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भाग 29

2 अगस्त 2022

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इस उपन्यास के आरम्भ काल से अब तक दो वर्ष हो गए हैं। तब ध्रुव दो बरस का बालक था। अब उसकी उम्र चार बरस है। अब वह बहुत बातें सीख गया है। अब वह अपने को बहुत बड़ा आदमी समझता है; यद्यपि सारी बातें साफ-साफ नहीं बोल पाता, किन्तु बहुत बलपूर्वक बोलता रहता है। राजा को वह प्राय: 'गुड़िया दूँगा' कह कर परम प्रलोभन और सांत्वना देता रहता है तथा यदि राजा किसी तरह की शैतानी के लक्षण प्रकट करते हैं, तो ध्रुव उन्हें 'कमरे में बंद कर दूँगा' कह कर बहुत डरा देता है। इस प्रकार आजकल राजा विशेष नियंत्रण में हैं - ध्रुव के अभिमत के अभाव में वे कोई काम करने में बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करते।

इसी बीच ध्रुव को एक संगिनी मिल गई है। एक पड़ोसी की लड़की, ध्रुव से छह महीने छोटी। दसेक मिनट के भीतर दोनों की चिरस्थायी दोस्ती हो गई। बीच में थोड़ा मनमुटाव होने की संभावना हुई थी। ध्रुव के हाथ में एक बड़ा बताशा था। प्रथम प्रणय के उत्साह में ध्रुव ने अपनी दो छोटी उँगलियों से अति सावधानी के साथ एक छोटा-सा टुकड़ा तोड़ कर एक बार में ही अपनी संगिनी के मुँह में ठूँस दिया और परम अनुग्रह के साथ गर्दन हिलाते हुए कहा, "तुम काओ।"

संगिनी मिठाई पाकर परितृप्त होकर बोली, "और काऊँगी।"

इस पर ध्रुव थोड़ा दुखी हो गया। बंधुत्व पर इतना ज्यादा अधिकार न्यायसंगत अनुभव नहीं हुआ; ध्रुव ने अपने स्वभाव-सुलभ गाम्भीर्य और गौरव के साथ गर्दन हिला कर, आँखें फाड़ कर कहा, "छी - आर केते नेई, अछुक कोबे, बाबा मा'बे।" (छी: - और नहीं खाते, बीमार हो जाओगी, पिताजी पिटाई करेंगे।)

कह कर बिना कोई देर किए पूरा बताशा एक बार में ही अपने मुँह में ठूँस कर खतम कर डाला। अचानक बालिका के चेहरे की मांसपेशियों में खिंचाव आने लगा - अधरोष्ठ फूलने लगे, भौंहें चढ़ने लगीं - आसन्न क्रंदन के समस्त लक्षण प्रकट हो गए।

ध्रुव किसी का भी क्रंदन सहन नहीं कर पाता; जल्दी से गंभीर सांत्वना के स्वर में बोला, "कल दूँगा।"

राजा के आते ही ध्रुव भारी ज्ञानी बनते हुए नवीन संगिनी के सम्बन्ध में निर्देश देकर बोला, "इसे कुछ मत कहना, यह रो पडेगी। छी, मारते नहीं, छी!"

सच में राजा की कोई दुरभिसंधि नहीं थी, तब भी जबरदस्ती राजा को सावधान कर देना ध्रुव ने अत्यंत आवश्यक समझा। राजा ने लड़की की पिटाई नहीं की, ध्रुव ने साफ ही देख लिया, उसका निर्दश निष्फल नहीं गया।

इसके बाद ध्रुव अभिवावक की मुद्रा धारण करके किसी प्रकार की भी विपदा की आशंका को निर्मूल करते हुए परम गाम्भीर्य के साथ लड़की को आश्वस्त करने की कोशिश करने लगा।

इसकी भी कोई आवश्यकता नहीं थी। कारण, लड़की अपने आप ही बिना डरे राजा के निकट जाकर अत्यंत कुतूहल और लालच के वशीभूत उनके हाथ का कंगन घुमा-घुमा कर उसका निरीक्षण करने लगी।

