shabd-logo

भाग 25

2 अगस्त 2022

15 बार देखा गया 15

गुजुरपाड़ा ब्रह्मपुत्र के किनारे छोटा-सा गाँव है। एक छोटा-सा जमींदार है, नाम है, पीताम्बर राय; बाशिंदे अधिक नहीं हैं। पीताम्बर अपने पुराने चण्डीमण्डप में बैठा स्वयं को राजा कहता रहता है। उसकी प्रजा भी उसे राजा कहती रहती है। उसकी राजा-महिमा इसी चिरौंजी-वन से घिरे छोटे-से ग्राम में विराजती है। उसका यश इसी ग्राम के निकुंजों के मध्य गूँजते हुए इसी ग्राम की सीमाओं के बीच विलीन हो जाता है। संसार के बड़े-बड़े राजाधिराजों का प्रखर प्रताप इस छायामय नीड़ में प्रवेश नहीं कर पाता। केवल तीर्थ-स्नान के उद्देश्य से नदी के किनारे त्रिपुरा के राजाओं का एक विशाल प्रासाद है, लेकिन दीर्घ काल से राजाओं में से कोई स्नान करने नहीं आता, इसीलिए ग्रामवासियों में त्रिपुरा के राजाओं के विषय में मात्र एक धुँधली-सी जनश्रुति प्रचलित है।

भाद्र माह में एक दिन गाँव में समाचार आया, त्रिपुरा का एक राजकुमार नदी किनारे वाले पुराने प्रासाद में रहने आ रहा है। कुछ दिन बाद बड़ी-बड़ी पगड़ियाँ बाँधे लोगों ने आकर प्रासाद में भारी धूम मचा दी। उसके लगभग एक सप्ताह के बाद हाथी-घोड़े, लाव-लश्कर लेकर स्वयं नक्षत्रराय गुजुरपाड़ा गाँव में आ पहुँचा। तामझाम देख कर ग्रामवासियों के मुँह से एक शब्द नहीं निकला। अब तक पीताम्बर बहुत बड़ा राजा प्रतीत होता था, लेकिन आज किसी को भी वैसा नहीं लगा; नक्षत्रराय को देख कर सभी ने एक बात कही, "हाँ, सही में राज-पुत्र ऐसा ही होता है!"

इस प्रकार पीताम्बर अपने पक्के दालान और चण्डीमण्डप सहित एकदम लुप्त तो हो गया, किन्तु उसके आनंद की सीमा न रही। नक्षत्रराय को उसने ऐसे राजा के रूप में अनुभव किया कि अपनी क्षुद्र राजा-महिमा सम्पूर्णत: नक्षत्रराय के चरणों में समर्पित करके वह परम सुखी हो गया। जब कभी नक्षत्रराय हाथी पर चढ़ कर बाहर निकलता, पीताम्बर अपनी प्रजा को बुला कर कहता, "राजा देखा है? यह देखो, राजा देखो।" पीताम्बर प्रति दिन मछली, तरकारी आदि भोज्य पदार्थ उपहार में लेकर नक्षत्रराय से मिलने आता - उसका तरुण सुन्दर चेहरा देख कर स्नेह से उच्छ्वसित हो उठता। नक्षत्रराय ही गाँव का राजा बन गया। पीताम्बर जाकर प्रजा में शामिल हो गया।

प्रति दिन तीन समय नौबत बजने लगी, गाँव के रास्ते पर हाथी-घोड़े चलने लगे, राज-द्वार पर नंगी तलवारों की बिजली खेलने लगी, हाट-बाजार जम गया। पीताम्बर और उसकी प्रजा पुलकित हो उठी। नक्षत्रराय इस निर्वासन में राजा बन कर सारे दुःख भूल गया। यहाँ राज-शासन की जिम्मेदारी तनिक भी नहीं, जबकि राजत्व का सुख पूरा है। यहाँ वह सम्पूर्णत: स्वाधीन है, स्वदेश में उसका इतना प्रबल प्रताप नहीं था। इसके अलावा, यहाँ रघुपति की छाया नहीं है। मन के उल्लास में नक्षत्रराय विलास में डूब गया। ढाका नगरी से नट-नटी आ गए, नक्षत्रराय को नृत्य-गीत-वाद्य में तिल भर अरुचि नहीं है।

