अनाथाश्रम का नाम जब भी सुनते है तो सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि कितने बदनसीब
बच्चे है जिनकी परवरिश अनाथ आश्रम में हो रही है अौर वृद्धाश्रम का नाम सुनते है की कितने बदनसीब
माँ-बाप है जिन्हें अपने बच्चों के होते हुए वृद्धाश्रम में रहना पढ़ रहा है । अनाथ आश्रम को तो चलों हम सोच
सकते है कि बच्चों को जन्म देने के बाद उनकी परवरिश के लिये पैसे ना हो तो बच्चों को वा माँ बाप अनाथ
आश्रम में छोड़ गये हो या कोई और मजबूरी हो । पर कोई भी मजबूरी एेसी नहीं जिसके लिये अपने बच्चों
को अनाथ आश्रम में छोडना पढ़े । पर उन बच्चों की क्या मजबूरी होगी जिन्हें अपने माँ बाप को वृद्धाश्रम में
छोड़ना पड़े । वो माँ बाप जिन्होंने उन्हे चलना सिखाया पढ़ाया लिखाया खुद भूखे रहकर भी उन्हें पेट भर
खिलाया और अपना तन-मन -धन सब उन पर न्यौछावर कर दिया । एक माँ बाप अपने दस बच्चों का
पेट भर सकते है पर क्या दस बच्चें अपने माँ बाप का पेट नहंी भर सकते । जब उन्हें अपने बुढ़ापे में अपने
बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तब क्या वो उनका साथ नहीं दे सकते । जो उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़
आते है पर सच बोलू अगर ऐसी औलाद हो तो बे-औलाद होना सबसे अच्छा है क्यूकि फिर कम से कम
उन्हें उम्मीद तो नहीं होगी ।