नारी शायद भगवान की बनाई इस सृष्टि में ऐसी रचना है जिसे हम कई नामों में जानते है माँ, बहन, पत्नि, दोस्त
और भी बहुत नामों से जानते है और नारी ही एक भगवान की ऐसी रचना है जो इन्सान को जन्म देती है उसे
9 महीने पेट में रखकर ना जानें कितनी असहनीय पीड़ा भोगती है और जहां वो पैदा होती है जहां खेलती है
अपना बचपन से लेकर जवानी तक का सफर तय करती है उसी जगह को छोड़कर अपने ससुराल जाती है
फिर उस घर की जिम्मेदारी निभाती है और ना जाने अनेकों कष्ट सहते हुए अपने परिजनों से दूर अन्जान
लोगों के बीच उनकी ही तरह अपने आप को डालती है ।
फिर भी उसे ये सब करने के बावजूद तिरस्कार झेलना पड़ता है और ये तिरस्कार अब ही नहीं बल्कि
कई युगों से झेलती आ रही है माता सीता को अपने आपकाे पवित्र साबित करने के लिये अग्नि परीक्षा देनी
पड़ी और सावित्री को अपने पति सत्यवान को बचाने के लिये ना जाने कितने कष्ट उठाने पड़े क्या ये
सभी कष्ट नारी के लिये ही है ? आजकल तो नारी कहने को बहुत आगे बढ गई है पुरूष की बराबरी कर रही है
पर फिर भी रात को अकेले कहीं बाहर जाने से डरती है क्यूँ ? क्या यहां सिर्फ नारी को ही हर बार परीक्षा देनी
होगी ।
क्यूं सिर्फ हमेशा नारी को ही अपने चरित्र की परीक्षा देनी होगी ? नारी भगवान की ऐसी खूबसूरत रचना है जिसे इन्सान शायद आजतक नहीं समझ पाया ।क्या हम हमेशा उसी से ही हर चीज की उम्मीद करें ?
क्या हम हमेशा ऐसे ही रहेगें ? क्या हमें अपने आपको नहीं बदलना चाहिये ? क्या हमेशा ये समाज पुरूष
प्रदान ही रहेगा ?
यही सवाल बस दिमाग में घूमता रहता है जिसका जवाब में अभी तक नहंी ढूंढ पाया ।