नक्षत्रराय ने त्रिपुरा की राज कार्य-पद्धति का सम्पूर्णत: पालन किया। भृत्यों में से किसी का नाम रख लिया मंत्री, किसी का नाम रख लिया सेनापति, पीताम्बर को दीवानजी के नाम से जाना जाने लगा। रीति के अनुसार राज-दरबार बैठता था। नक्षत्रराय परम दिखावे के साथ न्याय करता था। नकुड़ ने आकर शिकायत की, "मथुर ने मुझे 'कुत्ता' कहा है।" विधान के अनुसार उस पर विचार आरम्भ हुआ। विविध प्रमाण एकत्रित करने के बाद मथुर के दोषी सिद्ध होने पर नक्षत्रराय ने परम गंभीर मुद्रा में न्यायाधीश के आसन से आदेश दिया - नकुड़ मथुर के दोनों कान मरोड़ दे। इस प्रकार सुखपूर्वक समय व्यतीत होने लगा। किसी-किसी दिन हाथ में बिलकुल काम न रहने पर किसी नवीन असाधारण मनोरंजन की उद्भावना के लिए मंत्री को तलब किया जाता। मंत्री राज-सभासदों को एकत्र करके नितांत हैरान-परेशान होकर नवीन खेल सोचने में जुट जाता, गहन चिंतन और सलाह-मशविरे की सीमा न रहती। एक दिन सैनिक-सामंत लेकर पीताम्बर के चण्डी-मण्डप पर आक्रमण किया गया था, उसके पोखर से मछलियाँ और उसके बगीचे से नारियल और पालक-शाक लूट के माल के रूप में अत्यंत धूमधाम के साथ बाजा बजाते हुए महल में लाया गया था। इस प्रकार के खेल से नक्षत्रराय के प्रति पीताम्बर का स्नेह और भी गाढ़ा हो जाता था।

आज महल में बिल्ली के बच्चे का विवाह है। नक्षत्रराय की एक शिशु-बिल्ली थी, मंडल परिवार के बिल्ले के साथ उसका विवाह होगा। चूडामणि घटक को घटकाली स्वरूप तीन-सौ रुपए और एक शाल मिला है। शरीर पर उबटन आदि सारी रस्में हो चुकी हैं। आज शुभ लग्न में संध्या समय विवाह होगा। इन कुछ दिन राजबाड़ी में किसी को तनिक भी फुर्सत नहीं है।

संध्या समय पथ-घाट जगमगाने लगे, नौबत बैठ गई। मंडल परिवार के घर से जरीदार रेशमी कपड़े पहन कर पालकी पर चढ़ कर अति कातर स्वर में म्याऊँ म्याऊँ करते हुए वर ने यात्रा शुरू कर दी है। मंडल परिवार का छोटा लड़का उसकी गर्दन की रस्सी थामे उसके साथ-साथ मितवर के समान आ रहा है। उलु-शंख ध्वनि के बीच पात्र विवाहोत्सव में बैठा।

पुरोहित का नाम केनाराम है, किन्तु नक्षत्रराय ने उसका नाम रख लिया था, रघुपति। दरअसल नक्षत्रराय रघुपति से डरता था, इसी कारण नकली रघुपति के साथ खेल करके सुखी होता था। यहाँ तक कि बात-बात में उसका उत्पीड़न करता था; गरीब केनाराम सब कुछ चुपचाप सहन करता था। आज देव-दुर्विपाक से केनाराम सभा से अनुपस्थित था - उसका बेटा ज्वर से मरणासन्न था।

नक्षत्रराय ने अधीर स्वर में पूछा, "रघुपति कहाँ है?"

