
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यममंत्री कालिखो पुल के सुसाइड नोट पर काफी कुछ छपा है, जिसे पढ़ना चाहिए। इस स्टोरी को पढ़ते हुए आप कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं के चेहरे सामने रखिये जो अक्सर ख़ुद को भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ने वाले नायक बताते हैं और दिन भर बकवास करते हैं। यह कहानी आपको बीजेपी कांग्रेस और न्यायपालिका के शीर्ष पर बैठे लोगों की तरफ गंभीर इशारा करती है। ज़रूरी नहीं कि 14 फरवरी को क्विंट के चंदन नंदी की रिपोर्ट और 17 फरवरी को वायर हिन्दी के स्टाफ( बाइलाइन नहीं है) की रिपोर्ट बाकी मीडिया में चले और चर्चित हो, ये दोनों भी मीडिया का हिस्सा है और मान लेना चाहिए कि मीडिया में इस मामले की उपस्थिति दर्ज हो गई। चुप्पी का यह तर्क आपको वहां तक ले जाएगा जहां आप यह कहते हुए पायेंगे कि मेरी ख़बर को बाकी अख़बार क्यों नहीं छाप रहे हैं या चैनल वाले क्यों नहीं कर रहे हैं। कई बार सब एक दूसरे की ख़बरों की चर्चा कर लेते हैं मगर यह भी कोई तय प्रक्रिया के तहत नहीं होता है। कैसे होता है इसे तय करना मुश्किल है।
मगर राजनीति क्यों चुप है? क्या नहीं प्रधानमंत्री मोदी एक पूर्व मुख्यमंत्री के सुसाइड नोट के आधार पर कांग्रेस के नेताओं को घेर रहे हैं? क्यों नहीं कांग्रेस के नेता प्रधानमंत्री मोदी और अरुणाचल में पहला कमल खिलाने का गौरवगान कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना बना रहे हैं कि पुल ने अपने सुसाइड नोट में जिन नेताओं पर कथित रूप से 600 करोड़ के घोटाले के आरोप लगाए हैं, उनमें से एक उनका मुख्यमंत्री है। वो भाजपा की पहली सरकार का नेतृत्व कर रहा है। क्विंट और वायर ने इसकी रिपोर्टिंग करते वक्त एहतियातन नेताओं और जजों के नाम नहीं छापे हैं लेकिन अगर आप हिन्दी में टाइप किये गए इस सुसाइड नोट को छापेंगे तो जानने में मदद मिलेगी कि आप मूर्ख हैं जो इनके नेताओं की इस बात पर भरोसा करते हैं कि वे भ्रष्टाचार मिटा रहे हैं। कभी कभी अपनी मूर्खता का अहसास हो जाने में बुराई नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ तक ये आरोप पहुंचे हैं। कालिखो पुल ने आरोप लगाया है कि उनसे जजों को देने के लिए पैसे मांगे गए। दलाल कहीं भी सक्रिय हो सकते हैं और कोर्ट के बाहर भी होते होंगे। इन दलालों को नहीं पकड़ने में किसे दिलचस्पी नहीं होगी। कालिखो पुल की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट को उनके ही फैसले की याद दिलाई है कि मुख्य न्यायधीश अपने से नीचे के न्यायधीश को जांच का काम सौंप सकते हैं। यह क्यों नहीं हुआ है? कांग्रेस नेताओं को भी करोड़ों पहुंचाने की बात कालिखो पुल ने लिखी है।यह भी लिखा है कि किस तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अरुणाचल प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री ने 600 करोड़ का घोटाला किया और अकूत संपत्ति बनाई। अब इसके सारे दस्तावेज़ मिटा दिये गए हैं और फाइलें ग़ायब कर दी गई हैं।
क्या इस देश में बिल्कुल मुमकिन नहीं है कि दो महीने के भीतर कम से कम उन दस्तावज़ों और फाइलों की सूची बना दी जाए जिन्हें कथित रूप से ग़ायब किया गया है। क्यों नेता अपनी सुविधा के अनुसार चुप हो जाते हैं। क्यों बीजेपी इस सुसाइड नोट को लेकर हल्ला नहीं कर रही है जिसमें आत्महत्या करने वाले एक पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा है कि उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ट नेता को अस्सी करोड़ रुपये दिये हैं। राजनीति काले धन से चलती है और यूपी चुनाव में भी सिर्फ और सिर्फ काले धन से चल रही है। यूपी की जनता को अपने ऊपर मूर्खता थोपनी है तो वह थोपे। वो रहे इस भ्रम में कि काला धन समाप्त हो गया है या कोई भ्रष्टाचार से लड़ रहा है। वो पहले जात देख ले, धर्म देख ले और फिर पान खाकर थूक दे कि हमें इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, नेताओं को भी नहीं बोलना चाहिए। जिस तरह से उन्हें एक दूसरे का भ्रष्टाचार मंज़ूर है,उसी तरह से हम जनता को भी लूट पसंद है। बेबी को बेस पसंद है।
क्विंट के चंदन नंदी ने वायर की तरह सिर्फ सुसाइड नोट को नहीं छापा है कि बल्कि अपनी तफ़्तीश से यह बात सामने लाने का प्रयास किया है कि दक्षिण दिल्ली के एक वकील के यहां छापा पड़ा था। यह वकील किसी पूर्व जज का बेटा है। सीबीआई के सूत्रों से चंदन नंदी ने लिखा है कि सीबीआई के लोग भी सन्न रह गए जब पूछताछ के दौरान पता चला कि सुप्रीम कोर्ट के परिसर के भीतर दलालों के नेटवर्क हैं।लिहाज़ा सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी तरफ से सक्रियता दिखाकर ऐसी बातों को सिरे से खारिज करनी चाहिए या जांच करा कर दोषी को पकड़वाना चाहिए।
चंदन नंदी ने पुल के सुसाइड नोट को लेकर कई रिपोर्ट छापे हैं। पहली रिपोर्ट का आखिरा पैराग्राफ मैं यहां दे रहा हूं।
According to Rajkhowa, he had demanded a CBI inquiry into Pul’s “ unnatural death” in the “ special reports” he sent to President Pranab Mukherjee, Prime Minister Narendra Modi, Home Minister Rajnath Singh and Vice-president Hadmid Ansarim. “But there was no response from these dignitaries to my pointed references to the scams in Arunachal Pradesh and my demand for a CBI proble into Pul’s death” he said. In fact Rajkhowa stated. “ I was made a scapegoat and forced to resign.”
