लखनऊ: सूबे की सरकार के चर्चित मंत्री गायत्री प्रजापति पर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और उनकी पत्नी साधना गुप्ता ही नहीं, अखिलेश यादव भी मेहरबान जान पडते हैं। अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के पक्ष में भले ही वह चुनाव प्रचार करने के लिये जसवंतनगर न गये हों, लेकिन गायत्री प्रजापति को चुनाव जिताने के लिये उन्होंने आज अमेठी जाकर बडे दमखम से अपनी जनसभा की। यह जानते हुए इसी शनिवार को ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गायत्री के खिलाफ लखनऊ के गौतमपल्ली थाना में आई.पी.सी. की कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो गया है। उन्होंने इस बात की भी चिंता नहीं की इसी सीट पर उनके नये सियासी हमसफर राहुल गांधी ने भी कांग्रेस के अधिकृत उम्मदवार अमिता सिंह को चुनावी अखाडे में उतार दिया है।
ऐसे में इस सवाल का माकूल जवाब खुद मुलायम सिंह यादव ही दे सकते हैं कि आखि रवह इस विवादित शख्स पर इतने मेहरबान क्यों रहे ह? उन्हीं की अनुकंपा से यह देखते ही देखते रंक से राजा हो गये। एक समय था, जब अमेठी के परसावा गांव के निवासी गायत्री प्रजापति बी.पी.एल. कार्डधारक के हैसियत से गरीबी की रेखा के नीचे जैसेतैसे अपनी जिंदगी बसर कर रहे थे। लेकिन, तकदीर पलटते ही यह मुलायम सिंह यादव के संपर्क में आये। दोनों ने एक दूसरे को अपने काम का समझा। इसके बाद ही गायत्री को सियासी मैदान में उतार दिया गया। 2012 में अखिलेश यादव की सरकार बनने पर इन्हें खनन विभाग जैसे बेहद ‘उपजाऊ‘ विभाग का मंत्री बना दिया गया। इसके बाद यह देखते ही देखते अरबपति बन गये। कई शानदार कोठियों और बी.एम.डब्लू जैसी बेहद मंहगी कई लक्जरी कारों के मालिक। नकदी भी 942.57 करोड रु के आसपास।
सवाल है कि गायत्री प्रजापति में ऐसी क्या खासियत है कि वह मुलायम सिंह यादव और उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के भी कंठहार बन गये? साधना गुप्ता को तो इन्होंने अपने संरक्षक जैसा दर्जा दे दिया। क्यों? इस सवाल का जवाब जानने के लिये लोगों को कोर्ट से सी.बी.आई जांच की गुजारिश करनी पड सकती है? इस सवाल पर आज भी रहस्य का पर्दा पडा हुआ है। गायत्री पर आरोप है अपनी ‘विलक्षण प्रतिभा और अद्भुत सेवा‘ के बल पर इन्होंने मुलायम सिंह यादव सहित उनके परिवार को मंत्रमुग्ध जैसा कर रखा है। क्या यह सच है कि इनकी कमाई वाले कई धंधों में साधना गुप्ता के पुत्र प्रतीक यादव की हिस्सेदारी है और कथित रियल स्टेट के व्यवसाय के कारण इन दोनों नजदीकियां काफी बढ गयी हंै?
लगता है कि अपने बेटे प्रतीक यादव के सुखद और स्वर्णिम भविष्य के लिये साधना गुप्ता को भी गायत्री प्रसाद प्रजापति जैसी शख्सियत की जरूरत थी? उन्हीं के कथित दबाव के चलते ही यह मुख्य मंत्री अखिलेश यादव पर भी हावी हो गये। लिहाजा, उन्हें इनके कारनामों की अनदेखी करने के लिये विवश हो जाना पडा। इस तरह गायत्री अपनी मनमानी करने के लिये बेलगाम हो गये। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आगे इनका एक भी दांवपेंच नहीं चल सका। इसके पहले भी इनके दामन को बचाने की गरज से अखिलेश सरकार ने जीजान कोशिशें की। लेकिन देश की सबसे बडी अदालत ने प्रदेश में अंधाधुंध चल रहे अवैध खनन के आरोप की सी.बी.आई.जांच का आदेश दे ही दिया।
ऐसे ही और भी कई सवाल। आसानी से समझ में न आ सकने वाला एक सवाल यह भी कि आखिर क्या वजह है कि कथित बेदाग रहे मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की सरकार के ‘कारनामों‘ को लेकर अब तक कोर्ट को कई बार हस्तक्षेप करना पडा है। मसलन, प्रदेश के लोकायुक्त एन.के.मेहरात्रा का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी इनकी सरकार नये लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर रही थी। लिहाजा, देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब स्वयं सुप्रीम कोर्ट को प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति करनी पडी है। प्रदेश में अवैध खनन के मामले मे सी.बी.आई. की जांच रुकवाने के लिये इनकी सरकार बडी मजबूती से अपनी जिद पर अडी रही। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच का आदेश दिये जाने पर सरकार का बुलंद हौसला पस्त हो गया।
दिमाग को चकरा देने वाला आरोप यह भी है कि आतंकी मामलों में फंसे आरोपितों पर चल रहे मुकदमों की वापसी लेने के लिये जब सूबे की सरकार ने पुरजोर कोशिश की तो कोर्ट को यह टिप्पणी करने के लिये मजबूर होना पड गया कि ‘आज आप मुकदमे वापस ले रहे हैं, कल आप उन्हें पद्मश्री देंगे।‘ नोएडा के तत्कालीन चीफ इंजीनियर साहब सिंह के हजार करोड से भी ज्यादा के भ्रष्टाचार के मामले की भी सी.बी.आई. जांच रोकने के लिये भी इनकी सरकार ने क्या नहीं किया? अपनी एडी से लेकर चोटी तक का पसीना एक कर दिया। लेकिन, इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आगे इनकी सरकार को घुटने टेक देने पडे।