भृत्य ने कहा, "उनके घर में कोई बीमार है।"

नक्षत्रराय दुगुने ऊँचे स्वर में बोला, "बोलाओ उस्को।"

आदमी दौड़ा। तत्क्षण रोते हुए बिल्ले के सामने नाच-गाना होने लगा।

नक्षत्रराय बोला, "साहाना (एक रागिनी का नाम) गाओ।" साहाना-गान आरम्भ हो गया।

कुछ देर बाद भृत्य ने आकर निवेदन किया, "रघुपति आए हैं।"

नक्षत्रराय रोष के साथ बोला, "बोलाओ।"

तुरंत पुरोहित ने कक्ष में प्रवेश किया। पुरोहित को देखते ही नक्षत्रराय की भृकुटी गायब हो गई, उसकी सम्पूर्ण मुद्रा बदल गई। उसका चेहरा पीला पड़ गया, माथे पर पसीना दिखाई देने लगा। साहाना-गान, सारंगी और मृदंग सहसा बंद हो गए; मात्र बिल्ले की म्याऊँ म्याऊँ की आवाज निस्तब्ध कक्ष में दुगुने वेग से गूँजने लगी।

यह तो रघुपति ही है। इसमें कोई संदेह नहीं। लंबा, पतला, तेजस्वी, बहुत दिन के भूखे कुत्ते के समान दोनों आँखें जल रही हैं। वह अपने धूल में सने दोनों पैर मखमली दरी पर जमा कर सिर उठा कर खड़ा हो गया। बोला, "नक्षत्रराय!"

नक्षत्रराय चुप रहा।

रघुपति ने कहा, "तुमने रघुपति को बुलाया। मैं आ गया हूँ।"

नक्षत्रराय ने अस्पष्ट स्वर में कहा, "ठाकुर - ठाकुर!"

रघुपति ने कहा, "उठ कर आओ।"

नक्षत्रराय धीरे-धीरे सभा से उठ गया। बिल्ली का ब्याह, साहाना और सारंगी पूरी तरह थम गए।

42
रचनाएँ
राजर्षि
0.0
राजर्षि'। 'राजर्षि' में कर्तव्य अकर्तव्य की कसौटी पर पापपुण्य की विवेचना करते हुए घर्मांधता के विरुद्ध जिहाद छेड़ने का प्रयास किया गया है। साथ ही रूढ़ियों को धिक्कारते हुए धर्म, प्रकृति एवं समाज को नए परिपेक्ष्य में देखा गया है। राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।
1

राजर्षि (उपन्यास) : सूचना

2 अगस्त 2022
1
0
0

राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है। बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक क

2

राजर्षि भाग 1

2 अगस्त 2022
1
0
0

भुवनेश्वरी मंदिर का पत्थर का घाट गोमती नदी में जाकर मिल गया है। एक दिन ग्रीष्म-काल की सुबह त्रिपुरा के महाराजा गोविन्दमाणिक्य स्नान करने आए हैं, उनके भाई नक्षत्रराय भी साथ हैं। ऐसे समय एक छोटी लडकी अप

3

भाग 2

2 अगस्त 2022
0
0
0

उसके अगले दिन से नींद टूट जाने के बाद, सूर्य उगने पर भी राजा का प्रभात नहीं होता था; उनका प्रभात तभी होता होता था, जब वे दोनों छोटे भाई-बहनों का चेहरा देख लेते थे। वे प्रतिदिन उन लोगों को फूल चुन कर द

4

भाग 3

2 अगस्त 2022
0
0
0

राज-सभा बैठी है। भुवनेश्वरी देवी मंदिर का पुरोहित कार्यवश राज-दर्शन को आया है। पुरोहित का नाम रघुपति है। इस देश में पुरोहित को चोंताई संबोधित किया जाता है। भुवनेश्वरी देवी की पूजा के चौदह दिन बाद देर

