लखनऊ: इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कानून और व्यवस्था के मामले में प्रकारांतर से अखिलेश सरकार के दोहरे चरित्र पर सवाल उठाया है। वह इस बात से स्तब्ध है कि एक के बाद दूसरा अपराध करने के बावजूद अतीक अहमद को अदालत से जमानत क्यों मिलती रही है? इसी 15 फरवरी को इलाहाबाद के चर्चित शियाट्स कांड की सुनवाई करते समय लगा कि इस मामले को हाइकोर्ट ने बहुत गंभीरता से लिया है। लिहाज़ा, उसके सख्त रवैये के कारण सूबे की अखिलेश सरकार की जान सांसत में पड गयी जाप पड रही है। युवा मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की पुलिस इतने जघन्य कांड के मुख्य आरोपी अतीक अहमद मेहरबान होकर उसे छुट्टा घूमने की छूट दे रखी थी। ‘ऊपर‘ का कथित संरक्षण पाने से अतीक अहमद एकदम बेफिक्र था। पूलिस उसकी छाया तक से दूर भागने की कोशिश कर रही थी। ऐसे में पीडितों में दहशत होना स्वाभाविक ही था। अंततः कोर्ट के सख्त आदेश से उसकी गिरफ्तारी और उसके आपराधिक रिकार्ड को पेश करने के उसे शिकंजे में लिया जा सका है। लिहाज़ा, अब दिन में ही तारे दिखाई पडने लगे हैं।
इस प्रकरण को लेकर अब स्वयं मुख्य मंत्री अखिलेश यादव पर दोहरा चरित्र अपनाने का सवाल उठ रहा है। आरोप है कि जाहिरातौरपर एक ओर तो वह प्रदेश के आमअवाम को यह जताने की कोशिश करते हैं कि उन्हें अपराध और आपराधिक कार्यो में लगे लोगों से बेहद सख्त नफरत है। अपने इसी स्वांग के चलते उन्होंने कुछ समय पहले एक सार्वजनिक समारोह में अतीक अहमद से हाथ तक मिलाने से परहेज किया था। कौशांबी जनपद में अपनी एक जनसभा के मंच पर उपस्थित इस बाहुबली को उन्होंने दुत्कारने तक का दिखावा किया था। इस चुनाव में उसे सपा की ओर से कानपुर कीं एक सीट से चुनाव लडने के लिये दिया गया टिकट तक को रद्द कर दिया था। लेकिन, मजे की बात तो यह कि दूसरी ओर, उनकी पुलिस ने नैनी इलाके में स्थित एक सम्मानित सस्थान में अहिंसात्मक उपद्रव कराने के मुख्य आरोपी इस बाहुबली को छुट्टा घूमने की पूरी छूट दे रखी थी।
बहरहाल, इसी 15 फरवरी को इलाहाबाद हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी0 बी0 भोसले तथा न्यायाधीश यशवंत वर्मा की पीठ द्वारा इस मामले की हो रही सुनवाई के दौरान ऐसी तमाम सनसनीखेज बातें उजागर हुई हैं। पीठ बाहुबली अतीक अहमद का कच्चा चिट्ठा जानकर स्तब्ध रह गयी है। पुलिस रिकार्ड में इस पर 83 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें 43 गंभीर किस्म के हैं। इस समय यह जमानत पर हैं।
इस स्तब्धकारी तथ्य जानने के बादं मुख्य न्यायाधीश भोसले का तो यह तक कहना रहा है कि वकील और न्यायाधीश के तौर पर अपने 31 वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने ऐसा मामला पहले कभी नहीं देखा। न ऐसी सरकारी नीति ही देखी हैं। उन्होंने यह ज्वलंत सवाल उठाते हुए कहा कि वह (अतीक अहमद) एक के बाद एक अपराध कर रहा है और हर बार उसे अदालत से जमानत मिल जाती रही है? पीठ ने इस बात पर अपनी हैरानी जतायी कि एक व्यक्ति 1980 से लगातार अपराध पर अपराध किये जा रहा है और हर बार उसे जमानत मिल जाती है। जमानत की यह शर्त होती है कि यदि ऐसा कोई व्यक्ति दूसरे अपराध में शामिल होगा, तो उसकी जमानत रद्द कर दी जायेगी। हाइकोर्ट ने प्रदेश की अखिलेश सरकार से यह जानना चाहा है कि इसी 17 फरवरी को ही वह कोर्ट को यह बताये कि अतीक अहमद की जमानत रद्द कराने के लिये उसने अब तक क्या कार्रवाई की है? साथ ही यह आदेश भी दिया है कि वह इसके सभी मुकदमों में मिली जमानत को निरस्त कराये।
बहरहाल, इस प्रकरण से यह एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी प्रदेश की कानून और व्यवस्था को बनाये रखने में सत्तारूढ दल की बडी अहं भूमिका होती है। अन्य राजनीति क दलों के संरक्षण और पुलिस की मिलीभगत के बिना बेलगाम अपराधियों और अपराध का बोलबाला नहीं बढ़ सकता है। इसकी सबसे ताजी मिसाल इस बार चार जनवरी को विधान सभाई चुनाव की तारीख घोषित हो जाने के बाद पुलिस द्वारा पिछले पचास दिनों में अवैध हथियार बनाने की लगभग दो सौ फैक्टरियां की बरामदगी करना हैं। इसके अलावा, उसने साढे छह हजार से अधिक नाजायज असलहे भी बरामद किये हैं। इस अवधि में प्रदेश में रोजाना अवैध असलहों की लगभग पांच फैक्टरियां और दो सौ अवैध हथियार बरामद होते रहे हैं। इसकी बुनियादी वजह पुलिस प्रशासन पर किसी भी तरह का अनुचित राजनीतिक दबाव का न होना रहा है। इसी सच को अपनी दामन बचाते हुए प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने कुछ इस से स्वीकार किया है कि पुलिस की सख्ती का ही यह नतीजा रहा है। इसके पहले ऐसी कार्रवाई न होने की और भी कई वजहें हो सकती हैं।