इस तरह अपने प्रयत्न और परिश्रम से संसार में शान्ति और प्रेम की स्थापना करके प्रसन्न-हृदय ध्रुव ने अपना बेला के फूल के समान भरा हुआ गोल कोमल पवित्र चेहरा राजा के मुँह की ओर बढ़ा दिया - राजा की ओर से सद्-व्यवहार का पुरस्कार मिला -- राजा ने उसे चूम लिया।।

इसके बाद ध्रुव ने अपनी संगिनी का चेहरा उठा कर अनुमति और अनुरोध के बीच के स्वर में राजा से कहा, "एके चूमो काओ।" ( इसे चूमो।)

राजा ने ध्रुव के आदेश के उल्लंघन का साहस नहीं किया। तब लड़की बुलावे का जरा भी इंतजार न करते हुए नितांत स्वाभाविक रूप से खिले हुए चेहरे के साथ राजा की गोद पर चढ़ कर बैठ गई।

इतनी देर तक संसार में अशांति अथवा गड़बड़ के लक्षण नहीं थे, किन्तु अब ध्रुव के सिंहासन पर खतरा मँडराते ही उसका सार्वभौमिक प्रेम टलमल करने लगा। राजा की गोद पर अपना निज का एकमात्र अधिकार स्थापित करने की इच्छा बलवती हो उठी। मुँह एकदम चढ़ गया, एक-दो बार लड़की को खींचा, यहाँ तक कि विशेष अवस्था में छोटी बालिका को मारना भी अपने पक्ष में उतना अन्याय प्रतीत नहीं हुआ।

तब राजा ने मेलमिलाप कराने के उद्देश्य से अपनी आधी गोदी में ध्रुव को भी खींच लिया। लेकिन उसमें भी ध्रुव की आपत्ति दूर नहीं हुई। शेष आधी पर अधिकार करने के लिए नए सिरे से आक्रमण की तैयारी करने लगा। उसी समय नए राजपुरोहित बिल्वन ठाकुर ने कक्ष में प्रवेश किया।

राजा ने दोनों को ही गोदी से उतार कर उन्हें प्रणाम किया। ध्रुव से बोले, "ठाकुर को प्रणाम करो।"

ध्रुव ने वह आवश्यक नहीं समझा; मुँह में उँगली घुसाए विद्रोही मुद्रा में खड़ा रहा। लड़की ने राजा की देखादेखी खुद ही पुरोहित को प्रणाम कर लिया। बिल्वन ठाकुर ने ध्रुव को निकट खींच कर पूछा, "तुम्हारी यह संगिनी कहाँ से आ जुटी?"

ध्रुव थोड़ी देर सोच कर बोला, "आमि टक् टक् च'ब।" (मैं घोड़े पर चढ़ूँगा।)

पुरोहित ने कहा, "वाह वा, प्रश्न और उत्तर के बीच क्या मेल है!"

ध्रुव की आँखें सहसा लड़की की तरफ उठीं, उसके बारे में अपना मत और अभिप्राय अत्यंत संक्षेप में प्रकट करते हुए बोला, "ओ दुष्टु, ओके मा'बो।" (वह दुष्ट है, उसकी पिटाई करूँगा।)

कहते हुए अपना छोटा-सा घूँसा हवा में लहराया।

राजा ने गंभीर होकर कहा, "छी ध्रुव!"

जैसे एक ही फूँक से दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार ध्रुव का चेहरा तत्क्षण म्लान हो गया। वह पहले आँसू रोकने के लिए दोनों मुट्ठियों से आँखें रगड़ने लगा; अंत में देखते-देखते थोड़ा-सा बड़ा हृदय और नहीं सह पाया, रो पड़ा।

बिल्वन ठाकुर ने उसे हिलाया-झुलाया, गोदी में उठाया, हवा में उछाला, जमीन पर खड़ा किया - इस तरह बेचैन कर डाला; फिर ऊँची आवाज में जल्दी-जल्दी बोला, "सुनो सुनो ध्रुव, तुम्हें श्लोक सुनाता हूँ, सुनो -