5

भाग 4

2 अगस्त 2022
0
0
0

भुवनेश्वरी देवी मंदिर का सेवक जयसिंह जाति से राजपूत, क्षत्रिय है। उसके पिता सुचेत सिंह त्रिपुरा राज घराने में पुराने सेवक थे। सुचेत सिंह की मृत्यु के समय जयसिंह एकदम बालक था। इस अनाथ बालक को राजा ने म

6

भाग 5

2 अगस्त 2022
0
0
0

प्रात:काल नक्षत्रराय ने आकर रघुपति को प्रणाम करके पूछा, "ठाकुर, क्या आदेश है?" रघुपति ने कहा, "तुम्हारे लिए माँ का आदेश है। चलो, माँ को प्रणाम करो।" दोनों मंदिर में गए। जयसिंह भी साथ-साथ गया। नक्षत्

7

भाग 6

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय के चले जाने पर जयसिंह ने कहा, "गुरुदेव, ऐसी भयानक बात कभी नहीं सुनी। आपने माँ के सम्मुख माँ का नाम लेकर भाई के हाथों भाई की हत्या का प्रस्ताव कर दिया, और मुझे खड़े होकर वही सुनना पड़ा।" रघ

8

भाग 7

2 अगस्त 2022
0
0
0

जयसिंह को पूरी रात नींद नहीं आई। जिस विषय पर गुरु के साथ चर्चा हुई थी, देखते-देखते उसकी शाखा-प्रशाखाएँ निकालने लगीं। अधिकांश समय आरम्भ हमारे अधिकार में होता है, अंत नहीं। चिन्ता के सम्बन्ध में भी यही

9

भाग 8

2 अगस्त 2022
0
0
0

गोमती नदी का दक्षिणी किनारा एक स्थान पर बहुत ऊँचा है। बारिश की धारा और छोटे-छोटे सोतों ने इस ऊँची भूमि को नाना गुहा-गह्वरों में बाँट दिया है। इसके कुछ दूर बडे-बड़े शाल और गाम्भारी1 वृक्षों ने लगभग अर्

10

भाग 9

2 अगस्त 2022
0
0
0

मंदिर बहुत दूर नहीं है। लेकिन जयसिंह निर्जन नदी के किनारे से होते हुए बहुत घूम कर धीरे-धीरे मंदिर की ओर चला। उसके मन में भारी चिन्ता उठने लगी। एक जगह नदी के किनारे पेड़ के नीचे बैठ गया। दोनों हाथों से

11

भाग 10

2 अगस्त 2022
0
0
0

महाराज ने महल लौट कर नियमित राज-काज निबटाया। प्रात:कालीन सूर्यालोक ढक गया है। मेघों की छाया से दिन में ही अंधकार घिर आया है। महाराज अत्यंत अनमने हैं। और दिन नक्षत्रराय राजसभा में उपस्थित रहता है, आज न

12

भाग 11

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय जब राजा का हाथ पकड़े जंगल से घर लौट रहा था, तब आकाश से थोड़ा-थोड़ा उजाला आ रहा था - किन्तु नीचे जंगल में घना अंधेरा छा रहा है। मानो अंधकार की बाढ़ आ रही है, केवल पेड़ों की चोटियाँ ऊपर से बच

13

भाग 12

2 अगस्त 2022
0
0
0

जयसिंह उसके अगले दिन मंदिर में लौट कर आया। अब तक पूजा का समय निकल चुका है। रघुपति दुखी चेहरा लिए अकेला बैठा है। इसके पहले कभी ऐसा नियम भंग नहीं हुआ था। जयसिंह गुरु के निकट न जाकर अपने बगीचे में चला ग

