसे ही मुम्बई के लिए निकल पड़े थे जैसे अन्य उत्तर भारतीय यूपी और बिहार से बड़ी संख्या में मुम्बई की तरफ रोजगार के लिए जाते हैं।
मुम्बई पहुंचकर ज्यादातर लोगों को रिक्शा और टैक्सी ड्राइवर जैसे ही काम करने पड़ते हैं लेकिन संतोष कुछ अलग सोचकर मुम्बई गए थे। संतोष ने सबसे पहले वोकला बस स्टॉप पर किताबें बेचनी शुरू की, फिर थोड़ी जगह बढ़ाई और कुछ किताबें और इसमें जोड़ दी। 15 साल साल की उम्र में संतोष को यूपी अपने गांव अमानी पांडेपुर लौट गया। जहाँ उसकी शादी करवा दी गई। इसके बाद संतोष एक बार फिर अपने सपनों से लिए मुम्बई जा पहुंचा। मुम्बई पहुंचकर उसने मीरा रोड पर एक दुकान ली और सेकंड हैंड किताबें बेचनी फिर शुरू कर दी।
संतोष दुकान पर आज भी बड़ी संख्या में लोग किताबें खरीदने आते है। संतोष कहते हैं कि ''वह अपनी दुकान पर आये लोगों से कहता था कि 'वह भी एक किताब लिख रहा है', तो लोग उसपर हंस पड़ते। कहते एक किताब बेचने वाला, कम पड़ा लिखा, व्यकि किताब लिखने की बात कर रहा है''। संतोष की शिक्षा मात्र सातवीं पास तक है, और इसके पीछे पारिवारिक परिस्थितियां थी। संतोष के माता-पिता गरीब होने कारण न तो उसकी स्कूल फीस 6 रुपया प्रति महीना नही चुका सकते थे और न ही किसी तरह उसकी आगे की पढ़ाई जारी रख सकते थे।
संतोष ने अपनी किताब ''रावण पर लिखी है, जिसमे संन्तोष में रावण के चरित्र से राजों से पर्दा हटाने की कोशिश की है। वह कहते हैं कि '' मैंने ये किताब आज से चार साल पहले लिखनी शुरू की थी जब मैं अपने गांव गया था वहां मैंने रामायण पर अलग-अलग कई किताबें पढ़ी। मेरे मन में ख्याल आया कि रावण बेहद पड़ा लिखा था लेकिन वह बुरा क्यों बना ? संतोष की यह इस किताब में फिक्शन और मिथ है जो रावण के चरित्र के उन राजों को खलती है जो बताते हैं कि एक ब्राह्मण से वह कैसे राजा बन गया। संतोष की किताब को दिल्ली के 'पेटल्स पब्लिशर एंड डिस्टीब्यूटर' ने प्रकाशित किया है। हालांकि संतोष ने जब प्रकाशक से अपनी किताब छापने की बात कही तो वह हंसे नही।