कलह कटकटां काठ काठिन्य काठ्यम्

कटन किटन कीटं कुटमलं खटमटम्।

अर्थात, जो बालक रोता है, उसे कलह कटकटां के बीच डाल कर खूब काठ काठिन्य काठ्यम दिया जाता है, उसके बाद इतना सारा कटन किटन कीटं लेकर लगातार तीन दिन तक कुटमलं खटमटम्।"

पुरोहित ठाकुर इसी तरह अनर्गल बकता रहा। ध्रुव का रोना बीच में ही थम गया। पहले वह इस गोलमाल से परेशान और भौचक होकर आँसू भरी आँखें उठा कर बिल्वन ठाकुर के मुँह की ओर देखता रहा। उसके बाद उसके हाथ-मुँह हिलते देख कर उसे बहुत कौतुक अनुभव हुआ।

उसने बहुत खुश होकर कहा, "फिर से बोलो।"

पुरोहित ने फिर से बक दिया। ध्रुव ने हँसी से लोटपोट होते हुए कहा, "फिर से बोलो।"

राजा ने ध्रुव के आँसुओं से सने कपोलों तथा हँसी भरे होठों को बार-बार चूमा। इसके बाद राजा, राजपुरोहित और दोनों बालक-बालिका मिल कर खेल में लग गए।

बिल्वन ठाकुर ने राजा से कहा, "महाराज, आप इन लोगों के साथ बहुत खुश हैं। रात-दिन प्रखर बुद्धिमानों के साथ रहने से बुद्धि लुप्त हो जाती है। छुरी लगातार शान पर चढ़ाने से धीरे-धीरे घिस कर लुप्त हो जाती है। मात्र उसका मोटा हत्था बच रहता है।"

राजा हँस कर बोले, "तब तो, लगता है अभी मेरे सूक्ष्म बुद्धि के लक्षण प्रकट नहीं हुए हैं।"

बिल्वन - "नहीं, सूक्ष्म बुद्धि का एक लक्षण यही है कि वह सहज को जटिल बना डालती है। संसार में ढेरों बुद्धिमान न होते, तो संसार के काम बहुत आसान हो गए होते। नाना सुविधाएँ जुटाने में ही नाना असुविधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। समझ नहीं आता, मनुष्य अधिक बुद्धि लेकर करेगा क्या!"

राजा ने कहा, "पाँच अँगुलियों से यथेष्ट काम चल जाता है, दुर्भाग्यवश सात अँगुलियाँ पाने की इच्छा करके काम बढ़ाना पडता है।"

राजा ने ध्रुव को पुकारा। ध्रुव फिर से अपनी साथिन के साथ शान्ति स्थापित करके खेल रहा था। राजा के बुलाते ही खेल छोड़ कर तुरंत उनके निकट आ गया। राजा उसे सामने बैठा कर बोले, "ध्रुव, ठाकुर को वह नया गीत तो सुनाओ।"

लेकिन ध्रुव ने नितांत आपत्ति की मुद्रा में ठाकुर के चेहरे की ओर देखा।

राजा ने लालच देते हुए कहा, "तुम्हें टक् टक् पर चढ़ाऊँगा।"

ध्रुव अपनी तुतलाती बोली में गाने लगा -

मुझको छह जन मिल पथ दर्शाते, कहते

भूल जाता पग-पग पर पथ रे।

नाना बातों के व्याज से नाना मुनि कहते,

झूलता रहता संशय में रे।

जाऊँ निकट तुम्हारे, यही थी साध,

तुम्हारी वाणी सुन मिटाऊँ प्रमाद,

कानों के निकट सभी करते विवाद

सैकड़ों लोगों की सैकड़ों बोलियाँ रे।

जब दुखी प्राणों से करता तुम्हारी याचना

सभी आस-पास खड़े हो कर देते हैं आड़,

धरती की धूल उसी कारण लिए हूँ -

मिलती नहीं चरण-धूलि रे।

सैकड़ों भाग मेरे सैकड़ों तरफ दौड़ते,

आपस में ही खड़े करते विवाद,

किसको सँभालूँ - यह कैसी मुसीबत है -

अकेला हूँ, वे अनेक हैं रे ।

मुझे एक बना दो, बाँध अपने प्रेम में,

दिखाओ मुझे एक अविच्छिन्न मार्ग,

भँवर के बीच गिर कितना मैं रोऊँ -

चरणों में ले लो रे।

ध्रुव के मुँह से तोतली बोली में यह कविता सुन कर बिल्वन ठाकुर एकदम विगलित हो गया। बोला, "आशीर्वाद देता हूँ, तुम चिरंजीवी होओ।"