14

भाग 13

2 अगस्त 2022
0
0
0

मंदिर में अनेक लोग एकत्र हो गए हैं। खूब कोलाहल हो रहा है। रघुपति ने रूखे स्वर में पूछा, "तुम लोग क्या करने आए हो?" वे नाना कण्ठों में बोल पडे, "हम लोग ठकुराइन(देवी के काली रूप को ठकुराइन भी कहा जाता

15

भाग 14

2 अगस्त 2022
0
0
0

उसके अगले दिन आषाढ़ की उनतीसवीं तिथि। आज रात चतुर्दश देवताओं की पूजा है। आज जब प्रभात में ताड़-वन की ओट से सूरज उठ रहा है, तो पूर्व दिशा में बादल नहीं हैं। जब जयसिंह स्वर्णकिरणों से भरे आनंदमय कानन मे

16

भाग 15

2 अगस्त 2022
0
0
0

चतुर्दशी तिथि। बादल भी छाए हैं, चन्द्रमा भी निकला है। आकाश में कहीं आलोक है, कहीं अंधकार। कभी चन्द्रमा निकल रहा है, कभी चन्द्रमा छिप रहा है। गोमती के किनारे वाला जंगल चन्द्रमा की ओर देख कर अपनी गहन अं

17

भाग 16

2 अगस्त 2022
0
0
0

राजा के आदेश के अनुसार नक्षत्रराय प्रजा के असंतोष का कारण खोजने के लिए प्रभात-काल में स्वयं बाहर निकला। उसे चिन्ता होने लगी, मंदिर कैसे जाए! रघुपति के सामने पड़ जाने पर वह कैसा सकपका जाता है, अपने को

18

भाग 17

2 अगस्त 2022
0
0
0

ध्रुव उसी दिन शाम को नक्षत्रराय को देखते ही "चाचा" पुकारते हुए दौड़ा हुआ आया, छोटे-छोटे दोनों हाथ उसके गले में डाल कर, उसके कपोल से कपोल छुआ कर, मुँह के पास मुँह ले गया। धीरे से बोला, "चाचा।" नक्षत्र

19

भाग 18

2 अगस्त 2022
0
0
0

अगले दिन न्याय। न्यायालय में लोगों की भीड़। न्यायाधीश के आसन पर राजा विराजमान हैं, सभासद चारों ओर बैठे हैं। दोनों बंदी सामने हैं। किसी के भी हाथों में हथकड़ी नहीं हैं। केवल सशस्त्र प्रहरी उन्हें घेरे

20

भाग 19

2 अगस्त 2022
0
0
0

प्रहरियों ने जब निर्वासन के लिए तैयार रघुपति से पूछा, "ठाकुर, किस दिशा में जाएँगे," तो रघुपति ने उत्तर दिया, "पश्चिम की ओर जाऊँगा।" नौ दिन तक पश्चिम की ओर यात्रा करने के बाद बंदी और प्रहरी ढाका शहर क

21

भाग 20

2 अगस्त 2022
0
0
0

विजयगढ़ का विशाल जंगल ठगों का अड्डा है। जो रास्ता जंगल में से होकर गुजरा है, उसके दोनों ओर कितने ही नर-कंकाल दबे हैं, उनके ऊपर केवल जंगली फूल खिल रहे हैं, और कोई निशान नहीं। जंगल में वट है, बबूल है, न

22

भाग 21

2 अगस्त 2022
0
0
0

विजयगढ़ पहाड़ पर है। विजयगढ़ का जंगल दुर्ग के आसपास जाकर समाप्त हो जाता है। रघुपति ने जंगल से बाहर निकल कर अचानक देखा, मानो पत्थर का विशाल दुर्ग नीले आकाश की अवहेलना करते हुए खड़ा है। अरण्य जिस प्रकार

23

भाग 22

2 अगस्त 2022
0
0
0

किसी प्रकार शाहशुजा को मुट्ठी में करना ही रघुपति का उद्देश्य था। उसने जैसे ही सुना, शुजा दुर्ग पर आक्रमण करने में जुटा है, वैसे ही सोच लिया, मित्र भाव से दुर्ग में प्रवेश करके किसी तरह दुर्ग पर आक्रमण

