नई दिल्ली : भारत में बाल मजदूरी को रोकने के लिए बनाये गए अनेकों कानून कितने महत्वहीन हैं इसका संकेत जनगणना के ताजा आंकड़ों में सामने आया है। यही नहीं भारत में शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर दिया गया है, जिसमे कहा गया है की 6 से 14 साल तक किसी भी बच्चे को मुफ्त शिक्षा देना उसका संवैधानिक अधिकार है। भारतीय जनगणना के ताज़ा आंकड़ों ने भारत में बच्चों की शिक्षा और मजदूरी को लेकर चौकाने वाले आंकड़े पेश किये हैं।
आंकड़ों की माने तो भारत में आज भी 78 लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें मजदूरी करने के लिए विवश होना पड़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार मजदूरी करने वाले बच्चों में 5 से 17 साल की उम्र वाले बच्चों की संख्या 8.4 करोड़ है जो स्कूल नहीं जा पाते। वहीँ मजदूरी करने वाले बच्चों में 57 फ़ीसदी लड़के हैं जबकि 43 फ़ीसदी लड़कियां हैं। मजदूरी करने वाले बच्चों में 6 साल की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं।
बच्चों की मजदूरी रोकने के लिए हैं कई कानून
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा के लिए सभी आधारिक संरचना और संसाधन उपलब्ध कराने की बात कही गई है। वहीँ कारखाना अधिनियम 1948 के तहत 14 साल तक की आयु वाले बच्चों को कारखाने में काम करने से रोकने का प्रावधान है। यही नहीं खदान अधिनियम 1986 में 18 साल से कम आयु वाले बच्चों का खदानों में काम करना अपराध बताया गया है।
बाल श्रम अधिनियम (निषेध एवं नियमन) 1986 में कहा गया है कि 14 साल से कम आयु वाले बच्चों के जीवन को जोखिम में डालने वाले व्यवसायों में, जिन्हें कानून द्वारा निर्धारित की गई सूची में शामिल किया गया है, में काम करना निषेध है। इसके अलावा, बच्चों का किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2000 ने बच्चों के रोजगार को एक दंडनीय अपराध बना दिया है।