ठाकुर ने ध्रुव को गोदी में उठा कर बहुत विनती करते हुए कहा, "एक बार और सुनाओ।"

ध्रुव ने दृढ़ मौन के द्वारा आपत्ति प्रकट की। पुरोहित आँखें ढक कर बोला, "तो, मैं रोऊँगा।"

ध्रुव ने थोड़ा विचलित होकर कहा, "कल सुनाऊँगा, छी रोते नहीं हैं। तुमि एकन बाई (बाड़ी) जाओ। बाबा मा'बे।" तुम अब घर जाओ। पिताजी पिटाई करेंगे।)

बिल्वन ने हँसते हुए कहा, "मधुर गलाधॉक्का।" (अर्थात मीठी- मीठी बातें करते हुए गर्दन पकड़ कर बाहर धकेल देना।)

पुरोहित ठाकुर राजा से विदा लेकर रास्ते में निकल आया।

रास्ते में दो पथिक जा रहे थे। एक दूसरे से कह रहा था, "तीन दिन से उसके दरवाजे पर सिर फोड़ रहा हूँ, एक पैसा नहीं निकलवा पाया - अब वह रास्ते में निकला, तो उसका सिर फोड़ दूँगा, देखता हूँ, उससे क्या होता है!"

बिल्वन ने पीछे से कहा, "उसका भी कोई फल नहीं निकलेगा। भैया, देख ही तो रहे हो, खोपड़ी में बुद्धि जरा-सी भी नहीं, केवल दुर्बुद्धि है। बल्कि अपना सिर फोड़ना ज्यादा अच्छा है, किसी को जवाब नहीं देना पड़ता।"

दोनों पथिकों ने भौचक्के होकर हड़बड़ाते हुए ठाकुर को प्रणाम किया। बिल्वन ने कहा, "भैया, तुम लोग जो कह रहे थे, वह सब अच्छी बात नहीं है।"

दोनों पथिक बोले, "ठाकुर जैसी आज्ञा, ऐसी बात और नहीं कहेंगे।"

पुरोहित ठाकुर को रास्ते में बालकों ने घेर लिया। उसने कहा, "आज शाम को मेरे यहाँ आना, मैं कहानी सुनाऊँगा।" बालकों ने आनंद में धमाचौकड़ी और शोरगुल मचा दिया। बिल्वन ठाकुर कभी-कभी अपराह्न में राज्य के बालकों को इकट्ठा करके सहज भाषा में रामायण, महाभारत और पौराणिक कथाएँ सुनाता था। बीच-बीच में एक-दो नीरस कथाएँ भी यथा-साध्य सरस बना कर सुनाने की कोशिश करता था। लेकिन जब देखता था कि बालकों की जमुहाई संक्रामक हो उठी है, तो उन्हें मंदिर के बगीचे में छोड़ देता था। वहाँ फलों के असंख्य पेड़ हैं। सारे बालक आकाशभेदी शोर मचाते हुए बानरों की भाँति डाल-डाल पर लूटपाट मचा देते थे - बिल्वन इस आमोद को देखता था।

बिल्वन कौन-से देश का है, कोई नहीं जानता। ब्राह्मण है, लेकिन जनेऊ त्याग दिया है। बलि आदि बंद करके एक प्रकार के नवीन अनुष्ठान से देवी-पूजा करता है - लोगों ने पहले-पहले उसमें संदेह और आपत्ति प्रकट की थी, किन्तु अब सब सहनीय हो गया है। विशेषकर सभी बिल्वन की बातों के वशीभूत हो गए हैं। बिल्वन सभी के घर-घर जाकर सभी के साथ बातचीत करता है, सभी के कुशल-समाचार लेता है, और रोगी को जो दवा देता है, वह आश्चर्यजनक रूप से लग जाती है। आपद-बिपद में सभी उसके परामर्शानुसार काम करते हैं। वह बीच में पड़ कर किसी का झगड़ा सुलझा देता है अथवा किसी बात का समाधान कर देता है, तो उसके ऊपर कोई कुछ बात नहीं बोलता।