24

भाग 23

2 अगस्त 2022
0
0
0

चाचा साहब के लिए क्या आनंद का दिन है। आज दिल्ल्लीश्वर के राजपूत सैनिक विजयगढ़ के अतिथि हुए हैं। प्रबल प्रतापी शाहशुजा आज विजयगढ़ का बंदी है। कार्तवीर्यार्जुन के बाद से विजयगढ़ को ऐसा बंदी और नहीं मिला

25

भाग 24

2 अगस्त 2022
0
0
0

सुचेत सिंह को चाचा साहब के चंगुल से छूटने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ा। कल प्रात: बंदी सहित सम्राट की सेना के कूच का दिन निर्धारित हुआ है, यात्रा की तैयारी के लिए सैनिक नियुक्त हुए हैं। शाहशुजा कै

26

भाग 25

2 अगस्त 2022
0
0
0

गुजुरपाड़ा ब्रह्मपुत्र के किनारे छोटा-सा गाँव है। एक छोटा-सा जमींदार है, नाम है, पीताम्बर राय; बाशिंदे अधिक नहीं हैं। पीताम्बर अपने पुराने चण्डीमण्डप में बैठा स्वयं को राजा कहता रहता है। उसकी प्रजा भी

27

भाग 26

2 अगस्त 2022
0
0
0

रघुपति ने पूछा, "यह सब क्या हो रहा था?" नक्षत्रराय ने सिर खुजलाते हुए कहा, "नाच हो रहा था।" रघुपति ने घृणा से मुँह सिकोड़ते हुए कहा, "छी छी!" नक्षत्र अपराधी के समान खड़ा रहा। रघुपति ने कहा

28

भाग 27

2 अगस्त 2022
0
0
0

दीर्घ पथ। कहीं नदी, कहीं घना जंगल, कहीं छायाहीन प्रांतर - कभी नौका पर, कभी पैदल, कभी टट्टू घोड़े पर - कभी धूप, कभी बारिश, कभी कोलाहल भरा दिन, कभी रात्रि का निस्तब्ध अंधकार - नक्षत्रराय बिना रुके चलता

29

भाग 28

2 अगस्त 2022
0
0
0

अंतत: राजधानी पहुँच गए। पराजय और पलायन के बाद शुजा नवीन सैन्य-संगठन की कोशिश में लगा है। किन्तु राज-कोष में अधिक धन नहीं है। प्रजा-जन कर के भार से पीड़ित हैं। इसी बीच दारा को पराजित और निहत करके औरंगज

30

भाग 29

2 अगस्त 2022
0
0
0

इस उपन्यास के आरम्भ काल से अब तक दो वर्ष हो गए हैं। तब ध्रुव दो बरस का बालक था। अब उसकी उम्र चार बरस है। अब वह बहुत बातें सीख गया है। अब वह अपने को बहुत बड़ा आदमी समझता है; यद्यपि सारी बातें साफ-साफ न

31

भाग 30

2 अगस्त 2022
0
0
0

इस साल त्रिपुरा में एक अभूतपूर्व घटना घटी। सहसा उत्तर से झुण्ड के झुण्ड चूहे त्रिपुरा के खेतों में आ पहुँचे। सारी फसल बर्बाद कर डाली, यहाँ तक कि किसानों के घरों में जितना कुछ अनाज इकट्ठा था, वह भी अधि

32

भाग 31

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय मुगल सैनिकों का स्वामी बना रास्ते में तेंतुले नाम के एक छोटे-से गाँव में विश्राम कर रहा था। प्रात:काल रघुपति ने आकर कहा, "महाराज, यात्रा पर निकलना है, तैयार हो जाइए।" रघुपति के मुँह से स

