हाँ, मैं अपने पापा की परी हूँ
तभी अपने कदमो पर खड़ी हूँ
अपने सपनो पर मै अडिग हूँ,
मेरे पापा के सपनो के पूरे करने की अंतिम मै ही एक कड़ी हूँ।
याद आती हैं उस घड़ी की,
जब मैं अपने पापा की बेटी थी।
याद आती हैं उस वक़्त की,
जब मेरी हर फ़रमाहिश पूरी होती थी।
अब तो जीवन मे मानो सब कुछ ही बदल गया,
मेरा बचपन मानो मुझसे छीन ही गया,
बहुत याद आते हैं अब वो वक़्त,
पता नही वो समय कहा खो गया।
किसी ओर के घर मुझको दे दिया,
लडकिया परायी होती हैं इसका बहाना दे दिया,
एक शादी के रिश्ते ने,मानो सब कुछ ही बदल दिया
जो अपने थे उनको एक ही पल में पराया कर दिया।
बेटियां परायी होती ये कानून जिसने भी बनाया होगा,
एक पल को जीवन मे उसे भी रोना आया होगा।।
बेटिया समझ ना पाई अपना घर कौन सा हैं,
वो घर जिसमे उनसे ही रौनक थी,
या फिर जिसमे अब उनसे ही सवेरा हैं।