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रचनाएँ
राजर्षि
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राजर्षि'। 'राजर्षि' में कर्तव्य अकर्तव्य की कसौटी पर पापपुण्य की विवेचना करते हुए घर्मांधता के विरुद्ध जिहाद छेड़ने का प्रयास किया गया है। साथ ही रूढ़ियों को धिक्कारते हुए धर्म, प्रकृति एवं समाज को नए परिपेक्ष्य में देखा गया है। राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।
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राजर्षि (उपन्यास) : सूचना

2 अगस्त 2022
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राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है। बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक क

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राजर्षि भाग 1

2 अगस्त 2022
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भुवनेश्वरी मंदिर का पत्थर का घाट गोमती नदी में जाकर मिल गया है। एक दिन ग्रीष्म-काल की सुबह त्रिपुरा के महाराजा गोविन्दमाणिक्य स्नान करने आए हैं, उनके भाई नक्षत्रराय भी साथ हैं। ऐसे समय एक छोटी लडकी अप

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भाग 2

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उसके अगले दिन से नींद टूट जाने के बाद, सूर्य उगने पर भी राजा का प्रभात नहीं होता था; उनका प्रभात तभी होता होता था, जब वे दोनों छोटे भाई-बहनों का चेहरा देख लेते थे। वे प्रतिदिन उन लोगों को फूल चुन कर द

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भाग 3

2 अगस्त 2022
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राज-सभा बैठी है। भुवनेश्वरी देवी मंदिर का पुरोहित कार्यवश राज-दर्शन को आया है। पुरोहित का नाम रघुपति है। इस देश में पुरोहित को चोंताई संबोधित किया जाता है। भुवनेश्वरी देवी की पूजा के चौदह दिन बाद देर

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भाग 4

2 अगस्त 2022
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भुवनेश्वरी देवी मंदिर का सेवक जयसिंह जाति से राजपूत, क्षत्रिय है। उसके पिता सुचेत सिंह त्रिपुरा राज घराने में पुराने सेवक थे। सुचेत सिंह की मृत्यु के समय जयसिंह एकदम बालक था। इस अनाथ बालक को राजा ने म

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भाग 5

2 अगस्त 2022
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प्रात:काल नक्षत्रराय ने आकर रघुपति को प्रणाम करके पूछा, "ठाकुर, क्या आदेश है?" रघुपति ने कहा, "तुम्हारे लिए माँ का आदेश है। चलो, माँ को प्रणाम करो।" दोनों मंदिर में गए। जयसिंह भी साथ-साथ गया। नक्षत्

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भाग 6

2 अगस्त 2022
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नक्षत्रराय के चले जाने पर जयसिंह ने कहा, "गुरुदेव, ऐसी भयानक बात कभी नहीं सुनी। आपने माँ के सम्मुख माँ का नाम लेकर भाई के हाथों भाई की हत्या का प्रस्ताव कर दिया, और मुझे खड़े होकर वही सुनना पड़ा।" रघ

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भाग 7

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जयसिंह को पूरी रात नींद नहीं आई। जिस विषय पर गुरु के साथ चर्चा हुई थी, देखते-देखते उसकी शाखा-प्रशाखाएँ निकालने लगीं। अधिकांश समय आरम्भ हमारे अधिकार में होता है, अंत नहीं। चिन्ता के सम्बन्ध में भी यही

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भाग 8

2 अगस्त 2022
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गोमती नदी का दक्षिणी किनारा एक स्थान पर बहुत ऊँचा है। बारिश की धारा और छोटे-छोटे सोतों ने इस ऊँची भूमि को नाना गुहा-गह्वरों में बाँट दिया है। इसके कुछ दूर बडे-बड़े शाल और गाम्भारी1 वृक्षों ने लगभग अर्