33

भाग 32

2 अगस्त 2022
0
0
0

जब त्रिपुरा में चूहों का उत्पात शुरू हुआ था, तब श्रावण माह था। उस समय खेतों में केवल भुट्टे फल रहे थे और पहाड़ी खेतों में धान में दाने आने प्रारम्भ हुए थे। किसी तरह तीन महीने कट गए - अगहन के महीने में

34

भाग 33

2 अगस्त 2022
0
0
0

बिल्वन ठाकुर ढेरों कामों में डूब गया। उसने चट्टग्राम के पहाड़ी क्षेत्रों में विविध प्रकार के उपहारों के साथ द्रुतगामी दूत भेज दिए। वहाँ के कुकी ग्राम-मुखियाओं से कुकी सैनिकों के रूप में सहायता की प्रा

35

भाग 34

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय सैनिकों के साथ आगे बढ़ने लगा, कहीं तिलभर भी बाधा नहीं आई। त्रिपुरा के जिस भी गाँव में उसने कदम रखा, वही गाँव उसकी राजा के रूप में अगवानी करने लगा। पग-पग पर राजत्व का आस्वाद पाने लगा - क्षुध

36

भाग 35

2 अगस्त 2022
0
0
0

गोविन्दमाणिक्य नक्षत्रराय का उत्तर सुन कर बहुत मर्माहत हुए। बिल्वन ने सोचा, शायद महाराज अब आपत्ति प्रकट नहीं करेंगे। किन्तु गोविन्दमाणिक्य बोले, "यह बात कभी भी नक्षत्रराय की नहीं हो सकती। यह उसी पुरोह

37

भाग 36

2 अगस्त 2022
0
0
0

बिल्वन ने लौट कर देखा, इस बीच राजा ने कुकियों को विदा कर दिया है, उन्होंने राज्य में उपद्रव आरम्भ कर दिया था। सैनिकों के दल को लगभग भंग कर दिया है। युद्ध की कोई विशेष तैयारी नहीं है। बिल्वन ने लौट कर

38

भाग 37

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय ने सैन्य-सामंतों के साथ पूर्व के द्वार से राजधानी में प्रवेश किया, थोड़ा-सा धन और कुछेक अनुचर लेकर गोविन्दमाणिक्य ने पश्चिम वाले द्वार से यात्रा प्रारम्भ की। नगर के लोगों ने बाँसुरी फूँक कर

39

भाग 38

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय ने छत्रमाणिक्य नाम धारण करके विशाल समारोह में राजपद ग्रहण किया। राजकोष में अधिक धन नहीं था। प्रजा-जनों का सर्वस्व छीन कर वायदे के अनुसार धन देकर मुगल सैनिकों को विदा करना पड़ा। छत्रमाणिक्य

40

भाग 39

2 अगस्त 2022
0
0
0

रामू के दक्षिण में राजाकूल के निकट मगों का जो दुर्ग है, वे अराकान के राजा की अनुमति लेकर वहीं रहने लगे। गाँववालों के जितने बाल-बच्चे थे, सब के सब दुर्ग में गोविन्दमाणिक्य के पास आ जुटे। गोविन्दमाणिक्

41

भाग 40

2 अगस्त 2022
0
0
0

(यह परिच्छेद में  बंगाल का इतिहास से संग्रहीत) इधर शाह शुजा अपने भाई औरंगजेब की सेना द्वारा उत्पीड़ित होकर भागा फिर रहा है। इलाहाबाद के निकट युद्ध क्षेत्र में उसकी पराजय हो गई। विपक्षियों से पराक्रां

42

भाग 41

2 अगस्त 2022
0
0
0

जिस दुर्ग में गोविन्द माणिक्य रहते थे, एक दिन वर्षा के अपराह्न में उसी दुर्ग के मार्ग से एक फकीर के साथ तीन बालक और एक वयप्राप्त भारवाही चले आ रहे हैं। बालक अत्यधिक थके दिखाई पड़ रहे हैं। हवा तेज बह र

---

किताब पढ़िए