( सार में अनुवाद यही है कि अरुणाचल प्रदेश के हटा दिये गए राज्यपाल ने पुल की आत्महत्या के बाद सुसाइड नोट को पढ़ा और प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति सबको लिखा कि सीबीआई जांच होनी चाहिए। मगर राजकोहवा को ही पद से हटा दिया गया)
अब इस मामले पर प्रधानमंत्री कांग्रेस से लेकर न्यायपालिका तक को घेर सकते थे। लेकिन कैसे घेरते। इस आग की आंच अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री तक भी पहुंचती जो कांग्रेस से आकर बीजेपी के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। मेरे ख़्याल से संघ के राम माधव इस पर खुलकर बोल सकते हैं क्योंकि संघ के लोगों के लिए तो सबसे पहले राष्ट्र होता है। शायद उन्होंने बोला भी हो। आदमी कितना गूगल करे।
चंदन नंदी ने लिखा है कि इटनागर के जिस बंगले में पुल ने आत्महत्या की थी, दो महीने बाद उसके केयरटेकर सुशील बर्मन का भी शव बरामद होता है। ठीक उसी कमरे के पीछे सुशील बर्मन का शव लटका हुआ मिलता है, जिस कमरे में कालिखो पुल ने आत्महत्या की थी।
अरुणाचल में जो हो रहा है, जो हुआ है, हम सब लिखकर बोलकर भी नहीं जान सकते। तंत्र पर राजनीतिक दलों का स्थायी कब्ज़ा हो गया है। जब संविधान की शपथ लेने वाले एक पूर्व मुख्यमंत्री की हत्या या आत्महत्या के मामले में इतनी गहरी चुप्पी हो सकती है तो बाकी आम जन अपनी हालत का मुआयना एक बार ठीक से कर लें।
वायर और क्विंट ने पुल के सुसाइड नोट पर विस्तार से रिपोर्टिंग की है। मुझे यह भी पता है कि इसमें इतने बड़े नाम हैं कि बिना तथ्यों की जांच किये आप सीधे सीधे नहीं लिख सकते हैं, मगर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को कौन सी कानूनी बाध्यता रोक रही है। वो जांच तो करवा ही सकते थे। राजनीतिक मंच से जांच की मांग तो हो ही सकती थी।
वायर और क्विंट की रिपोर्ट को यहां पेश करने का एक ही मकसद था कि आप मुख्यधारा की जिस मीडिया के लिए इतने पैसे देते है, वो आप तक ऐसी खबरों को पहुंचने से रोक रहा है। जानबूझकर भी और अनजाने में भी। टीवी पर आप नेताओं को भ्रष्टाचार के विरोध में बोलते ही सुन रहे हैं, रिपोर्टर या मीडिया संस्संथान ऐसे मामलों को उजागर करने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है क्योंकि इसमें सत्ता से टकराने के बहुत जोखिम है। यह काम संस्थागत तरीके से हो रहा है। इसलिए अब आप मीडिया संस्थान से सीधे सवाल कीजिए। पत्रकार क्या बोलेगा। वो कब मंदी की छंटनी में छंट जाए पता ही नहीं है। वो तो जवाब दे ही रहा है मगर जो संस्थान प्रमुख हैं वो पब्लिक की जवाबदेही से बच जाते हैं।
इसलिए ज़रूरी है कि आप ख़बरों को पढ़ने और देखने का तरीका बदल लें। मीडिया अब हल्के फुल्के आरोपों पर गंभीर होने का ढोंग करने लगा है। गंभीर आरोपों को या तो हल्के फुल्के तरीके से पेश करता है या चुप्पी मार जाता है। क्या आपको विस्तार से जानकारी है कि मध्यप्रदेश में हिन्द नाम वाले कई लड़के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई एस आई की मदद करने के आरोप में पकड़े गए हैं। यह चुप्पी ठीक नहीं है। आप को अंधेरे में रखा जा रहा है। बाकी मेरा कस्बा ब्लॉग क्या कर लेगा. कितनों तक पहुंचेगा, मुझे पता है। मुझे ही इस ख़बर को पढ़ने में चार दिन लग गए। आपके पास तो मुझसे भी कम वक्त होगा। मगर नेताओं की इस दोस्ती को समझिये। बहुत वक्त नहीं लगेगा। अगर आपको वाकई लग रहा है कि कोई भ्रष्टाचार से लड़ रहा है तो आपका कुछ नहीं हो सकता है। आप अख़बार लेना बंद कर दीजिए, टीवी देखना बंद कर दीजिए और इंटरनेट के कनेक्शन कटवा दें। सबसे बड़ा सुखी वही है जो अ ज्ञान ी है आज के जगत में। वो सुखी भी है और मूर्ख भी।