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भाग 9

2 अगस्त 2022
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मंदिर बहुत दूर नहीं है। लेकिन जयसिंह निर्जन नदी के किनारे से होते हुए बहुत घूम कर धीरे-धीरे मंदिर की ओर चला। उसके मन में भारी चिन्ता उठने लगी। एक जगह नदी के किनारे पेड़ के नीचे बैठ गया। दोनों हाथों से

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भाग 10

2 अगस्त 2022
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महाराज ने महल लौट कर नियमित राज-काज निबटाया। प्रात:कालीन सूर्यालोक ढक गया है। मेघों की छाया से दिन में ही अंधकार घिर आया है। महाराज अत्यंत अनमने हैं। और दिन नक्षत्रराय राजसभा में उपस्थित रहता है, आज न

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भाग 11

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नक्षत्रराय जब राजा का हाथ पकड़े जंगल से घर लौट रहा था, तब आकाश से थोड़ा-थोड़ा उजाला आ रहा था - किन्तु नीचे जंगल में घना अंधेरा छा रहा है। मानो अंधकार की बाढ़ आ रही है, केवल पेड़ों की चोटियाँ ऊपर से बच

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भाग 12

2 अगस्त 2022
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जयसिंह उसके अगले दिन मंदिर में लौट कर आया। अब तक पूजा का समय निकल चुका है। रघुपति दुखी चेहरा लिए अकेला बैठा है। इसके पहले कभी ऐसा नियम भंग नहीं हुआ था। जयसिंह गुरु के निकट न जाकर अपने बगीचे में चला ग

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भाग 13

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मंदिर में अनेक लोग एकत्र हो गए हैं। खूब कोलाहल हो रहा है। रघुपति ने रूखे स्वर में पूछा, "तुम लोग क्या करने आए हो?" वे नाना कण्ठों में बोल पडे, "हम लोग ठकुराइन(देवी के काली रूप को ठकुराइन भी कहा जाता

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भाग 14

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उसके अगले दिन आषाढ़ की उनतीसवीं तिथि। आज रात चतुर्दश देवताओं की पूजा है। आज जब प्रभात में ताड़-वन की ओट से सूरज उठ रहा है, तो पूर्व दिशा में बादल नहीं हैं। जब जयसिंह स्वर्णकिरणों से भरे आनंदमय कानन मे

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भाग 15

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चतुर्दशी तिथि। बादल भी छाए हैं, चन्द्रमा भी निकला है। आकाश में कहीं आलोक है, कहीं अंधकार। कभी चन्द्रमा निकल रहा है, कभी चन्द्रमा छिप रहा है। गोमती के किनारे वाला जंगल चन्द्रमा की ओर देख कर अपनी गहन अं

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भाग 16

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राजा के आदेश के अनुसार नक्षत्रराय प्रजा के असंतोष का कारण खोजने के लिए प्रभात-काल में स्वयं बाहर निकला। उसे चिन्ता होने लगी, मंदिर कैसे जाए! रघुपति के सामने पड़ जाने पर वह कैसा सकपका जाता है, अपने को

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भाग 17

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ध्रुव उसी दिन शाम को नक्षत्रराय को देखते ही "चाचा" पुकारते हुए दौड़ा हुआ आया, छोटे-छोटे दोनों हाथ उसके गले में डाल कर, उसके कपोल से कपोल छुआ कर, मुँह के पास मुँह ले गया। धीरे से बोला, "चाचा।" नक्षत्र

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भाग 18

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अगले दिन न्याय। न्यायालय में लोगों की भीड़। न्यायाधीश के आसन पर राजा विराजमान हैं, सभासद चारों ओर बैठे हैं। दोनों बंदी सामने हैं। किसी के भी हाथों में हथकड़ी नहीं हैं। केवल सशस्त्र प्रहरी उन्हें घेरे

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भाग 19

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प्रहरियों ने जब निर्वासन के लिए तैयार रघुपति से पूछा, "ठाकुर, किस दिशा में जाएँगे," तो रघुपति ने उत्तर दिया, "पश्चिम की ओर जाऊँगा।" नौ दिन तक पश्चिम की ओर यात्रा करने के बाद बंदी और प्रहरी ढाका शहर क

