मैं जैसे ही अलवर स्टेशन पर पहुंचा ट्रैन आ गई थी मैं बिना टिकिट लिए ट्रैन में चढ़ गया ट्रैन में भीड़ थी पर मुझे
सीट मिल गई मेरे पास टिकिट नहीं थी तो डर भी लग रहा था कही टिकिट चेक करने वाला न आ जाये जैसे ही
किसी स्टेशन पर ट्रैन रूकती मेरी दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो जाती और डर के मारे में ट्रैन की सारी तरफ
देखता कही टिकिट चैक करने वाला तो नहीं आ गया ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा और जहां ट्रैन रूकती
मेरा हाल ऐसे होता जैसे ना जाने मेने ऐसा क्या कर दिया इस पुरे सफर में मेरा हाल ऐसा था जैसे मेने कोई
बहुत बड़ा जुर्म कर दिया हो और जैसे ही गुडगाँव स्टेशन पर ट्रैन रुकी मेरी जान में जान आई और मुझे लगा
चलो अब डर की कोई बात नहीं है जैसे ही में ट्रैन से उतरा टिकिट चेक करने वाले ने मुझे पकड़ लिया और मेरी
350 रूपए की पर्ची काट दी और इसी पैसे को बचाने के चक्कर में मेने अपना खून सूखा लिया था !