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भाग 20

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विजयगढ़ का विशाल जंगल ठगों का अड्डा है। जो रास्ता जंगल में से होकर गुजरा है, उसके दोनों ओर कितने ही नर-कंकाल दबे हैं, उनके ऊपर केवल जंगली फूल खिल रहे हैं, और कोई निशान नहीं। जंगल में वट है, बबूल है, न

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भाग 21

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विजयगढ़ पहाड़ पर है। विजयगढ़ का जंगल दुर्ग के आसपास जाकर समाप्त हो जाता है। रघुपति ने जंगल से बाहर निकल कर अचानक देखा, मानो पत्थर का विशाल दुर्ग नीले आकाश की अवहेलना करते हुए खड़ा है। अरण्य जिस प्रकार

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भाग 22

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किसी प्रकार शाहशुजा को मुट्ठी में करना ही रघुपति का उद्देश्य था। उसने जैसे ही सुना, शुजा दुर्ग पर आक्रमण करने में जुटा है, वैसे ही सोच लिया, मित्र भाव से दुर्ग में प्रवेश करके किसी तरह दुर्ग पर आक्रमण

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भाग 23

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चाचा साहब के लिए क्या आनंद का दिन है। आज दिल्ल्लीश्वर के राजपूत सैनिक विजयगढ़ के अतिथि हुए हैं। प्रबल प्रतापी शाहशुजा आज विजयगढ़ का बंदी है। कार्तवीर्यार्जुन के बाद से विजयगढ़ को ऐसा बंदी और नहीं मिला

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भाग 24

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सुचेत सिंह को चाचा साहब के चंगुल से छूटने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ा। कल प्रात: बंदी सहित सम्राट की सेना के कूच का दिन निर्धारित हुआ है, यात्रा की तैयारी के लिए सैनिक नियुक्त हुए हैं। शाहशुजा कै

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भाग 25

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गुजुरपाड़ा ब्रह्मपुत्र के किनारे छोटा-सा गाँव है। एक छोटा-सा जमींदार है, नाम है, पीताम्बर राय; बाशिंदे अधिक नहीं हैं। पीताम्बर अपने पुराने चण्डीमण्डप में बैठा स्वयं को राजा कहता रहता है। उसकी प्रजा भी

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भाग 26

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रघुपति ने पूछा, "यह सब क्या हो रहा था?" नक्षत्रराय ने सिर खुजलाते हुए कहा, "नाच हो रहा था।" रघुपति ने घृणा से मुँह सिकोड़ते हुए कहा, "छी छी!" नक्षत्र अपराधी के समान खड़ा रहा। रघुपति ने कहा

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भाग 27

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दीर्घ पथ। कहीं नदी, कहीं घना जंगल, कहीं छायाहीन प्रांतर - कभी नौका पर, कभी पैदल, कभी टट्टू घोड़े पर - कभी धूप, कभी बारिश, कभी कोलाहल भरा दिन, कभी रात्रि का निस्तब्ध अंधकार - नक्षत्रराय बिना रुके चलता

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भाग 28

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अंतत: राजधानी पहुँच गए। पराजय और पलायन के बाद शुजा नवीन सैन्य-संगठन की कोशिश में लगा है। किन्तु राज-कोष में अधिक धन नहीं है। प्रजा-जन कर के भार से पीड़ित हैं। इसी बीच दारा को पराजित और निहत करके औरंगज

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भाग 29

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इस उपन्यास के आरम्भ काल से अब तक दो वर्ष हो गए हैं। तब ध्रुव दो बरस का बालक था। अब उसकी उम्र चार बरस है। अब वह बहुत बातें सीख गया है। अब वह अपने को बहुत बड़ा आदमी समझता है; यद्यपि सारी बातें साफ-साफ न

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भाग 30

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इस साल त्रिपुरा में एक अभूतपूर्व घटना घटी। सहसा उत्तर से झुण्ड के झुण्ड चूहे त्रिपुरा के खेतों में आ पहुँचे। सारी फसल बर्बाद कर डाली, यहाँ तक कि किसानों के घरों में जितना कुछ अनाज इकट्ठा था, वह भी अधि

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भाग 31

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नक्षत्रराय मुगल सैनिकों का स्वामी बना रास्ते में तेंतुले नाम के एक छोटे-से गाँव में विश्राम कर रहा था। प्रात:काल रघुपति ने आकर कहा, "महाराज, यात्रा पर निकलना है, तैयार हो जाइए।" रघुपति के मुँह से स

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भाग 32

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जब त्रिपुरा में चूहों का उत्पात शुरू हुआ था, तब श्रावण माह था। उस समय खेतों में केवल भुट्टे फल रहे थे और पहाड़ी खेतों में धान में दाने आने प्रारम्भ हुए थे। किसी तरह तीन महीने कट गए - अगहन के महीने में

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भाग 33

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बिल्वन ठाकुर ढेरों कामों में डूब गया। उसने चट्टग्राम के पहाड़ी क्षेत्रों में विविध प्रकार के उपहारों के साथ द्रुतगामी दूत भेज दिए। वहाँ के कुकी ग्राम-मुखियाओं से कुकी सैनिकों के रूप में सहायता की प्रा

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भाग 34

2 अगस्त 2022
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नक्षत्रराय सैनिकों के साथ आगे बढ़ने लगा, कहीं तिलभर भी बाधा नहीं आई। त्रिपुरा के जिस भी गाँव में उसने कदम रखा, वही गाँव उसकी राजा के रूप में अगवानी करने लगा। पग-पग पर राजत्व का आस्वाद पाने लगा - क्षुध

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भाग 35

2 अगस्त 2022
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गोविन्दमाणिक्य नक्षत्रराय का उत्तर सुन कर बहुत मर्माहत हुए। बिल्वन ने सोचा, शायद महाराज अब आपत्ति प्रकट नहीं करेंगे। किन्तु गोविन्दमाणिक्य बोले, "यह बात कभी भी नक्षत्रराय की नहीं हो सकती। यह उसी पुरोह

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भाग 36

2 अगस्त 2022
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बिल्वन ने लौट कर देखा, इस बीच राजा ने कुकियों को विदा कर दिया है, उन्होंने राज्य में उपद्रव आरम्भ कर दिया था। सैनिकों के दल को लगभग भंग कर दिया है। युद्ध की कोई विशेष तैयारी नहीं है। बिल्वन ने लौट कर

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भाग 37

2 अगस्त 2022
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नक्षत्रराय ने सैन्य-सामंतों के साथ पूर्व के द्वार से राजधानी में प्रवेश किया, थोड़ा-सा धन और कुछेक अनुचर लेकर गोविन्दमाणिक्य ने पश्चिम वाले द्वार से यात्रा प्रारम्भ की। नगर के लोगों ने बाँसुरी फूँक कर

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भाग 38

2 अगस्त 2022
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नक्षत्रराय ने छत्रमाणिक्य नाम धारण करके विशाल समारोह में राजपद ग्रहण किया। राजकोष में अधिक धन नहीं था। प्रजा-जनों का सर्वस्व छीन कर वायदे के अनुसार धन देकर मुगल सैनिकों को विदा करना पड़ा। छत्रमाणिक्य

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भाग 39

2 अगस्त 2022
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रामू के दक्षिण में राजाकूल के निकट मगों का जो दुर्ग है, वे अराकान के राजा की अनुमति लेकर वहीं रहने लगे। गाँववालों के जितने बाल-बच्चे थे, सब के सब दुर्ग में गोविन्दमाणिक्य के पास आ जुटे। गोविन्दमाणिक्

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भाग 40

2 अगस्त 2022
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(यह परिच्छेद में  बंगाल का इतिहास से संग्रहीत) इधर शाह शुजा अपने भाई औरंगजेब की सेना द्वारा उत्पीड़ित होकर भागा फिर रहा है। इलाहाबाद के निकट युद्ध क्षेत्र में उसकी पराजय हो गई। विपक्षियों से पराक्रां

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भाग 41

2 अगस्त 2022
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जिस दुर्ग में गोविन्द माणिक्य रहते थे, एक दिन वर्षा के अपराह्न में उसी दुर्ग के मार्ग से एक फकीर के साथ तीन बालक और एक वयप्राप्त भारवाही चले आ रहे हैं। बालक अत्यधिक थके दिखाई पड़ रहे हैं। हवा तेज बह र

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